गौरतलब है कि मप्र सरकार ने कारखाना स्थापित करने के लिए 27 नवम्बर 1957 के भू-अर्जन अधिनियम 11 के अंतर्गत अवॉर्ड पारित किया था। इसमें एचईएल को दो हजार एकड़ जमीन दी थी।
इससे पहले 25 अक्टूबर 1956 को भू-अभिलेख और भूमि अधिग्रहण अधिकारी व केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी चीफ इंजीनियर हैवी इलेक्ट्रिकल्स प्राइवेट लिमिटेड ने कब्जे के संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। अधिग्रहण की गई भूमि का सम्मपूर्ण मुआवजा राज्य सरकार द्वारा दिया गया। एचईएल को कब्जा मात्र दिया गया था। उक्त जमीन का मालिकाना हक आज भी राज्य सरकार के पास है। भूमि की ट्रांसफर डीड, टर्म एवं कंडीशन फाइनल नहीं हुई थी, इसके बाद भी एचईएल द्वारा कब्जे वाली भूमि पर कारखाने का काम शुरू कर दिया गया।
कब्जेधारी कंपनी एचईएल के पक्ष में केंद्र सरकार ने राजपत्र में प्रकाशन भी करा लिया। वर्ष 1976 में केंद्र सरकार ने बीएचईएल नाम की एक नई कंपनी बनाई। भोपाल यूनिट को इसकी मदर यूनिट बनाई गई। एक समझौते के तहत वर्ष 1974 में एचईएल बीएचईएल में मर्ज हो गई। भोपाल की मदर यूनिट को छोडकऱ अन्य यूनिटें इसमें समाहित हो गईं, पर भोपाल का मर्जर आज तक नहीं हुआ।
भेल को इसका मालिकाना हक नहीं मिला फिर भी एचईएल की जमीन और प्रापर्टी को खुद की संपत्ति मानने लगी। मजे की बात यह है कि उक्त जमीन आज तक न तो एचईएल के नाम है और न ही भेल को इसका मालिकाना हक सौंपा गया है।
भेल उक्त जमीन का डायवर्सन कराए बिना उसका वाणिज्यिक, कमर्शियल व रेसिडेंसियल उपयोग कर रही है। यह पूरी जमीन खेती की जमीन थी, जिसका बिना डायवर्सन कराए कमर्शियल, वाणिज्यिक व रेसिडेंसियल उपयोग नहीं किया जा सकता। ऐसे में एचईएल व भेल मिलकर राज्य सरकार के राजस्व कर की चोरी कर रही हैं।
लाइसेंस फीस के नाम पर कर रहे वसूली
राज्य सरकार से अनुमति लिए बिना ही भेल क्षेत्र में बनाई गई दुकानों, मकानों का भेल द्वारा आवंटन कर दिया गया। जमीन पर भेल का मालिकाना हक नहीं होने के बाद भी मकानों और दुकानों से लाइसेंस फीस के नाम पर वसूली की जा रही है।
इस मामले में कस्तूरबा भेल व्यापारी समिति के अध्यक्ष चिमनलाल आर्य ने महामहिम राष्ट्रपति महोदय और मध्य प्रदेश की महामहिम राज्यपाल महोदय को एक पत्र लिखकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया है। इसमें भेल भोपाल के दुकानदारों को मालिकाना हक देने की मांग की है।
इनका कहना है कि भेल लाइसेंस फीस एवं सिक्योरिटी डिपोजिट के तौर पर दुकानदारों को दी गई भूमि व दुकान की उस वक्त के बाजार मूल्य का 20 गुना से अधिक राशि वसूल चुकी है, फिर भी दुकानदारों को मलिकाना हक नहीं दिया गया।
कंपनी के कब्जे वाली जमीन पर अतिक्रमण
भेल के कब्जे वाली जमीन पर लगातार अतिक्रमण किया जा रहा है। इसे रोकने के लिए भेल ने कई बार अतिक्रमणकारियों को नोटिस तो जारी किया पर हर बार कार्रवाई करने से पीछे हटती रही। अन्ना नगर झुग्गी बस्ती में वर्ष 1970 से लोगों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है, जिसे आज तक भेल के संपदा अधिकारी खाली नहीं करा पाए।
हर बार सिर्फ नोटिस जारी कर मामले को टरका दिया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई ऐसी झुग्गी बस्तियां और कॉलोनियां हैं जो भेल के कब्जे वाली जमीन पर अतिक्रमण कर बनाई गई हैं।
मध्य प्रदेश सरकार ने बीएचईएल को लीज पर जमीन दे रखी है। इस जमीन पर भेल द्वारा फैक्ट्री, टाउनशिप, मार्केट की दुकानें आदि की व्यवस्था की गई है। भेल द्वारा दुकानदारों को लाइसेंस के आधार पर दुकानें आवंटित की गई हैं। ऐसे में इसकी जो लाइसेंस फीस होगी उसे भेल को वसूलने का अधिकार है।
राघवेंद्र शुक्ला, पीआरओ भेल भोपाल