रास्ते में एक दुकान पर खड़े कांग्रेस के पराजित प्रत्याशी चन्द्रमोहन नागोरी ने देखा कि इनका जुलूस आ रहा है तो उन्होंने तत्काल माला मंगवाई। मेरे पिता भी नागौरी को देखकर गाड़ी से उतर गए। दोनों ने एक-दूसरे को माला पहनाई और गर्मजोशी से गले मिले।
आज भी दोनों परिवारों के घनिष्ठ संबंध हैं। ये यादें गंगाराम बांदिल के पुत्र और भाजपा नेता अशोक बांदिल ने ‘पत्रिका’ से चर्चा में ताजा कीं। उन्होंने बताया कि पिताजी का जुलूस डीडवाना ओली में नागौरी के निवास के सामने से निकला तो कुछ कार्यकर्ताओं ने नारे लगाना शुरू कर दिए।
कार्यकर्ताओं को बांदिल ने न केवल फटकार लगाई, बल्कि चुप भी कराया। तब नेताओं और कार्यकर्ताओं में अनुशासन भी होता था। बांदिल विधायक बनने के बाद लोगों से संपर्क में रहते थे। वे खुद लोगों की समस्याएं सुनने जाते थे।
सील और पैड उनकी जेब में ही रहता था। मौके पर ही किसी आवेदन पर सील सिक्का लगा देते थे। गंगाराम बांदिल के पास एक स्कूटर था। वे उसी पर चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे। एक स्कूटर पर ही चुनाव हो जाता था। (अशोक बांदिल ने जैसा राजेंद्र तलेगांवकर को बताया।)
जेल में तय हुए थे चुनाव के टिकट
आपातकाल के दौरान ग्वालियर सेंट्रल जेल में 1977 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए टिकट तय किए गए थे। जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने लश्कर पूर्व सीट से गंगाराम बांदिल का नाम तय कर लिया था, लेकिन बाद में किसी कारणवश उनके स्थान पर नरेश जौहरी के नाम की घोषणा की गई थी।
आपातकाल के दौरान ग्वालियर सेंट्रल जेल में 1977 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए टिकट तय किए गए थे। जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने लश्कर पूर्व सीट से गंगाराम बांदिल का नाम तय कर लिया था, लेकिन बाद में किसी कारणवश उनके स्थान पर नरेश जौहरी के नाम की घोषणा की गई थी।
इससे नाराज बांदिल के समर्थक उन पर दबाव डाल रहे थे कि आप निर्दलीय चुनाव लड़ें, लेकिन उन्होंने सभी को समझाया कि मेरे लिए पार्टी बड़ी है। हमें अब नरेश जौहरी को जिताने के लिए काम करना है। चुनाव में जौहरी ने कांग्रेस के जोगेन्द्र सिंह को हराया था। जौहरी को 24843 और जोगेन्द्र को केवल 7618 वोट मिले थे। गंगाराम बांदिल 1980 और 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जबर्दस्त लहर के बावजूद जीते।