प्रवचन सुनकर जागा वैराग्य
नाटक में दिखाया गया कि राजगीरी नगरी के सेठ ऋषभ दत्त और सेठानी धारणी के घर लंबे समय तक संतान नहीं होती। सेठानी को सपने में सिंह और जम्मू वृक्ष दिखाई देता है। इसके बाद उनके घर बेटे का जन्म होता है, वे उसका नाम जम्मू कुमार रखते हैं। आठ वर्ष की उम्र में जम्मू कुमार दीक्षा लेने चले जाते हैं। जब लौटकर आते हैं तो एक दिन गंधर्व सुधर्मा स्वामी के यहां प्रवचन सुनने जाते हैं। यहां राग से वैराग्य और वैराग्य से वीतरागिता की तरफ बढ़ जाते हैं।
इस दृश्य को देख हॉल में मौजूद दर्शकों की आंखों से आंसू निकल आए। वे उनके नाम के जयकारे लगाने लगे। अंत में उनके माता-पिता, रानियां व परिवार के अन्य सदस्य भी दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। सारा राज-पाठ राजा ऋषभ दत्त, राजा श्रेणिक को सौंप देते हैं। ताकि वे इस धन को प्रजा की भलाई में लगाकर उनका जीवन खुशहाल बना सके। नाटक का निर्देशन कमल जैन ने किया। वहीं संयोजन पं. सुरेश तातेड़ का रहा। समाज के कमल जैन, मीना कोठारी, मंजू डागा और विमल भंडारी को जैन गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। डायरेक्टर कमल जैन ने बताया कि इस नाटक की पिछले एक माह से रिर्हसल चल रही थी।