महाराज ने कहा कि भोपाल शहर प्राकृतिक दृष्टि से अतिरमणीय और मनोहारी है। वृक्ष लगाना भगवान की सेवा के बराबर है। आपने जीवन में एक वृक्ष भी लगाया है तो प्रभु की सेवा की है। रामायण में पौधरोपण का महत्व मिलता है। लक्ष्मण ने जानकी माता के साथ तुलसी के बहुत सारे पौधे रोपे थे। वैज्ञानिकों ने भी बताया है कि वृक्षों में जीवन होता है।
जैसे जमीन पर बीजारोपण कर मिट्टी पर पानी डालते हैं और धीरे-धीरे पौधा बढ़ता है और बड़ा होकर वृक्ष बनता है, मनुष्य भी वैसे ही जन्म लेकर धीरे-धीरे बढ़ता है। ऐसे लोगों की भावनाएं बहुत अच्छी होती हैं, जो वर्तमान में पौधे लगा रहे हैं। उनकी सोच रहती है कि आनेवाली पीढ़ी को इससे फल-फूल मिलेंगे।
प्रेम सेवा का कोई मूल्य नहीं
राजेश्वरानन्द महाराज ने कहा कि हनुमानजी जैसा बड़भागी कोई नहीं था। जिनकी प्रेम सेवा का कोई मूल्य नहीं है, पहले प्रीत होती है फि र सेवा, प्रेम होगा तो सेवा होगी, प्रेम नहीं होगा तो सेवा नौकरी होगी। प्रेम के कारण की जाने वाली सेवा को सेवा कहते हैं और धन के कारण प्रेम हो, स्वार्थ के कारण प्रेम हो तो वह नौकरी है। महाराजश्री ने कहा कि जीवन में कभी भी अभिमान मत करना।
राजेश्वरानन्द महाराज ने कहा कि हनुमानजी जैसा बड़भागी कोई नहीं था। जिनकी प्रेम सेवा का कोई मूल्य नहीं है, पहले प्रीत होती है फि र सेवा, प्रेम होगा तो सेवा होगी, प्रेम नहीं होगा तो सेवा नौकरी होगी। प्रेम के कारण की जाने वाली सेवा को सेवा कहते हैं और धन के कारण प्रेम हो, स्वार्थ के कारण प्रेम हो तो वह नौकरी है। महाराजश्री ने कहा कि जीवन में कभी भी अभिमान मत करना।
कोई भी सेवा का कार्य परोपकार का कार्य बिना किसी स्वार्थ बिना नाम की चाहत के लिए करना, क्योंकि अगर मान और अभिमान आ गया तो हमें ऊंचाइयों की जगह नीचे की ओर जाना है। आज हमें जो कुछ मिला है हम उसमें से ही दे रहे हैं।
दान की महिमा बताते हुए कहा कि धन वह शुद्ध कहलाएगा, जो आय का दसवां हिस्सा परोपकार और समाज सेवा में लगाएंगे। भोजन वह पवित्र है, जिस भोजन का चौथा हिस्सा ऐसे व्यक्ति को खिलाओ जिससे आपका कोई भी स्वार्थ न हो। कथा के समापन पर संगीतमय स्वलहरियों के साथ हरे रामा, राम, सीता-राम- सीता-राम…. भजन पंक्तियों के साथ आरती की गई।