वहीं कमलनाथ के बयान को सांसद सिंधिया का भी समर्थन मिलने से एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में किसी नई रणनीति की गंध आनी शुरू हो गई है।
ये है मामला…
दरअसल पिछले दिनों कमलनाथ ने संवाददाताओं से कहा था कि ‘मैंने दिग्वियज सिंह (राज्यसभा सांसद) से आग्रह किया है कि यदि वह चुनाव लड़ना चाहते हैं तो किसी कठिन सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ें।’ उन्होंने कहा, ‘प्रदेश में 2-3 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां से हम 30-35 सालों से जीते नहीं हैं।’
उनके इस बयान के कुछ ही दिन बाद सिंधिया ने भी कमलनाथ के इस बयान का समर्थन कर दिया।
वहीं प्रदेश में चल रही चर्चाओं में इस बात का संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि कठिन सीट के नाम पर कांग्रेस में अपने विरोधियों को साफ करने की रणनीति चल रही है।
दरअसल मध्यप्रदेश में ऐसी चार सीटें हैं जिन पर करीब 30-35 सालों से भाजपा का कब्जा बना हुआ है। इनमें विदिशा, इंदौर के साथ ही भोपाल व भिंड की सीटें शामिल हैं।
ऐसे में जानकारों का मानना है कि भिंड सीट रिजर्व होने के चलते दिग्विजय इससे तो चुनाव लड़ नहीं सकते, वहीं इंदौर व विदिशा सीटों पर सिंधिया परिवार की खास दखल है। यानि यदि इन जगहों से दिग्विजय चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें सिंधिया के भरोसे रहना होगा।
वहीं जानकारों की मानें तो सिंधिया और दिग्विजय का 36 का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में सिंधिया दिग्विजय के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
कुल मिलाकर दिग्विजय के लिए इन सीटों पर लड़ना टेड़ी खीर होने के साथ ही आपने राजनैतिक अस्तित्व को दांव पर लगाने वाली साबित हो सकती है।
राजनीति के जानकार डीके शर्मा कहते हैं कि कांग्रेस में कठिन सीट से चुनाव लड़ने की बात को लेकर ये प्रश्न हर ओर उठ रहा है कि कहीं इसके पीछे आपने विरोधियों को किनारे करने की चाल तो नहीं है।
कारण ये है कि जो सूचनाएं सामने आ रही हैं उनके अनुसार राज्य सरकार में दिग्विजय के हस्तक्षेप के चलते शायद कमलनाथ भी परेशान हो चुके हैं, वहीं सिंधिया से दिग्विजय की अदावत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में ये संदेह भी है कि कमलनाथ और सिंधिया अब प्रतिद्वंदी को परास्त करने के लिए हाथ मिला चुके हैं। इसी के चलते ये कठिन सीट की बात शुरू की गई है।
वहीं जानकार इसके अलावा ये भी प्रश्न उठा रहे हैं कि आखिर ये कठिन सीट केवल दिग्विजय के लिए ही क्यों? क्यों नहीं सिंधिया भी अपनी गुना या ग्वालियर सीट छोड़ कर भाजपा के कब्जे वाली विदिशा या इंदौर में हाथ आजमाते हैं, क्योंकि यहां तो इनकी अच्छी खासी मजबूत पकड़ भी है।
वहीं कई जानकारों का तो यहां तक मानना है कि ये कठिन सीट को जीतने के पीछे कहीं न कहीं दिग्विजय को हराने का प्लान है।
प्रदेश में यहां तक चर्चा है कि कहीं सिंधिया और कमलनाथ गठजोड़ कर दिग्विजय को कमजोर तो नहीं करना चाहते!
जानकारों का कहना है कि कठिन सीट की बाद केवल दिग्विजय पर ही क्यों, कमलनाथ भी अपना चुनाव अपनी सेफ सीट से ही क्यों लड़ना चाहते हैं। यदि कठिन सीट पर जीत की बात है तो उन्हें व सिंधिया को भी अपनी सेफ सीट से बाहर आकर चुनाव लड़ना चाहिए।