बस्तियों में पहुंचने पर उन्हें पता चला कि बड़ी संख्या में छ: साल से कम आयु के बच्चे कुपोषित हैं, जिससे वे आम तौर पर बीमार रहते हैं। इसके पीछे की वजह भी स्पष्ट नजर आई क्योंकि मीरा नगर, पीसी नगर, ईश्वर नगर, बांसखेड़ी, सनखेड़ी, अब्बास नगर और सूखी सेवनिया जैसी जिन बस्तियों में वे काम करती हैं, उनमे आमतौर पर गांव-देहात से रोजी- रोटी की तलाश में आए हुए लोग रहते हैं। इनमें से अधिकांश मजदूरी करते हैं, जिसमें उन्हें बेहद कम मजदूरी मिलती है। जाहिर है, इतने पैसों में परिवार तक का गुजर-बसर नहीं हो पाता तो बच्चों के लिए दूध, पौष्टिक आहार कैसे मिले।
सात बस्तियों में पांच सौ बच्चे कुपोषित
ऋतु को यह स्थिति बेहद कष्ट दायक लगी तो उन्होंने इन बच्चों को स्वस्थ्य जीवन देने की ठानी। कुपोषित बच्चों की संख्या को लेकर आंगनवाड़ी और बस्ती में सम्पर्क किया तो पता चला कि सात बस्तियों में पांच सौ से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से 150 से अधिक गंभीर स्थिति में पाए गए। इनमें से अधिकांश बच्चों का हर महीने न तो वजन हो पाता न ही नियमित टीकाकरण। इसके लिए ऋतु और उनके साथियों ने महिला एवं बाल विकास विभाग से संपर्क कर आंगनवाड़ी की सेवाओं से लोगों को जोडऩे की बात कही।
इस पर विभाग ने 20 केन्द्रों में सहयोग की अनुमति दी। सबसे पहले उन बच्चों को चिन्हित किया गया, जो वजन व टीकाकरण में शामिल नहीं हो पा रहे थे। उनके नियमित वजन से कुपोषण की स्थिति का पता चलने लगा। कुपोषित बच्चों की पहचान होने से साल भर में 90 प्रतिशत से अधिक का टीकाकरण होने लगा जो अब 96 प्रतिशत है।
पोषण पुनर्वास केंद्रों से मिलने लगा लाभ
जो बच्चे गंभीर कुपोषित पाए गए उनके परिजनों को पोषण पुनर्वास केंद्र भेजने के लिए तैयार किया। आंगनवाड़ी केंद्रों में दर्ज गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं के साथ हर महीने सत्र आधारित बैठकें करना शुरू किया, जिसमें उन्हें सावधानियों, योजनाओं और पोषक भोजन के बारे में जानकारी दी जाती है। इससे संस्थागत प्रसव बढकऱ 90 प्रतिशत से अधिक होने लगा। इससे मातृ और नवजात मृत्यु दर में कमी आई है।
आंगनबाड़ी में लाभ
रुसिया का अगला कदम शाला पूर्व शिक्षा की लोकप्रियता को बढ़ाना है, ताकि जो माता-पिता अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजते हैं, वे भी नियमित आंगनवाड़ी आएं और मिलने वाली छह सेवाओं का लाभ उठा सकें।