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आदिवासियों की आबादी पता लगाने क्या होगा मध्यप्रदेश में

locationभोपालPublished: May 20, 2019 10:48:27 pm

Submitted by:

anil chaudhary

2016 तक का ही है पिछड़ी जनजातियों का रेकॉर्डभाजपा सरकार के समय से भी हुए थे सर्वे के प्रयास

kamal nath

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भोपाल. सियासत अब आदिवासियों पर नए कदम बढ़ा रही है। दरअसल, पिछड़ी जनजातियों के वोटबैंक को भाजपा-कांग्रेस दोनों फोकस करती रही हैं, लेकिन 2016 के बाद इनकी आबादी कितनी बढ़ी यह पता नहीं है। इस कारण अब सर्वे करने की तैयारी चल रही है। पिछली भाजपा सरकार के इस प्रयास पर कमलनाथ सरकार नए सिरे से काम कर रही है। सर्वे में बैगा, सहरिया, भारिया और पारधी सहित अन्य विशेष पिछड़ी जातियों को शामिल किया जाएगा। यह जनजातियां दस से ज्यादा लोकसभा सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं। अब निकाय चुनाव और फिर पंचायत चुनाव होना है। इसके पहले कमलनाथ सरकार इनकी आबादी का पूरा रेकॉर्ड तैयार करना चाहती है।
– कहां पाई जाती हैं ये जनजातियां
बैगा, सहरिया, भारिया और पारधी सहित अन्य जनजातियां ज्यादातर मंडला, शहडोल, डिंडौरी, उमरिया, अनूपपुर, बालाघाट, ग्वालियर-चंबल संभाग के सभी जिले और छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट इलाके में हैं।
– अभी कितनी आबादी?
2016 के रेकॉर्ड के मुताबिक प्रदेश के 2,314 गांवों में 50.50 लाख विशेष पिछड़ी जनजाति के परिवार निवास करते हैं। सूबे में छह एसटी व चार एससी लोकसभा सीटें हैं, जिनके निर्वाचन क्षेत्र में इनकी आबादी रहती है। बाकी इलाकों में इनकी आबादी कम है।
– आदिवासी बड़ी ताकत
प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 21 फीसदी से ज्यादा है, इसलिए दोनों प्रमुख सियासी दल इनको साधने के जतन करते हैं। राज्य की 47 विधानसभा सीटें आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं। मुख्य रूप से आदिवासी जातियों में भील, भीलदा, गोंड, सहरिया, बैगा, कोरकू, भारिया, हल्बा, कौल और मरिया की बड़ी आबादी है। इसके अलावा दूसरी अनेक सीटों पर भी बीस से चालीस हजार तक आबादी अजा-जजा वर्ग की हो जाती है।
– संसदीय इलाकों का गणित
एससी सीट : भिंड, टीकमगढ़, देवास और उज्जैन।
एसटी सीट : शहडोल, मंडला, रतलाम, धार, खरगोन व बैतूल।
– ऐसे समीकरण
सियासत में आदिवासी बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। सूबे के चार एससी और छह एसटी संसदीय इलाके चुनाव परिणामों को उलट-पुलट देते हैं। ये इलाके विधानसभा से लेकर लोकसभा तक बेहद मायने रखते हैं। जयस संगठन का उदय और फिर जयस अध्यक्ष हीरा अलावा का कांग्रेस में आकर विधायक बनना आदिवासी वोटबैंक का महत्त्व बताता है। इसके अलावा बसपा, सपा और गोंगपा की राजनीति भी इन पिछड़ी जातियों की धूरी पर घूमती है।
– ऐसे किया फोकस
भाजपा और कांग्रेस सरकारों ने अजा-जजा वर्ग को साधने के लिए कई योजनाएं चलाईं। विधानसभा चुनाव के ऐन पहले शिवराज सरकार ने आदिवासियों के लिए जूते-चप्पल, बैग-बॉटल सहित आर्थिक मदद की योजना शुरू की तो कमलनाथ सरकार ने भी आते ही आदिवासियों का वित्त विकास निगम का एक लाख रुपए तक का कर्ज माफ कर दिया था। बाद में भी दोनों ओर से आदिवासियों को लुभाने के जतन होते रहे हैं।
– प्रदेश एक नजर
89 आदिवासी बाहुल्य विकासखंड प्रदेश में
50.50 लाख विशेष पिछड़ी जाति परिवार सूबे में
21 फीसदी आदिवासी आबादी मानी जाती प्रदेश में
20 जिलों में आदिवासी संख्या ज्यादा
04 एससी लोकसभा सीटें
06 एसटी-लोकसभा सीट

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