किनारे की बजाय बीच में जाकर लिए जा रहे सैंपल पहले जहां नदी के पानी की सैंपलिंग किनारे से होती थी क्योंकि किनारे के पानी का ही घाटों पर अधिकांश लोग उपयोग करते हैं। वे न केवल इसमें स्नान करते हैं बल्कि आचमन के लिए भी नदी के पानी का उपयोग करते हैं। लेकिन अब पीसीबी के अमले द्वारा नदी के बीच में से सैंपल लिए जा रहे हैं । नदी के बीच में क्योंकि प्रवाह तेज रहता है इसलिए किसी तरह की गंदगी टिक नहीं पाती इसलिए असलियत सामने नहीं आ पाती।
हैवी मेटल्स की जांच ही नहीं
मापदंडों की एक खास बात यह भी है कि इसमें पानी में कितने हैवी मेटल मौजूद हैं इसकी जांच ही नहीं की जा रही है। जबकि नदियों में औद्योगिक अपशिष्ट मिलने के बाद उसके पानी में हेवी मेटल्स की मात्रा भी काफी बढ़ जाती है। बेतवा नदी में औद्योगिक क्षेत्रों के पास के पानी में पहले हेवी मेटल मिले भी हैं। लेकिन अब इसकी जांच नहीं की जा रही है।
हैवी मेटल्स की जांच ही नहीं
मापदंडों की एक खास बात यह भी है कि इसमें पानी में कितने हैवी मेटल मौजूद हैं इसकी जांच ही नहीं की जा रही है। जबकि नदियों में औद्योगिक अपशिष्ट मिलने के बाद उसके पानी में हेवी मेटल्स की मात्रा भी काफी बढ़ जाती है। बेतवा नदी में औद्योगिक क्षेत्रों के पास के पानी में पहले हेवी मेटल मिले भी हैं। लेकिन अब इसकी जांच नहीं की जा रही है।
कागजों में स्वच्छ लेकिन आसपास के जलस्रोत दूषित होंगे पर्यावरणविद डॉ सुभाष सी पांडे के अनुसार नदियों का पानी मापदंड बदलकर भले ही स्वच्छ कर दिया जाए लेकिन इसके दुष्प्रभाव तो देखने को मिलते ही हैं। क्योंकि इसके आसपास जो कुएं और बोरवेल होंगे उनके पानी पर भी नदी का प्रभाव पड़ता है। यदि नदी का पानी प्रदूषित होगा तो उनका पानी भी दूषित होने की पूरी संभावना रहती है। मैंने कलियासोत नदी के आसपास के भूजल स्रोतों के पानी की जांच की थी उसमें आसपास के डेढ़ किलोमीटर के दायरे में पानी पीने योग्य नहीं पाया गया। इससे आप आसानी से समझ सकते हैं कि यह कितना खतरनाक हो सकता है।