रहली सीट के सबसे बड़े कस्बे गढ़ाकोटा के विकास को लेकर 1981 में छात्रों ने आंदोलन किया और इस छात्र आंदोलन ने यहां की राजनीतिक तस्वीर ही बदल दी। तब सत्ता में रही कांग्रेस के लिए यह सीट चुनौती बन गई। तहसील, पोस्टमार्टम हाउस, शासकीय कॉलेज और रजिस्ट्री ऑफिस आदि खोले जाने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू हुआ था।
तत्कालीन कांग्रेस नेता गोपाल भार्गव (अब पंचायत मंत्री) के नेतृत्व में गढ़ाकोटा विकास छात्र समिति का गठन हुआ। अध्यक्ष राजेश सिंह ठाकुर बने। समिति में चेतराम कोरी, रफीक खान, गुल्लाई यादव, अशोक चौबे, राजेश चौबे, वाहिद खान, बलभद्र सिंह, सदाशिव तिवारी, शंकरलाल रिछारिया, उमेश पाठक सहित अन्य शामिल हुए। अधिकतर की उम्र 21 साल के आसपास थी।
इस दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद के शिष्य डॉ. रामलाल चौधरी रहली निवासी गोपाल पटैरिया के यहां आए। आंदोलन का तौर तरीका सीखने के लिए छात्रों का दल उनसे मिलने पहुंच गया। उन्होंने भी छात्रों को क्रांतिकारी मित्र कहकर टिप्स दिए और उपद्रव न करने की सीख दी। इससे प्रेरित होकर छात्रों ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। सरकार ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
इसी बीच सागर के तत्कालीन जिला प्रभारी और शिक्षा मंत्री बंशीलाल धृतलहरे आए तो छात्रों ने उनसे मिलने का निर्णय किया। अशोक चौबे, गुल्लाई यादव और उनके साथ अन्य छात्र प्रतिनिधि सागर गए। बातचीत ठीक थी और आश्वासन भी मिले, लेकिन दुर्भाग्यवश लौटते समय सड़क हादसे में छात्रों की मौत हो गई। जब यह खबर गढ़ाकोटा पहुंची तो आंदोलन उग्र हो गया।
पुलिस की गोलीबारी से भड़का आंदोलन 5 सितंबर 1984 को आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच भिड़ंत हो गई। हालात बिगड़ते देख पुलिस ने पहले लाठीचार्ज किया, फिर गोलीबारी। इसके शिकार रफीक खान और चेतराम कोरी हुए। इससे गढ़ाकोटा तक सीमित आंदोलन जिलेभर में फैल गया। गढ़ाकोटा में कफ्र्यू के दौरान गिरफ्तारियां हुईं और गोपाल भार्गव पर फायरिंग की गई।
(जैसा कि बलभद्र सिंह बुंदेला ने सागर में पंकज शर्मा को बताया।)