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दिल्ली से अऱब की यात्रा.. समय बीत गया लेकिन इफ्तार नहीं कर पाए.. पढ़ें यात्री की सच्ची कहानी!

locationभोपालPublished: May 18, 2018 03:31:55 pm

एक तो हम हज़ को जा रहे थे। हमने रोजा खोलने के लिए बताये हुए समय पर इफ्तार की तैयारी कर बैठे हुए थे, समय बीत गया लेकिन सूरज नहीं डूबा।

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दिल्ली से अऱब की यात्रा.. समय बीत गया लेकिन इफ्तार नहीं कर पाए.. पढ़ें यात्री की सच्ची कहानी!

भोपाल। रमजान का दिन था, कुछ पांच-एक मिनट बचे थे इफ्तार करने को। सामने खजूर चिप्स और इफ्तारी का दूसरा अन्य समान सजा कर रोजा खोलने का इंतजार कर रहे थे। मात्र पांच मिनट बचा हुआ था, रमजान का रोजा.. और पांच मिनट गुजर गया.. सूरज नहीं डूबा। इंतजार अभी लंबा था.. वह रोजा खोलने के इंतजार में दो घण्टे बैठा रहा।

लंबे दो घण्टे के इंतजार के बाद सूरज ने डुबकी लगाई, तब जा कर कहीं इफ्तार हो पाया। वाक्या इतना दिलचस्प तो नहीं लगाता लेकिन अगर आपको यह पता चले की यह घटना तब घटी जब वह व्यक्ति दिल्ली से अरब की यात्रा कर रहा था विमान मार्ग से।

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यादगार रोजा..

राजधानी भोपाल के इब्राहीमपुरा निवासी मुफ्ती जिया उल्ला कासमी ने बताया की यह रोजा उनके लिए यादगार बन गया है। एक तो हम हज़ को जा रहे थे। हमने रोजा खोलने के लिए बताये हुए समय पर इफ्तार की तैयारी कर बैठे हुए थे, समय बीत गया लेकिन सूरज नहीं डूबा। इफ्तारी नहीं हो पाई। कासमी बताते हैं की, उन्हे कहीं कहीं अंदर से लग रहा था की क्या खुदा उनकी परीक्षा ले रहा है। उन्होने अल्लाह पर भरोसा रखा।

दो घंटे का इंतजार

कासमी के अनुसार वे और बाकी विमान में सवार सभी लोगों को अल्लाह पर पूरा भरोसा था, उन्होने इंतजार किया। करीब दो घंटे के इंतजार के बाद सूरज कहीं जा कर डूबा। फिर सभी ने खुशी के साथ इफ्तारी की।

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10 की उम्र से रख रहे रोजा..

कासमी बताते हैं कि उन्होने पहला रोजा 10 साल की उम्र में रखा था। आज उन्हे रोजा रखते 30 साल से अधिक समय हो गया है लेकिन वे आज भी प्रत्येक रमजान रोजा रखते हैं। कासमी कहते हैं की ऐसे बहुत से मौके आए हैं जब जिंदगी की भागदौड़ से थोड़ी परेशानी हुई है। लेकिन चाहे कुछ भी हो गया उन्होने रोजा नहीं छोड़ा।

अल्लाह पर पूरा भरोसा..

कासमी अल्लाह को सारे दुखों की दवा मानते हैं। उन्हे अल्लाह पर पूरा भरोसा है। वे कभी यह भी कहते हैं की यात्रा के दौरान जो उनके साथ हुआ वो अल्लाह के द्वारा लि हुई परीक्षा है। पहले पूर्वज जब हज़ की यात्रा पर जाते थे तो कठीन परेशानियों का सामना करते हुए जाते थे। आज सुविधाऐं बढ़ गई है। लेकिन वह दो घंटे का इंतजार अल्लाह की फज़ल थी। ये घटना आज भी मेरे जेहन में हैं।

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