अब कोई भी व्यक्ति एक से दस करोड़ रुपए तक खर्च कर एम्स के किसी वार्ड या अन्य हिस्से को गोद ले सकता है। दरअसल, एम्स दिल्ली ने रेवेन्यू बढ़ाने के लिए यह अनोखा तरीका अपनाया है। भोपाल और दिल्ली समेत देश के बाकी शहरों में संचालित सभी 20 एम्स में भी जल्द ही यह व्यवस्था लागू होगी। सेंट्रल इंस्टीट्यूट बॉडी ने इस निर्णय पर मुहर लगाई है।
प्रस्ताव के अनुसार गोद लेने वाले व्यक्ति को 10 से 15 साल में उस वार्ड या ब्लॉक पर एक से 10 करोड़ रुपए तक खर्च करने होंगे। हालांकि इसकी वास्तविक राशि संबंधित अस्पताल प्रबंधन ही तय करेगा। अगर कोई व्यक्ति अस्पताल में स्थायी निर्माण करवाता है तो उस पर हमेशा के लिए उनका नाम रहेगा।
भोपाल एम्स में 550 बिस्तर और 24 वार्ड
एक हजार करोड़ से बन रहे भोपाल एम्स में 24 वार्ड हैं, इनमें 550 बिस्तर मौजूद हंै। छह महीने में बिस्तरों की संख्या बढ़ाकर 960 करने का लक्ष्य है। अभी 12 ऑपरेशन थिएटर चल रहे हैं और जल्द ही 40 ओटी का नया ओटी कॉम्प्लेक्स शुरू होने वाला है। इसके साथ ही आयुष विंग, मेडिकल कॉलेज और ऑडिटोरियम भी मौजूद हंै।
एक हजार करोड़ से बन रहे भोपाल एम्स में 24 वार्ड हैं, इनमें 550 बिस्तर मौजूद हंै। छह महीने में बिस्तरों की संख्या बढ़ाकर 960 करने का लक्ष्य है। अभी 12 ऑपरेशन थिएटर चल रहे हैं और जल्द ही 40 ओटी का नया ओटी कॉम्प्लेक्स शुरू होने वाला है। इसके साथ ही आयुष विंग, मेडिकल कॉलेज और ऑडिटोरियम भी मौजूद हंै।
कौन-कौन ले सकता है गोद?-
एम्स के वार्ड या ब्लॉक को कोई भी गोद ले सकता है। इनमें आम आदमी से लेकर सरकारी संस्था, प्राइवेट कंपनी, सामाजिक संस्था कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) के तहत भी गोद लिया जा सकता है ।
एम्स के वार्ड या ब्लॉक को कोई भी गोद ले सकता है। इनमें आम आदमी से लेकर सरकारी संस्था, प्राइवेट कंपनी, सामाजिक संस्था कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) के तहत भी गोद लिया जा सकता है ।
इधर, रेडियोडाग्नोसिस विभाग से दो डॉक्टरों ने कहा अलविदा…
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के रेडियोडाग्नोसिस विभाग से डॉ. अभिजीत पाटिल और चंद्रप्रकाश अहिरवार ने भी इस्तीफा दे दिया। अब एमआरआई मशीन संचालन के लिए चार चिकित्सक बचे हैं। जांच की वेटिंग बढ़ जाएगी।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के रेडियोडाग्नोसिस विभाग से डॉ. अभिजीत पाटिल और चंद्रप्रकाश अहिरवार ने भी इस्तीफा दे दिया। अब एमआरआई मशीन संचालन के लिए चार चिकित्सक बचे हैं। जांच की वेटिंग बढ़ जाएगी।
गौरतलब है कि चार साल में कॉलेज से करीब 24 चिकित्सक जा चुके हंै। बड़ा सवाल है कि आखिर 80 हजार के आसपास वेतन पाने वाले डॉक्टर क्यों इस्तीफा दे रहे हैं। चिकित्सकों का कहना था कि वेतन कोई मुद्दा नहीं है। विभाग में प्रमोशन की जटिल प्रक्रिया, संसाधनों के अभाव के साथ ही बाहर आगे बढऩे के बेहतर विकल्प ही प्रमुख कारण हैं।
सरकार के प्रयासों को झटका: डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए केन्द्र ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीट बढ़ाने की घोषणा की थी। इसके बाद प्रति पीजी सीट के लिए कॉलेजों को 1.10 करोड़ तक दिए जा रहे हैं।
व्यवथाओं में बदलाव जरूरी: वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. डीके वर्मा कहते हैं कि शासन को नीतियों में बदलाव के साथ व्यवस्थाएं दुरुस्त करनी होंगी। अब जाकर आदर्श भर्ती नियम तैयार किए गए, जिसके तहत डॉक्टरों को प्रमोट करके संतुष्ट करने का प्रयास किया गया।
ये छोड़ चुके
डॉ. नीलकमल कपूर, डॉ. राजेश मलिक, डॉ. शिखा मलिक, डॉ. भावना शर्मा, डॉ. रक्षा बामनिया, डॉ. अनीता शर्मा, डॉ. अनीता बनर्जी, डॉ. जयंती यादव, डॉ. अवनीत अरोरा, डॉ. करन पीपरे, डॉ. सारांश जैन, डॉ. प्रियंका जैन, डॉ. अटवाल समेत अन्य।
डॉ. नीलकमल कपूर, डॉ. राजेश मलिक, डॉ. शिखा मलिक, डॉ. भावना शर्मा, डॉ. रक्षा बामनिया, डॉ. अनीता शर्मा, डॉ. अनीता बनर्जी, डॉ. जयंती यादव, डॉ. अवनीत अरोरा, डॉ. करन पीपरे, डॉ. सारांश जैन, डॉ. प्रियंका जैन, डॉ. अटवाल समेत अन्य।
प्राइवेट प्रैक्टिस के साथ एम्स भी चुनौती
हमीदिया अस्पताल में रोजाना दो हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। मरीजों के हिसाब से संसाधनों का न होना और विवाद के चलते डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस को बेहतर मानते हैं।
हमीदिया अस्पताल में रोजाना दो हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। मरीजों के हिसाब से संसाधनों का न होना और विवाद के चलते डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस को बेहतर मानते हैं।
एम्स में वेतन के साथ ही काम करने के लिए बेहतर व्यवस्थाएं और नीतियां चिकित्सकों को जीएमसी से दूर कर रही हैं। जीएमसी छोडऩे वालों में से अधिकतर एम्स में पहुंच गए।