सरकारी प्रोजेक्ट के अलावा आम आदमी के घर भी अक्षय ऊर्जा से रोशन होते जा रहे हैं। लोग इसे अपनाने लगे हैं, लेकिन अभी जरूरत सिर्फ इसके सस्ते होने की है। हालांकि इस दिशा में भी प्रयास किए जा रहे हैं।
वहीं प्रदेश में ग्रीन एनर्जी कॉरीडोर अक्षय ऊर्जा के उपयोग के लिए ही तैयार किया गया है। यह बन चुका है, जिसके तहत अब सौर ऊर्जा व अन्य ऊर्जा को सामान्य खपत में उपयोग किया जाएगा। बता दें कि रूफ टॉप सोलर पैनल के मामले में भोपाल काफी आगे है।
इस कॉरीडोर पर करीब 450 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। अक्षय ऊर्जा में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए सरकार नई नीति भी लाई है, ताकि इसका उपयोग बढ़े। बता दें कि रूफ टॉप सोलर पैनल के मामले में इंदौर-भोपाल काफी आगे है।
जरूरत इसलिए
बीते कुछ सालों से हर साल एक-दो बार कोयले के संकट के चलते थर्मल बिजली का संकट बढ़ जाता है। इस कारण वैकल्पिक ऊर्जा की जरूरत महसूस होने लगी है। दूसरी बड़ी वजह पर्यावरण को सामान्य ऊर्जा से होने वाले नुकसान से बचाना है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण को बचाने के लिए अक्षय ऊर्जा को बेहतर माना गया है। इसी कारण अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य के स्तर पर अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य भी तय किए गए हैं। इसमें राष्ट्रीय स्तर पर 175 गीगावॉट और मध्यप्रदेश के स्तर पर 12 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।
ये जरूरत: सौर ऊर्जा को सस्ती करना ही सबसे बड़ी जरूरत है। अभी सौर ऊर्जा का एक सामान्य पैनल 20 हजार रुपए तक का आता है। यदि यह सस्ता हो तो इसका उपयोग बढ़े। ऐसी ही स्थिति सौर ऊर्जा के सामान्य उपकरण, मशीनरी, उत्पादन संयंत्र मशीनरी और अन्य में है। हालांकि सरकार ने 60% तक अनुदान रखा है।
प्रदेश में वर्तमान में औसत 10 हजार मेगावाट की मांग है। इसमें बिजली आपूर्ति 90 से 95 फीसदी तक थर्मल बिजली के जरिए ही होती है। कुछ हिस्सा पनबिजली का है। बाकी सौर ऊर्जा और अन्य वैकल्पिक ऊर्जा बेहद कम हैं। थर्मल के बाद सौर ऊर्जा ही सबसे ज्यादा है। सूबे में अभी 22500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता का दावा है। आपूर्ति के मामले में 10 हजार मेगावाट की मांग में औसत 8500 से 9000 मेगावाट तक की आपूर्ति थर्मल से होती है।
वर्तमान में प्रदेश में 5000 मेगावाट अक्षय ऊर्जा (वैकल्पिक ऊर्जा) का उत्पादन हो रहा है। यहां 2030 तक 30 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का ही लक्ष्य रखा गया है, जबकि बाकी ऊर्जा मिलाकर 5 से 10 हजार मेगावाट और होना है। इसलिए 2030 तक अक्षय ऊर्जा 35 से 40 हजार मेगावाट तक पहुंच सकता है।
5000 मेगावाट अभी अक्षय ऊर्जा उत्पादन प्रदेश में 35 से 40 हजार मेगावाट तक ले जाने का लक्ष्य 50% खपत को सौर ऊर्जा में शिफ्ट करने का लक्ष्य 10 से 11 हजार मेगावाट औसत प्रदेश की मांग-खपत 22500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता के दावे अभी 90 से 95 फीसदी तक सामान्य ऊर्जा से ही खपत अभी प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा के प्लान तैयार किए जा रहे हैं। हमारा लक्ष्य कुल बिजली की खपत का 50% नवकरणीय ऊर्जा से पूरा करने का है।
– हरदीप सिंह डंप, मंत्री, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा, मप्र
प्रदेश में सौर ऊर्जा को सस्ता करने की जरूरत है, तभी आम आदमी अपनाएगा। हालांकि पहले की तुलना में सौर ऊर्जा सस्ती हुई है, लेकिन आम आदमी के उपयोग लायक नहीं बन सकी।
– सौरभ स्वामी, ऊर्जा विशेषज्ञ