दरअसल ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश से सामने आया है। जहां एक चार माह से गर्भवती आशा कार्यकर्ता जो अपने काम को सर्वोपरी रखते हुए तीन बच्चों को खून चढ़वाने जिला अस्पताल लाई थी।
जिले की बेहतरी के लिए जब भी वे किसी अस्पताल में रेफर किए गए मरीजों को लाती है, तो उन्हें कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।
आवागमन की परेशानियां अपनी जगह हैं, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी उस समय होती है जब विभाग के ही डॉक्टर या अन्य स्टाफ ऐसे मामलों में गंभीरता दिखाने की वजह उनके साथ दुव्र्यवहार करते है। जिसकी वजह से कई बार वे मरीज को लाने से भी डरती है।
कलेक्टर की बीएमओ को फटकार…
बताया जाता है कि पिछले दिनों जिले की पिछड़ी हालत को देखते हुए कलेक्टर ने सभी बीएमओ को फटकार लगाई थी। जिसके बाद उन्होंने निचले स्तर के कर्मचारियों पर दबाव बनाया। ऐसे में अब मरीज रेफर होकर ब्लाक और जिला स्तर तक पहुंच रहे है, लेकिन उनका इलाज कराने में खासी परेशानी आ रही है।
अस्पताल में इलाज कराने वाले सभी मरीजों को निशुल्क उपचार और दवाओं का प्रावधान है, लेकिन दस्तक अभियान के तहत भेजे जा रहे मरीजों को तक बाहर से दवाएं खरीदनी पड़ रही है।
रविवार माचलपुर के पास स्थित ग्राम घोघटपुर की आशा कार्यकर्ता सरिता बैरागी तीन बच्चों को खून चढ़वाने जिला अस्पताल लाई। यहां आते ही उसे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा।
दस्तक अभियान में रेफर बच्चों को अस्पताल तक लाने की कोई प्रोत्साहन राशि आशाओं को नहीं मिलती है। बावजूद बच्चों के परिजन आशा पर दबाव बनाकर साथ लाते है। उस पर अस्पताल प्रबंधन द्वारा बुरा बर्ताव किया जाना दुखद है। इससे पूरे जिले की आशा कार्यकर्ताओं में रोष है।
– माधुरी दांगी, जिलाध्यक्ष आशा संगठन राजगढ़