ये कलाकार नहीं आ पाए
समारोह में लेखक स्वयंप्रकाश, उर्दूलेखक मुजफ्फर हनफी, नाट्यकर्मी पापिया दास गुप्ता और कन्हैयालाल कैथवास का सम्मान उनकी अनुपस्थिति में सम्मानित विभूतियों के प्रतिनिधियों ने ग्रहण किया। अलंकरण समारोह में वर्ष 2016, 2017 और 2018 के सम्मान प्रदान किए गए। सम्मानित लेखकों व कलाकारों को एक-एक लाख रुपए की राशि, सम्मान पट्टिका भेंट की गई। प्रस्तुति से पहले शिखर सम्मान रूपंकर कलाएं, आदिवासी एवं लोक कलाओं के क्षेत्र में सम्मानित चित्रकारों एवं शिल्पकारों की प्रदर्शनी रंगदर्शिनी दीर्घा में शुरू हुई।
समारोह में लेखक स्वयंप्रकाश, उर्दूलेखक मुजफ्फर हनफी, नाट्यकर्मी पापिया दास गुप्ता और कन्हैयालाल कैथवास का सम्मान उनकी अनुपस्थिति में सम्मानित विभूतियों के प्रतिनिधियों ने ग्रहण किया। अलंकरण समारोह में वर्ष 2016, 2017 और 2018 के सम्मान प्रदान किए गए। सम्मानित लेखकों व कलाकारों को एक-एक लाख रुपए की राशि, सम्मान पट्टिका भेंट की गई। प्रस्तुति से पहले शिखर सम्मान रूपंकर कलाएं, आदिवासी एवं लोक कलाओं के क्षेत्र में सम्मानित चित्रकारों एवं शिल्पकारों की प्रदर्शनी रंगदर्शिनी दीर्घा में शुरू हुई।
भरतनाट्यम से बांधा समां
इस दौरान शिखर सम्मान से सम्मानित भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. लता सिंह मुंशी व तबला वादक पं. विजय घाटे ने अपनी प्रस्तुति से सभी का दिल जीत लिया। एक घंटे की इस प्रस्तुति की शुरुआत भरतनाट्यम से हुई। डॉ. लता सिंह मुंशी ने शिष्याओं के साथ भरतनाट्यम की मनमोहक प्रस्तुति दी। 30 मिनट की इस प्रस्तुति की शुरुआत उन्होंने विष्णु वंदना शांताकारम भुजगशयनम पर दी। इसके बाद उन्होंने भो शंभू, बंदिश पर नृत्य प्रस्तुति दी। प्रस्तुति का अंत नृत्यांगनाओं ने देवी दुर्गा पर केंद्रित तेजा-तेजा बंदिश के साथ किया। इसके बाद पं. विजय घाटे ने तबले की थाप से उपस्थित श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
इस दौरान शिखर सम्मान से सम्मानित भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. लता सिंह मुंशी व तबला वादक पं. विजय घाटे ने अपनी प्रस्तुति से सभी का दिल जीत लिया। एक घंटे की इस प्रस्तुति की शुरुआत भरतनाट्यम से हुई। डॉ. लता सिंह मुंशी ने शिष्याओं के साथ भरतनाट्यम की मनमोहक प्रस्तुति दी। 30 मिनट की इस प्रस्तुति की शुरुआत उन्होंने विष्णु वंदना शांताकारम भुजगशयनम पर दी। इसके बाद उन्होंने भो शंभू, बंदिश पर नृत्य प्रस्तुति दी। प्रस्तुति का अंत नृत्यांगनाओं ने देवी दुर्गा पर केंद्रित तेजा-तेजा बंदिश के साथ किया। इसके बाद पं. विजय घाटे ने तबले की थाप से उपस्थित श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
हिंदी साहित्य
2016: स्वयं प्रकाश, भोपाल
2017: नरेन्द्र जैन, उज्जैन
2018: शशांक, भोपाल उर्दू साहित्य
2016:डॉ. मुजफ्फर हनफी, दिल्ली
2017: डॉ. राहत इन्दौरी, इंदौर
2018: प्रो. सादिक अली, दिल्ली संस्कृत साहित्य
2016: डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी, भोपाल
2017: प्रो. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी, वाराणसी
2018: डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी, जबलपुर
2016: स्वयं प्रकाश, भोपाल
2017: नरेन्द्र जैन, उज्जैन
2018: शशांक, भोपाल उर्दू साहित्य
2016:डॉ. मुजफ्फर हनफी, दिल्ली
2017: डॉ. राहत इन्दौरी, इंदौर
2018: प्रो. सादिक अली, दिल्ली संस्कृत साहित्य
2016: डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी, भोपाल
2017: प्रो. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी, वाराणसी
2018: डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी, जबलपुर
शास्त्रीय नृत्य
2016: विभा दाधीच, इंदौर
2017: डॉ. सुचित्रा हरमलकर, इंदौर
2018: डॉ. लता सिंह मुंशी, भोपाल शास्त्रीय संगीत
2016: पं. सिद्धराम स्वामी कोरवार, भोपाल
2017: पं. किरण देशपांडे, भोपाल
2018: पं. विजय घाटे, पुणे रूपंकर कलाएं
2016: आरसी भावसार, उज्जैन
2017: निर्मला शर्मा, भोपाल
2018: सीमा घुरैया, भोपाल
2016: विभा दाधीच, इंदौर
2017: डॉ. सुचित्रा हरमलकर, इंदौर
2018: डॉ. लता सिंह मुंशी, भोपाल शास्त्रीय संगीत
2016: पं. सिद्धराम स्वामी कोरवार, भोपाल
2017: पं. किरण देशपांडे, भोपाल
2018: पं. विजय घाटे, पुणे रूपंकर कलाएं
2016: आरसी भावसार, उज्जैन
2017: निर्मला शर्मा, भोपाल
2018: सीमा घुरैया, भोपाल
नाटक
2016: पापिया दासगुप्ता, भोपाल
2017 लोकेन्द्र त्रिवेदी, दिल्ली
2018: कन्हैयालाल कैथवास, उज्जैन आदिवासी एवं लोक कलाएं
2016: ललताराम मरावी, डिंडौरी
2017: लक्ष्मी त्रिपाठी, छतरपुर
2018: लाडो बाई, भोपाल दुर्लभ वाद्य वादन
2016: मैहर वाद्यवृन्द, मैहर
2017: सुवीर मिश्र, मुम्बई
2018: संजय पंत आगले, इंदौर
2016: पापिया दासगुप्ता, भोपाल
2017 लोकेन्द्र त्रिवेदी, दिल्ली
2018: कन्हैयालाल कैथवास, उज्जैन आदिवासी एवं लोक कलाएं
2016: ललताराम मरावी, डिंडौरी
2017: लक्ष्मी त्रिपाठी, छतरपुर
2018: लाडो बाई, भोपाल दुर्लभ वाद्य वादन
2016: मैहर वाद्यवृन्द, मैहर
2017: सुवीर मिश्र, मुम्बई
2018: संजय पंत आगले, इंदौर