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बड़ी खबरः सरकारी कर्मचारी के आरक्षण पर बड़ा फैसला, सरकार लागू कर सकती है प्रमोशन में आरक्षण

locationभोपालPublished: Jun 05, 2018 03:16:19 pm

Submitted by:

Manish Gite

बड़ी खबरः सरकारी कर्मचारी के आरक्षण पर बड़ा फैसला, सरकार लागू कर सकती है प्रमोशन में आरक्षण

 

भोपाल/नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में कई सालों से चल रहे प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि जब तक संविधान पीठ का इस मामले में फैसला नहीं आ जाता तब तक केंद्र सरकार प्रमोशन में आरक्षण को लागू कर सकती है। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार नियम के मुताबिक अनुसूचित जाति/जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन का लाभ दे सकती है। इधर, इस फैसले से आरक्षित वर्ग में खुशी की लहर दौड़ गई है। इन्हें अब जल्द ही पदोन्नत किया जा सकता है।


प्रमोशन में आरक्षण के कई केसों में से मध्यप्रदेश के भी केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं। इसके अलावा अन्य प्रदेशों के हाईकोर्ट भी अलग-अलग फैसले दे चुके हैं।

 

क्या हुआ आज दिल्ली में
केंद्र सरकार की तरफ से अतिरिक्त सलिसिटर जनरल (एसएसजी) मनिंदर सिंह ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि सरकारी कर्मचारी को प्रमोशन देना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग प्रदेशों के हाईकोर्ट के फैसलों के कारण राज्यों में प्रमोशन रुक गया है। इस पर कोर्ट ने कहा है कि सरकार अंतिम फैसला आने से पहले कानून के दायरे में अनुसूचित जाति- जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण का लाभ दे सकती है।

 

अटके पड़े हैं कई प्रमोशन
उल्लेखनीय है कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण के कई मामले अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्ट में लंबित है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण कई विभागों में सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है।कर्मचारी प्रमोशन के लिए चक्कर काट रहे हैं। केंद्र की यूपीए सरकार के समय से ही प्रमोशन में आरक्षण को लेकर घमासान चल रहा है।


दिग्विजय शासनकाल में लागू हुआ था नियम
तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने 2002 में प्रमोशन में आरक्षण नियम को लागू किया था, जो शिवराज सरकार ने भी लागू रखा था, लेकिन इस निर्णय को जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दे गई थी। इस पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 ही खारिज करने का आदेश दिया था। इसके बाद दोनों पक्ष अपने-अपने हक के लिए सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं।

 

reservation in promotion
मप्र हाईकोर्ट ने कहा था इनसे वापस लें प्रमोशन
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा बनाए गए नियम को रद्द कर 2002 से 2016 तक सभी को रिवर्ट करने के आदेश दिए थे। मप्र सरकार ने इसी निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पीटिशन (LIP) लगा रखी है। तभी से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। मध्यप्रदेश सरकार प्रमोशन में आरक्षण के पक्ष में खड़ी है।
उत्तरप्रदेश में हो गए डिमोशन
उत्तरप्रदेश के एक मामले में पदोन्नति में आरक्षण के फैसले को निरस्त कर दिया गया था। इसके बाद प्रमोशन में आरक्षण का लाभ लेने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के डिमोशन का सिलसिला चल निकला था। इससे उत्तरप्रदेश ने बड़ी संख्या में अधिकारी-कर्मचारियों को बड़े पदों से वापस छोटे पदों पर आना पड़ा था।

बीच का रास्ता निकालने नया फार्मूला
बताया जाता है कि मध्यप्रदेश सरकार अब इस मामले में प्रमोशन में आरक्षण नियम को रद्द होने और संविधान पीठ में चले जाने के चलते बीच का रास्ता निकाल रही है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार नया फार्मूला बनाया है।

ऐसा है नया फार्मूला
-नए फार्मूले के अनुसार एक वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी दूसरे वर्ग के आरक्षित पदों पर प्रमोशन नहीं ले सकते हैं।
-एससी, एसटी और सामान्य वर्ग की अलग-अलग लिस्ट निकाली जाएगी। ये सभी अपने वर्ग में पदोन्नति ले सकते हैं।
-प्रदेश में पिछले डेढ़ साल से 30 हजार से ज्यादा अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रमोशन नहीं हुए। कई रिटायर हो गए।
-नए फार्मूले में एससी के लिए 16, एसटी के लिए 20 और जनरल के लिए 64 प्रतिशत पदों के आरक्षण का जिक्र हो सकता है।
-यदि आरक्षित वर्ग में पदोन्नति के पद अधिक हैं और अधिकारी अथवा कर्मचारी उसके अनुपात में कम हैं, तो पदों को खाली ही रखा जा सकता है।
-यह भी खत्म हो जाएगा कि एक प्रमोशन लेने के बाद मेरिट के आधार पर आगे प्रमोशन लेना पड़ेगा।
-यह काम मुख्यमंत्री सचिवालय में गोपनीय रूप से किया जा रहा है।
यह भी था अहम फैसला
आरक्षण का लाभ जीवन में एक बार
दिसंबर 2017 में मध्यप्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण के एक मामले में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आरक्षण का लाभ जीवन में एक बार ही लिया जा सकता है। मध्यप्रदेश के मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और न्यायाधीश वीके शुक्ला की युगलपीठ ने सागर जिले में पदस्थ अतिरिक्त सिविल जज पदमा जाटव की याचिका पर यह फैसला दिया था।
-जाटव ने मप्र उच्च न्यायिक सेवा में सिविल जज सीनियर डिवीजन परीक्षा 2017 में आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने पर चुनौती दी थी। कोर्ट ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि जब एक बार नियुक्ति के वक्त आरक्षण का लाभ लिया गया हो तो ऐसे व्यक्तियों को दूसरी बार भी आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।
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