भोपाल के ओंकोलॉजिस्ट डॉ. अतुल समैया ने लोगों को शांत कराया। उन्होंने रिसर्च के आधार पर ये बताने की कोशिश की कि टॉवर की बजाय आपके आसपास मौजूद मोबाइल और उसका गलत तरह से उपयोग खतरनाक है। ये ब्रेन हेमरेज का कारण बन सकता है। इसी तरह की कई अन्य गंभीर बीमारियां भी गिरफ्त में ले सकती हैं।
गौरतलब है कि राजधानी में मोबाइल टॉवर स्थापना का विरोध कम करने टेलीकम्युनिकेशन डिपार्टमेंट ने एक्सपट्र्स और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोटर््स के आधार पर बुधवार से एक जागरुकता कार्यक्रम शुरू किया है। वर्कशॉप में सीनियर डिप्टी डायरेक्टर जनरल एलएसए टीके पॉल, डिप्टी डायरेक्टर जनरल कंप्लायंस डीओटी विनोद गुप्ता, आंध्रप्रदेश से आए एवं ग्रेस कैंसर फाउंडेशन से जुडे ओंकोलॉजिस्ट डॉ. सुरेश वीएस अटीली समेत कई एक्सपट्र्स ने रेडिएशन को नकारने वाले तमाम तथ्य प्रस्तुत किए।
टावर के शोर का सवाल पर बोले- ये राज्य सरकार का मामला
यहां सवाल उठा कि मोबाइल टावर ध्वनि प्रदूषण का कारण भी है। इस पर सीनियर डिप्टी डायरेक्टर जनरल एलएसए टीके पॉल ने जवाब दिया कि हमारा डिपार्टमेंट रेडिएशन से जुड़े मामले में ही स्थिति स्पष्ट कर सकता है। ध्वनि प्रदूषण समेत टावर स्थापना स्ट्रक्चर का मामला राज्य सरकार के पास है।
– विदेशों में टावर की फ्रिक्वेंसी 10 से 12 वॉट होती है, जबकि हमारे यहां एक वॉट से भी कम तय है।
– टावर एंटिना की दिशा भी बदलना हो तो टेलीकॉम कंपनियों को डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (डीओटी) से अनुमति की जरूरत होती है।
– विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक भी रिपोर्ट में मोबाइल टावर रेडिएशन को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक नहीं माना।
– हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर जताया कि रेडिएशन के मामले कोर्ट ने खारिज किए हैं।
– रेडिएशन पर मानक बेहतर हंै इसलिए खतरे वाली बात नहीं।
अनसुलझे सवाल
– जब रेडिएशन को लेकर अध्ययन चल रहे हैं तो फिर कैसे कहा जा सकता है कि ये खतरनाक नहीं है?
– मोबाइल से उत्पन्न एनर्जी लिमिट यानी एसएआर शहर में जाती है तो फिर कैसे कह सकते हैं कि ये शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाती?
– मोबाइल टावर स्थापना से लेकर इसके रेडिएशन समेत अन्य प्रदूषण अलग-अलग विभाग के पास क्यों?