दरअसल संघ चाहता है कि जिन विधायकों के प्रति जनता में आक्रोश है उन्हें घर बैठा दिया जाए, लेकिन साथ में उसे इस बात की भी चिंता है कि विधायक को घर बैठाने का मतलब पार्टी में सेबोटेज को बढ़ाना है।
ऐसे में संघ बीच का रास्ता ढूढने में लगा हुआ है जिससे विधायकों के टिकट भी कट जाए और पार्टी को भीतरीघात का भी सामना न करना पड़े। 15 साल से सत्ता में है।
किसी भी विधायक को घर बैठाना यानि सेबोटेज के बीज बोना और हार की फसल उगाना है। संघ अब नए चेहरों को तलाशते हुए डैमेज कंट्रोल की रणनीति पर भी काम कर रहा है।
जिसमें इस बात की पूरी संभावना दिख रही है कि इस बार संघ अपने कोटे के टिकट ज्यादा लेगा और प्रचारकों और स्वयंसेवकों की एक बड़ी फौज को चुनाव दंगल में उतारेगा। 70 वर्तमान विधायक और 70 विपक्षी दलों की सीटें मिलाकर करीब 150 सीटों पर संघ-बीजेपी में स्कुटनी का दौर चल रहा है। इनमें कुछ ऐसी सीट्स भी शामिल है जिनमें बीजेपी बहुत कम वोटों से पिछला चुनाव जीती है।
रायशुमारी में हो रहा विरोध
संघ इस बात को भी नजरअंदाज नहीं कर रहा है कि इस चुनाव में कार्यकर्ता मुखर और आंदोलनकारी तेवर में हैं. इसके कई उदाहरण बीजेपी जिला स्तर पर हुई दावेदारों की रायशुमारी पर देखने को मिले हैं. कई जगह पर प्रत्याशियों के खिलाफ खुलकर प्रदर्शन हुए हैं.
सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के विधानसभा क्षेत्र भोपाल के गोविंदपुरा का है, जहां पर गौर की बहू कृष्णा गौर को टिकट देने के नाम पर कार्यकर्ता एकजुट हो गए और धरने पर बैठ गए।