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Video: बदहाल शिक्षा व्यवस्था को लेकर ये है शिक्षाविदों की राय…

locationभोपालPublished: Aug 03, 2018 06:55:41 pm

पत्रिका की खबर के बाद सामने आए शिक्षाविदों के ये रिएक्शन…

MP Education

बदहाल शिक्षा व्यवस्था को लेकर ये है शिक्षाविदों की राय…

भोपाल। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे है। इसी को लेेकर पत्रिका में 3 अगस्त 2018 को प्रकाशित खबर ’33 फीसदी बच्चे अब भी फेल हो रहे,पर शिक्षकों की कमी दूर करने के प्रयास नहीं’ हैडिंग से लगी खबर के बाद अब प्रदेश भर से शिक्षाविदों के रिएक्शन सामने आने शुरू हो गए हैं।

दरअसल इस खबर में बताया गया था कि तमाम दावों के बावजूद कक्षा 10वीं और 12वीं में फेल होने वाले बच्चों का प्रतिशत 33 से कम नहीं हो पा रहा है। वर्ष 2013 में दसवीं में राजगढ़ जिला अव्वल था। 2018 में यह 12वें नंबर पर खिसक गया। इस साल टॉपर बना देवास 2013 में 7वें नंबर पर था। 12वीं के परीक्षा परिणाम में 2013 में टॉपर दमोह फिसलकर 2018 में 10वें नंबर पर आ टिका।

इसके अलावा प्रदेश का एक भी जिला पांच साल में शिक्षा का मॉडल नहीं बन पाया। टॉपर जिले रैंकिंग और परिणाम में गिरे। शिक्षकों की कमी जस की तस है। बिजली, पानी, मैदान की व्यवस्था में 5 साल में खास बदलाव नहीं हुए। 2012-13 के बाद शिक्षक भर्ती नहीं होने से 14 लाख छात्र अतिथि शिक्षकों के सहारे हैं।

वहीं इस संबंध में स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी का कहना था कि पांच वर्ष में स्कूल भवन, शौचालय, शिक्षकों की व्यवस्था, विद्यालयों में बिजली-पानी की व्यवस्था पर बहुत काम हुआ है। अध्यापकों का संविलियन किया है। मेधावी छात्र योजना, लैपटॉप वितरण योजना और कोचिंग से छात्रों का भविष्य उज्ज्वल हुआ है।

इस खबर के प्रकाशित होने के बाद प्रदेश के कई जिलों के शिक्षाविदों ने इस पर अपनी राय पत्रिका के साथ साझा की…
रायसेन : रायसेन शहर के शिक्षाविद् सेवानिवृत्त प्राचार्य आरएस दुबे का कहना है कि पत्रिका ने जो सकारात्मक पहल कर शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। वास्तव में वह काबिले तारीफ है।इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम होगी। उन्होंने बताया कि सामाजिक परिवेश में पढ़ाई के प्रति एक अच्छा माहौल व सहपाठी की जरूरत पड़ती है। आधुनिक युग में तमाम हाईटैक संसाधनों के बढऩे से उनकी पढ़ाई पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है। बच्चों को बजाय कोचिंग में पढ़ाई कराने की बजाय घर पर उनके सहपाठियों द्वारा पढ़ाई कर नोट्स बनाकर उन पर पढ़ाई कराने की बेहद जरूरत है। इन सब गड़बड़ी के प्रति अभिभावक समाज भी जिम्मेदार है।

सीहोर : वहीं सीहोर की रिटायर्ड शिक्षिका प्रेमलता शर्मा का कहना है कि शिक्षा में सुधार के लिए सबसे पहले स्कूलों में शिक्षकों की कमी को पूरा करना होगा। इसके साथ ही विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की पूर्ति करना होगा। शिक्षको को अन्य कार्य में लगा दिया जाता है। इन्हे अन्य काम से हटाकर मात्र शिक्षा पर ही लगाना चाहिए, तभी शिक्षा में सुधार हो सकता है।

इनके अलावा सीहोर के ही उत्कृष्ट विद्यालय के प्राचार्य आरके बांगरे के मुताबिक कक्षा एक से आठ तक कक्षा उन्नयन किए जाने से शिक्षण कार्य में कमजोर विद्यार्थी भी उच्च कक्षा में पहुंच जाते हैं। इस कारण बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। सरकार ऐसे विद्यार्थियों को भी अन्य विद्यार्थियों के ज्ञान के करीब लाने प्रयास कर रही है, लेकिन अभी पूरी तरीके से परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं। इसके चलते उच्च कक्षाओं में कमजोर विद्यार्थियों के पहुंचने से परीक्षा के परिणाम में अंतर आ रहा है।

विदिशा: वहीं विदिशा के प्रोफेसर मणि मोहन मेहता ने कहा है कि पत्रिका मैं आज प्रमुखता से प्रकाशित स्कूल शिक्षा की खबर काफी चिंतनीय है। खासकर उसमें जो आंकड़े दिए गए हैं वह चिंता का विषय है, लेकिन मेरी चिंता इस से भी आगे की है। स्कूलों में केवल पास फेल होने से भी बढ़कर बात यह है कि स्कूल शिक्षा का स्तर सुधारा जाए इसके लिए स्कूलों में शिक्षकों की कुर्ती सबसे महत्वपूर्ण है।

अधोसंरचना बेहतर होना जरूरी है, लेकिन उससे भी पहले शिक्षकों की पूर्ति होना आवश्यक है। जो शिक्षक हैं उन्हें भी गैर शैक्षिक कार्यों मैं उलझा रखा है, ऐसे में वह अध्ययन अध्यापन नहीं करा पाते हैं। जरूरी है कि स्वच्छता अभियान की तरह ही स्कूली शिक्षा अभियान शुरू किया जाए जिसमें शासन-प्रशासन शिक्षक पालक और विद्यार्थियों को शामिल कर स्कूल शिक्षा को बेहतर करने का अभियान चलें।
राजगढ़: शिक्षा क्षेत्र से जुड़े राकेश पांडे कहते हैं कि शासन द्वारा योजनाएं चलाना ही नहीं बल्कि उसकी मॉनिटरिंग बहुत जरूरी है। विषय विशेषज्ञों की पूर्ति, अतिथि शिक्षकों की समय पर नियुक्ति, और शिक्षक समय पर स्कूल आएं और जाएं। यह भी नियमित देखना जरूरी है। पत्रिका ने इस मुद्दे को उठाया है इसके बेहतर परिणाम जरूर आएंगे।

गुना: पूर्व प्राचार्य हायर सेकेंडरी स्कूल घनश्याम श्रीवास्तव का कहना है कि शिक्षकविहीन स्कूलों में शिक्षकों की व्यवस्था नहीं की जा रही है। शिक्षक भी समय पर नहीं आ रहे हैं। अब स्कूल के समय से शिक्षक नहीं, शिक्षक के समय से स्कूल खुलते हैं। शिक्षा अधिकारी और प्रशासन भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। इससे शिक्षा का स्तर गिर रहा है। शिक्षकों की भी भर्ती नहीं की जा रही है।

ये था खबर में…
प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे है। कक्षा 10वीं और 12वीं में फेल होने वाले बच्चों का प्रतिशत 33 से कम नहीं हो पा रहा है। वर्ष 2013 में दसवीं में राजगढ़ जिला अव्वल था। 2018 में यह 12वें नंबर पर खिसक गया। इस साल टॉपर बना देवास 2013 में 7वें नंबर पर था। महज 28.47 प्रतिशत नतीजे के साथ आखिरी पायदान पर रहे शिवपुरी का परिणाम सुधरा तो, लेकिन वह टॉप टेन जिलों की रेस से काफी दूर रहा।

वहीं 12वीं के परीक्षा परिणाम में 2013 में टॉपर दमोह फिसलकर 2018 में 10वें नंबर पर आ टिका। फिसड्डी शिवपुरी जिले की स्थिति में ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ। यह लगातार निराशाजनक प्रदर्शन ही कर रहा है। 2018 में आखिरी पायदान पर मुरैना रहा। 2013 में 17वें स्थान पर रहे अशोकनगर ने 84 फीसदी से अधिक परिणाम के साथ 2018 में अव्वल बना।

शिक्षा का मॉडल नहीं बन पाया…
प्रदेश का एक भी जिला पांच साल में शिक्षा का मॉडल नहीं बन पाया। टॉपर जिले रैंकिंग और परिणाम में गिरे। शिक्षकों की कमी जस की तस है। बिजली, पानी, मैदान की व्यवस्था में 5 साल में खास बदलाव नहीं हुए। 2012-13 के बाद शिक्षक भर्ती नहीं होने से 14 लाख छात्र अतिथि शिक्षकों के सहारे हैं। आदिवासी क्षेत्रों में हालत बदतर हैं। सांसद जनार्दन मिश्रा ने लोकसभा में कहा, शिक्षा विभाग स्कूलों को काम चलाऊ ढंग से चला रहा है।

शौचालय खूब बने पर पानी व सफाई नहीं…
सरकारी दावों के मुताबिक प्रदेश के 95 फीसदी स्कूलों में शौचालय बनाए जा चुके हैं। 2013 की तुलना में यह 35 फीसदी अधिक हैं। तब 60 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय थे, लेकिन सच्चाई यह है कि बड़ी संख्या में शौचालय ऐसे हैं जो काम नहीं करते।

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