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सड़क से सदन तक नदारद, लग चुके लापता के पोस्टर

locationभोपालPublished: Dec 31, 2018 09:50:26 pm

Submitted by:

anil chaudhary

सांसद ज्ञान सिंह : दो साल के दरमियान कांग्रेस ने बना ली बढ़तभाजपा के कार्यक्रमों तक सिमटकर रह गए ज्ञान
 

Narendra Modi and Rahul Gandhi

नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी

भोपाल/शहडोल. सदन में 52 फीसदी उपस्थिति के साथ दो साल में महज दो प्रश्न। यह परफॉर्मेंस है शहडोल सांसद ज्ञान सिंह का। उनका जैसा प्रदर्शन संसद में है, वैसी ही मौजूदगी अपने क्षेत्र में है। जनहित के मुद्दों में उनकी चुप्पी और वादों के प्रति उदासीनता भारी पडऩे लगी है। विधानसभा चुनाव में सीटों की बात करें तो भाजपा-कांग्रेस 4-4 के रेश्यो पर हैं, लेकिन कांग्रेस ने बढ़त बनाकर मुश्किलें बढ़ा दी हैं। चुनाव में एंटी इंकम्बेंसी के साथ सांसद की निष्क्रियता का भी असर पड़ा है। कांग्रेस ने ज्ञान को पहले ही निशाने पर ले लिया था और लापता के पोस्टर चस्पा करवा दिए थे।
दरअसल, ज्ञान सिंह 2016 में हुए लोकसभा उपचुनाव लडऩे को लेकर अनमने थे। दलपत सिंह परस्ते के निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर जब पार्टी ने ज्ञान को उतारने का फैसला किया, तब ज्ञान प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। वे मान मनौव्वल के बाद लडऩे को तैयार हुए। 60 हजार मतों से जीत हासिल की, लेकिन गृह जिले उमरिया से बाहर नहीं निकले। विधानसभा चुनाव में बांधवगढ़ सीट से उनके बेटे शिवनारायण सिंह उम्मीदवार थे, तो ज्ञान सिंह ने इसी क्षेत्र तक खुद को सीमित कर लिया। चार जिलों तक फैले अपने संसदीय क्षेत्र की बाकी सात सीटों में कैंपेन ही नहीं किया। इससे पहले भी उनकी सक्रियता केवल पार्टी के कार्यक्रमों तक ही सीमित थी।
आदिवासियों में ढीली हुई पकड़
भाजपा के लिए जो लोकसभा सीटें खतरे में हैं, उनमें शहडोल भी शामिल है। आदिवासी बाहुल्य इस सीट पर 2003 से भाजपा का दबदबा रहा है, लेकिन अब आदिवासियों पर पार्टी की पकड़ ढीली पडऩे लगी है। ज्ञान पार्टी का सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा हैं, लेकिन आम लोगों से उनकी दूरी भारी पड़ी है। राज्य और केंद्र दोनों जगह भाजपा की सरकार होने के बाद भी वे फायदा नहीं उठा सके। जनता से जुड़े मुद्दों और विकास के लिए किसी भी मंच से आवाज नहीं उठाई। प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह यहां किसान और एट्रोसिटी एक्ट के मुद्दे उतने प्रभावी नहीं रहे, लेकिन सांसद और विधायकों से नाराजगी ने मुश्किल बढ़ा दी है।
अधूरे वादों से हुई फजीहत
उपचुनाव के दौरान अस्पतालों की हालत ठीक कराने और डॉक्टरों की पदस्थापना के वादे किए थे। इस पर कोई पहल नहीं की तो अनूपपुर जिले के दौरे में लोगों ने वाहन को रोककर विरोध जताया और लौटने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसा ही केंद्रीय जेल की घोषणा का भी हुआ। सांसद बनने के बाद जेल भ्रमण के दौरान सांसद निधि से सिलाई मशीनें देने और डे्रस बनाने के कारखाने के लिए मदद की घोषणा की थी। दो साल बाद भी जेल में यह कारखाना नहीं लगा। रोजगार के वादों पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं।
संसद में नहीं मुखर हुई आवाज
लोगों में इस बात की भी नाराजगी है कि टे्रन, कोयला खदानों में रोजगार जैसे केंद्र के मुद्दों पर भी ज्ञान आवाज नहीं उठा पाए। चार्टर्ड एकाउंटेंट सुशील सिंघल कहते हैं सांसद ने जनता से दूरियां बना रखी हैं। ऐसा ही यहां के मुद्दों को लेकर भी है। अगर वे आवाज उठाते तो शहडोल को मुंबई और नागपुर के लिए टे्रन सुविधा मिल जाती। कोयला खदानों स्थानीय लोगों की कोई पूछपरख नहीं होने से भी बेरोजगारों में गुस्सा है। अखिलेश कुमार कहते हैं सांसद अपने घर उमरिया से बाहर निकलते ही नहीं हैं। अगर कोई पत्र लिखवाना हो तो उसके लिए भी भटकना पड़ता है।
इस तरह बिगड़ेगा लोकसभा में समीकरण
विधानसभा चुनाव 2013 में शहडोल संसदीय क्षेत्र की आठ में से छह सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। लोकसभा चुनाव 2014 में उसे सभी आठ सीटों पर बड़ी बढ़त मिली थी। जबकि 2016 के उपचुनाव में ज्ञान ने पुष्पराजगढ़ को छोड़ सात सीटों पर बढ़त बनाई थी। विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने चार सीटों कोतमा, अनूपपुर, पुष्पराजगढ़ और कटनी जिले की बड़वारा जीतकर बराबरी कर ली। भाजपा के खाते में जयसिंहनगर, जैतपुर, बांधवगढ़ और मानपुर सीटें आई हैं, लेकिन कुल वोटों में भाजपा को 4.92 लाख और कांग्रेस को 5.13 लाख मत मिले हैं। इस तरह कांग्रेस ने शहडोल संसदीय क्षेत्र में 21 हजार से अधिक मतों से अर्से बाद बढ़त बनाई है।
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