दरअसल इस सीट पर कृष्णा गौर को प्रत्याशी बनाए जाने की बात सामने आते ही कृष्णा गौर के विरोध मे तपन भौमिक के समर्थक
BJP कर्यालय जा पहुंचे और विरोध करने लगे। यहां उन्होंने भाजपा कार्यालय में वंशवाद हाय हाय और वंशवाद नहीं चलेगा नहीं चलेगा के नारे लगाए। इसके बाद बैठे तपन समर्थक धरने पर बैठ गए।
वहीं इससे पहले मप्र पर्यटन विकास निगम अध्यक्ष तपन भौमिक ने भोपाल की गोविंदपुरा सीट से यह कहते हुए दावा ठोका था कि मैं गौर का असली उत्तराधिकारी हूं। दरअसल चुनाव से पहले या यूं कहें टिकट घोषित होने से पहले चल रही खींचतान के बीच गोविंदपुरा सीट पर कईयों की नज़र लगी हुई थी।
ऐसे मिला कृष्णा गौर को टिकट!…
राजनीति के जानकारों की माने तो गोविंदपुरा जैसी हाईप्रोफाइल सीट को भाजपा किसी भी स्थिति में हारने को तैयार नहीं थी। ऐसे में बाबूलाल के विरोध में आने से भाजपा के लिए लगातार मुश्किलें बढ़ती जा रहीं थी, लेकिन भाजपा पूरी तरह से कमजोर भी नहीं दिखना चाहती थी इसी को लेकर टिकट कृष्णा गौर को दिया गया।
गोविंदपुरा सीट का इतिहास…
गोविंदपुरा सीट के 88 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर अपराजय योद्धा हैं। प्रदेश में मुख्यमंत्री बदले, लेकिन 1974 के बाद से गोविंदपुरा का विधायक नहीं बदला। वे कहते भी है कि अकेले विकास से वोट नहीं मिला करते। चुनाव में विकास से ज्यादा आपका व्यवहार देखा जाता है।
ज्ञात हो कि गोविंदपुरा विधानसभा सीट भोपाल जिले में आती है। यहां के 50 फीसदी वोटर्स पिछड़ी जाति से है। ये
बीजेपी के परंपरागत वोटर हैं। गोविंदपुरा के सियासी इतिहास की बात की जाए तो बाबूलाल गौर यहां पहली बार 1974 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे थे और तीर-कमान चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़कर पहली बार में ही जीत हासिल की।
पूर्व मुख्यंत्री बाबूलाल गौर के अभेद किले को भेदने के लिए हर बार कांग्रेस ने ऐढ़ी-चोटी का जोर लगाया। कभी स्थानीय तो कभी बाहरी प्रत्याशी को तक को मैदान में उतारा। लेकिन हर बार कांग्रेस को कड़ी शिकस्त खानी पड़ी।
इन्हें भी दी थी शिकस्त…
– इसके बाद 1998 के चुनाव में बाबूलाल गौर ने कांग्रेस के करनैल सिंह को हराया।
– 2003 में उन्होंने कांग्रेस के शिवकुमार उरमलिया को शिकस्त दी।
– वहीं 2008 के चुनाव में बाबूलाल गौर ने कांग्रेस की विभा पटेल को हराकर विधानसभा पहुंचे।
– 2013 में गौर फिर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े। इस बार उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी गोविंद गोयल को हराया। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 1 लाख 16 हजार 586 वोट मिले। वहीं कांग्रेस महज 45 हजार 942 वोट ले सकी। जीत का अंतर 70 हजार 644 रहा।
पहली बार 1974 में तीर कमान, इसके बाद जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते आ रहे बाबूलाल गौर की इस सीट पर इस बार उनकी पुत्र वधु कृष्णा गौर को भाजपा की ओर से टिकट दिया गया है। ऐसे में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि वे अपने ससूर की ये पकड़ बरकरार रख पातीं हैं या नहीं!