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टुकड़ों में बंटा पुरखों का घर हम देख रहे हैं…

locationभोपालPublished: Nov 12, 2019 01:36:42 am

स्वराज भवन में हिन्दी और उर्दू कवि-शायरों का रचना पाठ

टुकड़ों में बंटा पुरखों का घर हम देख रहे हैं...

टुकड़ों में बंटा पुरखों का घर हम देख रहे हैं…

भोपाल. खुश्बू एजुकेशन एण्ड कल्चरल सोसायटी की ओर से सोमवार को स्वराज भवन में रचना पाठ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता शायर आरिफ अली आरिफ ने की। इस मौके पर उन्होंने शेर वक्त बदला तो वो भी साथ हुए, जिनको मेरा वजूद खलता था… पढ़ा।
इसके बाद शायर ताहिर तराश ने आप के व्यवहार पर नजरें तो नजरें आपका चेहरा बदल गया, शोहरत मिली जरा सी तो लहजा बदल गया… पेश किया। संस्था के अध्यक्ष साजिद प्रेमी ने गजल घर के पीपे में ताजा भरा हुआ आटा है, रहमते हैं मयस्सर भरा-भरा कांसा है… पेश की। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कवियित्री अनुपमा अनुश्री ने कविता शिकायत सिस्टम से, लोगों से, चीजों से, बड़ल लंबी है यह फेरिस्त… सुनाई। इस प्रस्तुति को श्रोताओं ने जमकर सराहा।
अगली कड़ी में हास्य कवि व शायर खुर्शीद खान ने गजल कभी उसके कानों को भर दिया कभी उसको जाके बता दिया… सुनाई। दिनेश मालवीय ने टुकड़ों में बंटा पुरखों का घर देख रहे हैं, आपस की लड़ाई का असर देख रहे हैं, नफीसा सुलताना अना उनका क्या डर जो मिरा अज्म कर दें, हादसे जीस्त के अस्बाक बड़हाने आए…, अजीम असर ने तिरा ख्याल ही बुनयादे शाइरी ठहरा, ख्याल और है यूं तो कतार की सूरत… सुनाकर माहौल बदल दिया। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए अगली कड़ी में चित्रांश खरे ने सुना है आज कल कमजर्फ जुगनू, जियादा ही उजाला कर रहे हैं और फाजिल फैज ने हमने सारी उम्र लगाके जाना है… रचना पेश की। आबिद काजमी ने अपने बच्चे ही के ताने मां को जब सुनने पड़े, वो समझते भी नहीं हैं और मर जाती है वो…, हनीफ सोज ने बज्म में वो जो आए हुए हैं…, शोएब अली खान ने मेरे शेर अब गुनगुनाने लगे है… रचना पेश की।

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