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रवीन्द्र भवन: नाटक के लिए अनुमति लेना जरूरी, किराए में नहीं मिलती छूट

locationभोपालPublished: Jun 25, 2019 01:00:15 pm

Submitted by:

hitesh sharma

रंगकर्मियों के लिए फंड की व्यवस्था और एसडीएम से अनुमति बन रही परेशानी का सबब

ravindra bhawan

रवीन्द्र भवन: नाटक के लिए अनुमति लेना जरूरी, किराए में नहीं मिलती छूट

भोपाल । कला को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने देशभर में रवीन्द्र भवन की स्थापना की थी। 1984 में भोपाल में रवीन्द्र भवन में गतिविधियां शुरू हुईं, लेकिन सरकार के एक फैसले के कारण कलासाधकों को यहां शो करने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यह प्रदेश का एकमात्र ऐसा थिएटर है, जहां शो करने के लिए एसडीएम से लिखित अनुमति लेनी पड़ती है।

कलाकारों को इसके लिए रिहर्सल छोड़ कलेक्ट्रेट के चक्कर काटना पड़ता हैं। शासन की बेरूखी यही खत्म नहीं होती। रवीन्द्र भवन में क्लासिकल प्रोगाम (नृत्य, गायन और वादन) के लिए तो किराए में 50 प्रतिशत की छूट दी जा रही है, लेकिन थिएटर के लिए व्यावसायिक श्रेणी का किराया वसूला जा रहा है। कलाकारों का कहना है कि वे किसी तरह फंड जुटाकर शो करते हैं। ऐसे में किराए के कारण उन्हें दूसरे थिएटर का रूख करना पड़ता है।

भारत भवन में मिलती थी छूट
भारत भवन में पहले नाटक के लिए रजिस्टर्ड ग्रुप्स को किराए में 50 प्रतिशत तक छूट थी। भारत भवन ने बाहरी ग्रुप्स की गतिविधियों पर रोक लगा दी। कलाकारों का कहना है कि जनजातीय संग्रहालय में भी सिर्फ शासकीय प्रोग्राम होते हैं। कुक्कुट भवन ऑडिटोरियम मंचन के लिहाज से बेहतर नहीं है। ऐसे में शहीद भवन और रवीन्द्र भवन ही विकल्प है। रवीन्द्र भवन में किराया 18467 रुपए है।
कलाकारों को बंगाल दे रहा है बढ़ावा
कलाकारों का कहना है कि 265 दर्शक क्षमता वाले शहीद भवन का किराया सात हजार रुपए है, जबकि बंगाल में छोटे ऑडिटोरियम का किराया तीन से चार हजार रुपए है। वहीं, रवीन्द्र भवन की दर्शक क्षमता 550 है और किराया ज्यादा है। अधिकारियों को बंगाल से सीख लेना चाहिए।
एसडीएम से अनुमति का पेंच
करीब तीन साल पहले एक आंदोलन के बाद रवीन्द्र भवन में किसी भी कार्यक्र म के लिए एसडीएम की अनुमति अनिवार्य कर दी गई। यह प्रदेश और संभवत: देश का एक मात्र ऐसा संस्थान है, जिसमें कला गतिविधियों के लिए प्रशासन की अनुमति की जरूरी है।
पॉपुलर गतिविधि मानकर संरक्षित श्रेणी से किया बाहर
संस्कृति विभाग ने 2013 में नोटिफिकेशन जारी कर नाटक को पॉपुलर श्रेणी की विधा मानकर इसे किराए की छूट से बाहर कर दिया। सिर्फ गायन, वादन और नृत्य से संबंधित गतिविधियों को ही छूट के दायरे में शामिल किया गया। विभाग का तर्क है कि इन विधाओं में दर्शक संख्या काफी कम रहती है। इसलिए इन्हें संरक्षण की जरूरत है। वहीं, कलाकारों का कहना है कि अधिकांश ग्रुप नि:शुल्क ही शो करते हैं। यदि किसी शो में किराया लिया भी जाता है तो अधिकतम पचास रुपए शुल्क लिया जाता है। इससे थिएटर का किराया भी वसूल नहीं होता। उसमें कई शो में तो दर्शक शो देखने भी नहीं आते। थिएटर ग्रुप्स दर्शक जुटाने के लिए खासी मशक्कत करना पड़ती है।
रवीन्द्र भवन में थिएटर को छोड़कर अन्य कला गतिविधियों के लिए किराए में छूट दी जाती है। शहीद भवन का किराया भी दर्शक क्षमता के हिसाब से बहुत ज्यादा है। इस कम किया जाना चाहिए। थिएटर आर्टिस्ट वैसे भी कठिनाइयों का सामना कर शो करता है। उसे किराए की मार से मुक्त करना चाहिए।
राजीव वर्मा, वरिष्ठ रंगकर्मी

भारत भवन में पहले नाटकों के लिए पचास प्रतिशत तक किराए में छूट दी जाती है। भारत भवन में बैन होने के कारण अब रवीन्द्र भवन और शहीद भवन ऑडिटोरियम ही ऑप्शन है। उसमें एसडीएम अनुमति और ज्यादा किराए का पेंच है। सरकार को थिएटर को बढ़ावा देने के लिए इस ओर ध्यान देना चाहिए।
दिनेश नायर, वरिष्ठ रंगकर्मी

रवीन्द्र भवन का किराया ज्यादा होने के कारण हम अक्सर शहीद भवन में ही शो करते हैं, लेकिन ज्यादा दर्शक क्षमता काफी कम है। संस्कृति विभाग जब अन्य कलाओं को बढ़ावा देने के लिए छूट दे सकता है तो थिएटर को इससे बाहर नहीं रखना चाहिए। वैसे भी एक शो करने के लिए काफी बड़ी टीम और पैसे की जरूरत होती है।
सौरभ अनंत, रंगकर्मी

रवीन्द्र भवन में कला गतिविधियों के लिए एसडीएम की अनुमति समझ से परे हैं। कलाकार वहां कौन सा धरना-प्रदर्शन करेंगे। अधिकांश नाटकों के लिए दर्शकों से किस तरह का शुल्क भी नहीं लिया जाता। इतना अधिक किराया होने के कारण कई रंगकर्मी वहां शो करने से बचते हैं।
अशोक बुलानी, वरिष्ठ रंगकर्मी

गायन, वादन और नृत्य जैसी गतिविधियों के संरक्षण और बढ़ाना देने के लिए किराए में छूट दी जाती है। नाटक देखने के लिए वैसे भी काफी भीड़ जुटती है। इसलिए इसे छूट की श्रेणी से बाहर रखा गया है।
पंकज राग, प्रमुख सचिव, संस्कृति विभाग
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