जल निगम 2012 में बना था। तब से सात साल में जल निगम ने महज 700 गांवों की आबादी तक पानी पहुंचाया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। औसत काम की स्थिति में भी यह संख्या चार गुना से ज्यादा होनी चाहिए थी।
– प्रदेश की बनेगी कुंडली
कमलनाथ सरकार वॉटर ऑडिट के तहत शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में जल स्त्रोतों की कुंडली तैयार कराएगी। इसमें कौन सा जल स्त्रोत कब बना, कितना खर्च रहा, अभी की स्थिति, क्षमता और आगे का आकलन देखा जाएगा। ऐसे मामलों पर जांच बैठाई जाएगी, जिनमें भारी खर्च के बावजूद स्थिति खराब है।
– जिस तालाब में मवेशी नहाते, उसका पानी पीते हैं लोग
दमोह जिला मुख्यालय से करीब 48 किलोमीटर दूर दहागांव के जिस तालाब में मवेशी नहाते हैं, ग्रामीण उसी का पानी को पीने के लिए मजबूर हैं। 800 की आबादी वाले इस गांव में ज्यादातर गोंड जनजाति के लोग रहते हैं। गांव के सभी छह हैंडपंप सूख चुके हैं। कमोबेश इस पूरे इलाके में हालात ऐसे ही हैं। दमोह के तेंदूखेड़ा ब्लॉक में करीब 100 से अधिक गांव पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इस इलाके में लोगों को 2-3 किमी दूर जाकर एक बाल्टी पानी मिल पाता है।
* ये है 15 साल का ट्रेक रेकॉर्ड
– शहरों में ऐसे हाल
378 नगरीय निकाय प्रदेश में
197 निकायों में ही पेयजल योजना पूरी
181 निकायों में पेयजल योजना अधूरी
150 करोड़ से ज्यादा पानी परिवहन पर खर्च
15787 नल-जल योजनाएं गांवों में
1450 नल-जल योजनाएं पूर्णत: बंद
600 योजनाएं भू-जलस्तर गिरने से बंद
166 योजनाएं लाइन क्षतिग्रस्त होने से बंद
327 योजनाएं जीर्ण-शीर्ण होने से बंद
596 योजनाएं जल स्त्रोत फेल होने से बंद
96 निकायों में एक दिन छोड़कर जलापूर्ति
62 निकायों में दो दिन छोड़कर जलापूर्ति
38 निकायों में तीन दिन छोड़कर जलापूर्ति * पांच साल में पेयजल पर खर्च
वर्ष- शहर- गांव
2018-19 : 91 – 2100
2017-18 : 190 – 1600
2016-17 : 122 – 2599
2015-16 : 1358 – 2242
2014-15 : 651 – 1250
(राशि करोड़ रुपए में। पानी के परिवहन पर औसत 150 करोड़ रुपए सालाना अतिरिक्त।)
– सुखदेव पांसे, मंत्री, पीएचई