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जहर के कारोबारियों ने भी अपना लिए चोर रास्ते, जिम्मेदार बेपरवाह

locationभोपालPublished: Sep 27, 2016 01:34:00 am

Submitted by:

rb singh

प्रवीण मालवीय@भोपाल . भले ही प्रदेश सरकार ने तंबाकूयुक्त गुटखे पर प्रतिबंध लगा दिया हो, लेकिन भोपाल सहित प्रदेश भर में इस पर कहीं रोक नहीं है। गुटखा बनाने वालों ने इसके लिए चोर रास्ते ढूंढ लिए हैं। फैक्ट्रियों में सादा गुटखे के साथ तंबाकू की अवैध पैकिंग जारी है। थोक और रिटेल में यहीं […]

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प्रवीण मालवीय@भोपाल
. भले ही प्रदेश सरकार ने तंबाकूयुक्त गुटखे पर प्रतिबंध लगा दिया हो, लेकिन भोपाल सहित प्रदेश भर में इस पर कहीं रोक नहीं है। गुटखा बनाने वालों ने इसके लिए चोर रास्ते ढूंढ लिए हैं। फैक्ट्रियों में सादा गुटखे के साथ तंबाकू की अवैध पैकिंग जारी है। थोक और रिटेल में यहीं से इसकी अवैध सप्लाई जारी है। खास बात यह है कि तंबाकू के पाउच पर किसी उत्पाद का नाम नहीं लिखा होता।
शनिवार को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजधानी में जब स्थितियों की पड़ताल की गई तो यह सच सामने आया और जिम्मेदार अभी आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं। नतीजतन जहर के इस कारोबार पर लगाम कसने के लिए दो दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।


आदेश न मिलने का बहाना
सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को निर्णय देकर कम्पनियों के इस चोर रास्ते को बंद कर दिया है। इस आदेश के बाद पान मसाले के साथ तम्बाकू पाउच बनाने से स्टॉक करने और बेचने की पूरी चैन बंद होनी है लेकिन सोमवार तक अधिकारी आदेश मिलने के बाद ही इसकी व्याख्या की बात कह रहे हैं। जबकि फूड सिक्योरिटी एक्ट की धारा 2.3.4 में भी किसी भी खाद्य पदार्थ में तम्बाकू न मिलाए जाने का प्रावधान है। इसी आधार पर बिहार, आसाम, गोवा, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, पंजाब, नगालैंड, हिमाचल, झारखंड आदि राज्य रोक लगा चुके हैं। लेकिन प्रदेश में अधिकारी टोबेकू प्रोडक्ट रेग्यूलेशन एक्ट अलग होने से पान मसाला फैक्ट्रियों के साथ चल रहे तम्बाकू पाउच फैक्ट्रियों के उत्पादन और विक्रय को नजरअंदाज करते रहे।

एक लाख से अधिक मौत
आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में तम्बाकू उत्पादों से प्रतिवर्ष 50 हजार मौतें होती हैं। इनमें से लगभग एक तिहाई चबाने वाले तम्बाकू के कारण होती है। 2013 से 16 के बीच तम्बाकू कम्पनियों के चोर दरवाजे पर रोक नहीं लगाने से इस दौरान होने वाली 50 हजार से ज्यादा मौतों चबाने वाले तम्बाकू मिले गुटखे की भूमिका रही।

&’कोटपा एक्ट 2003 का अनुपालन हमारे पास नहीं है, यह एक्ट आबकारी से हट चुका है। यह फूड एंड ड्रग्स वालों का ही काम है। उन्हें ही इसका नियमन करना चाहिए।Ó
आलोक खरे, सहायक आयुक्त आबकारी

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