भेष बदलकर खड़े हो जाते हैं पृथ्वीराज
कन्नौज का राजा जयचंद आप को भारत का सबसे शक्तिशाली राजा समझता था और खुद चक्रवर्ती सम्राट कहलवाने के लिए उसने राजसूर्य यज्ञ और अपनी एकमात्र पुत्री संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया। उसने सभी राजाओं को आमंत्रित किया लेकिन पृथ्वीराज की प्रसिद्धि से जलकर उसने न तो पृथ्वीराज को आमंत्रित किया बल्कि उसको अपमानित करने की इरादे से स्वयंवर में उसका एक पुतला बनाकर उसको द्वारपाल के स्थान पर खड़ा करवा दिया।
पृथ्वीराज भेष बदलकर स्वयंवर में आता है और पुतला बनकर खड़ा हो जाता है। भरे दरबार में हुई अपनी बेइज्जती और अपनी पुत्री के हरण के कारण जयचंद तिलमिला जाता है और दूत से मोहम्मद गौरी को यह संदेश भिजवाता है कि वह फिर से पृथ्वीराज पर आक्रमण करे और इस बार उसकी पूरी सेना इस युद्ध में उसका साथ देगी। विवाह के बाद पृथ्वीराज का ध्यान राजकार्य में नहीं लगता। इधर मोहम्मद गौरी फिर से आक्रमण करता है पृथ्वीराज, मोहम्मद गौरी और जयचंद के सेनाओं के मध्य युद्ध होता है। इस बार पृथ्वीराज की पराजय होती है। पृथ्वीराज चूंकि शब्द बाण चलाना जनते हैं जैसे ही गौरी पृथ्वीराज को तीर चलाने का आदेश अपने दरबार में देता है, पृथ्वीराज गौरी की आवाज की दिशा में तीर चलाकर मोहम्मद गौरी को मार देता है।
परिवार का गौरव होती है बेटी
एडमायर थिएटर गुप के पांच दिवसीय फेसबुक ऑनलाइन नाट्य समारोह में मंगलवार को नाटक ‘बैयसाखी’ का प्रदर्शन हुआ। इसके निर्देशक आनंद मिश्रा है जबकि लेखन योगेश त्रिपाठी ने किया है। इसमें सघन सोसायटी के कलाकारों ने अभिनय किया है। नाटक में दिखाया गया कि हमारे समाज में कई परिवारों में देखा गया है कि उनकी तरक्की में बेटियों का बड़ा योगदान होता है। ऐसे ही एक निरक्षर परिवार की कहानी है। जिसमें पारंपरिक पिता और प्रगतिशील मां है। एक दुर्घटना में वह विकलांग हो जाती है। इसके बावजूद उसका आत्म विश्वास कम नहीं होता और वो परिवार के गौरव का कारण बनती है।