12 अक्टूबर 2005 को लागू हुए आरटीआई एक्ट को 16 साल हो रहे हैं। इन सालों में अफसरों की मनमानी सामने आई। सूचना देने के बजाय वे इसे छिपाने के ज्यादा प्रयास में रहे। लेकिन लोगों की जागरूकता से अफसरशाही इसमें सफल नहीं हो सकी। अब अफसर जानकारी देने के लिए बाध्य हो रहे हैं, इसमें देरी करने और रुकावट करने पर एक्शन भी हो रहा है। लापरवाह अफसरों पर 4 लाख 14 हजार 500 रुपए का जुर्माना भी लगाया जा चुका है। इसमें से 86 हजार 250 रुपए की वसूली हो चुकी है।
आरटीआई से मिल गया पानी –
अभी तक आपने सुना होगा कि आरटीआई से जानकारी तो मिलती ही है, पर मध्यप्रदेश में आरटीआई लगाने से पीने का पानी मिल गया। यह मामला है रीवा के नेवरिया दलित बस्ती का। यहां लोगों पानी के लिए दर-दर की ठोंकरे खाना पड़ती थीं। इस बस्ती में पानी से जुड़ी जानकारी के संबंध में पूछ गया कि नलकूप लगाने की योजना पर क्या कार्यवाही की गई। लेकिन अफसरों ने कोई जवाब नहीं दिया। सूचना आयोग में मामला आया तो सूचना आयुक्त ने इसे गंभीरता से लेते हुए जिम्मेदार अफसरों को नोटिस जारी किया। इस नोटिस से हड़कम्प मचा और आनन-फानन में यहां कार्यवाही की गई। और लोगों को पानी नसीब होने लगा।
अभी तक आपने सुना होगा कि आरटीआई से जानकारी तो मिलती ही है, पर मध्यप्रदेश में आरटीआई लगाने से पीने का पानी मिल गया। यह मामला है रीवा के नेवरिया दलित बस्ती का। यहां लोगों पानी के लिए दर-दर की ठोंकरे खाना पड़ती थीं। इस बस्ती में पानी से जुड़ी जानकारी के संबंध में पूछ गया कि नलकूप लगाने की योजना पर क्या कार्यवाही की गई। लेकिन अफसरों ने कोई जवाब नहीं दिया। सूचना आयोग में मामला आया तो सूचना आयुक्त ने इसे गंभीरता से लेते हुए जिम्मेदार अफसरों को नोटिस जारी किया। इस नोटिस से हड़कम्प मचा और आनन-फानन में यहां कार्यवाही की गई। और लोगों को पानी नसीब होने लगा।
प्रदेश में रीवा जिला अव्वल –
प्रदेश का रीवा एक मात्र ऐसा जिला है जहां आरटीआई की धारा 4 के तहत ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध है। सूचना आयुक्त राहुल ङ्क्षसह बताते हैं कि सभी विभागों को इसके तहत जानकारी उलपब्ध कराना अनिवार्य है। इसमें रीवा में पालन शुरू हुआ है। अब राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को लिखा जा रहा है कि अन्य जिले और विभाग भी इसका पालन करें। जिसके तहत वहां कार्यरत अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या, उनकी जिम्मेदारी, काम-काज, उनका वेतन, विभाग के प्रमुख निर्णय इत्यादि शामिल हैं। यदि ज्यादातर जानकारी विभाग की बेवसाइट पर ऑनलाइन कर दी जाएगी तो लोगों को आरटीआई लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
प्रदेश का रीवा एक मात्र ऐसा जिला है जहां आरटीआई की धारा 4 के तहत ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध है। सूचना आयुक्त राहुल ङ्क्षसह बताते हैं कि सभी विभागों को इसके तहत जानकारी उलपब्ध कराना अनिवार्य है। इसमें रीवा में पालन शुरू हुआ है। अब राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को लिखा जा रहा है कि अन्य जिले और विभाग भी इसका पालन करें। जिसके तहत वहां कार्यरत अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या, उनकी जिम्मेदारी, काम-काज, उनका वेतन, विभाग के प्रमुख निर्णय इत्यादि शामिल हैं। यदि ज्यादातर जानकारी विभाग की बेवसाइट पर ऑनलाइन कर दी जाएगी तो लोगों को आरटीआई लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
यह जानकारी जो आपको जानना जरूरी –
आरटीआई के तहत जानकारी के लिए आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस देना होती है। आवेदन के 30 दिन के अंदर लोक सूचना अधिकारी को जानकारी देना या फिर आवेदन पर कार्यवाही करना अनिवार्य है। निर्धारित तिथि पर जानकारी न मिलने पर आवेदक प्रथम अपील कर सकता है। प्रथम अपील में भी जानकारी नहीं मिलती तो वह राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील करने के लिए स्वतंत्र है। आरटीआई के तहत फाइल रोकने या जानकारी छिपाने का दोषी पाए जाने पर जिम्मेदार अफसर पर 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना वसूला जाता है। यह राशि अधिकतम 25000 रुपए हो सकती है।
आरटीआई के तहत जानकारी के लिए आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस देना होती है। आवेदन के 30 दिन के अंदर लोक सूचना अधिकारी को जानकारी देना या फिर आवेदन पर कार्यवाही करना अनिवार्य है। निर्धारित तिथि पर जानकारी न मिलने पर आवेदक प्रथम अपील कर सकता है। प्रथम अपील में भी जानकारी नहीं मिलती तो वह राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील करने के लिए स्वतंत्र है। आरटीआई के तहत फाइल रोकने या जानकारी छिपाने का दोषी पाए जाने पर जिम्मेदार अफसर पर 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना वसूला जाता है। यह राशि अधिकतम 25000 रुपए हो सकती है।
ऐसे समझें आरटीआई की ताकत –
– पंचायतों में होने वाले भ्रष्टाचार की जानकारी और इन मामलो में दोषी पदाधिकारियों को पद से हटाने की पूरी कार्रवाई को वेबसाइट पर उपलब्ध कराने के आदेश दिए गए। साथ ही इन प्रकरणों में पदाधिकारियों से शासकीय राशि की वसूली की तमाम जानकारी भी आम जनता को देेनेे को कहा है। इसके तहत आयोग ने कलेक्टरों को निर्देश दिए कि वे तय फार्मेट में जानकारी सार्वजनिक करें।
– लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह पंचायत चुनाव में भी पंचायत प्रतिनिधियों का प्रोपर्टी और आपराधिक रिकार्ड का ब्यौरा सार्वजनिक करना अनिवार्य किया गया। पूर्व में इसे गोपनीयता के नाम पर फाइल में बंद रखा जाता था। अब इसे सार्वजनिक किया जाएगा। निर्वाचन आयोग इसे अपनी बेवसाइट पर अपलोड करेगा। सूचना आयोग के निर्देश पर यह हो रहा है।
– आरटीआई के एक मामले में लघु वनोपज संघ ने कह दिया कि वह आरटीआई के दायरे में नहीं आता। सूचना आयोग में सुनवाई के दौरान पाया कि इसमें राज्य सरकार की 99 प्रतिशत अंशपूंजी है। इसका ऑफिस सरकारी भवन में लगता है। राज्य सरकार के आईएफएस अफसर यहां प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ होते हैं। जब सब कुछ सरकारी खर्च पर है तो यह आरटीआई के दायरे से बाहर कैसे हो सकता है। आखिरकार राज्य सूचना आयोग ने फैसला सुनाया कि लघु वनोपज संघ आरटीआई के दायरे से बाहर नहीं हो सकता।
– सूचना आयोग ने एक मामले में फैसला सुनाया कि मनरेगा लोकायुक्त भी आरटीआई के दायरे में है। असल में मनरेगा की मजदूरी की जानकारी के लिए आवेदक को मनरेगा लोकपाल, लोकायुक्त कार्यालय, रोजगार गारंटी परिषद, पंचायत विभाग के चक्कर काटते रहते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मनरेगा लोकपाल को सभी आदेश वेवसाइट पर ऑनलाइन करना होंगे।
– पंचायतों में होने वाले भ्रष्टाचार की जानकारी और इन मामलो में दोषी पदाधिकारियों को पद से हटाने की पूरी कार्रवाई को वेबसाइट पर उपलब्ध कराने के आदेश दिए गए। साथ ही इन प्रकरणों में पदाधिकारियों से शासकीय राशि की वसूली की तमाम जानकारी भी आम जनता को देेनेे को कहा है। इसके तहत आयोग ने कलेक्टरों को निर्देश दिए कि वे तय फार्मेट में जानकारी सार्वजनिक करें।
– लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह पंचायत चुनाव में भी पंचायत प्रतिनिधियों का प्रोपर्टी और आपराधिक रिकार्ड का ब्यौरा सार्वजनिक करना अनिवार्य किया गया। पूर्व में इसे गोपनीयता के नाम पर फाइल में बंद रखा जाता था। अब इसे सार्वजनिक किया जाएगा। निर्वाचन आयोग इसे अपनी बेवसाइट पर अपलोड करेगा। सूचना आयोग के निर्देश पर यह हो रहा है।
– आरटीआई के एक मामले में लघु वनोपज संघ ने कह दिया कि वह आरटीआई के दायरे में नहीं आता। सूचना आयोग में सुनवाई के दौरान पाया कि इसमें राज्य सरकार की 99 प्रतिशत अंशपूंजी है। इसका ऑफिस सरकारी भवन में लगता है। राज्य सरकार के आईएफएस अफसर यहां प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ होते हैं। जब सब कुछ सरकारी खर्च पर है तो यह आरटीआई के दायरे से बाहर कैसे हो सकता है। आखिरकार राज्य सूचना आयोग ने फैसला सुनाया कि लघु वनोपज संघ आरटीआई के दायरे से बाहर नहीं हो सकता।
– सूचना आयोग ने एक मामले में फैसला सुनाया कि मनरेगा लोकायुक्त भी आरटीआई के दायरे में है। असल में मनरेगा की मजदूरी की जानकारी के लिए आवेदक को मनरेगा लोकपाल, लोकायुक्त कार्यालय, रोजगार गारंटी परिषद, पंचायत विभाग के चक्कर काटते रहते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मनरेगा लोकपाल को सभी आदेश वेवसाइट पर ऑनलाइन करना होंगे।
———- देश के एक दर्जन राज्य ऑनलाइन, एमपी पिछड़ा –
देश के एक दर्जन राज्यों में आरटीआई के तहत ऑनलाइन आवेदन लेना शुरू कर दिया है। इनमें केन्द्र सरकार सरकार के सभी विभागों सहित गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, उड़ीसा, राजस्थान, तामिलनाडु, उत्तर प्रदेश राज्य शामिल है। मध्यप्रदेश के कुछ विभागों में इसे लागू किया गया है, इनमें उच्च शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, लोक सेवा प्रबंधन विभाग शामिल है। साथ ही मध्यप्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कार्पोरेशन में लागू किया गया है, लेकिन यहां लोगों को ऑनलाइन सुविधा नहीं मिल पा रही है।
देश के एक दर्जन राज्यों में आरटीआई के तहत ऑनलाइन आवेदन लेना शुरू कर दिया है। इनमें केन्द्र सरकार सरकार के सभी विभागों सहित गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, उड़ीसा, राजस्थान, तामिलनाडु, उत्तर प्रदेश राज्य शामिल है। मध्यप्रदेश के कुछ विभागों में इसे लागू किया गया है, इनमें उच्च शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, लोक सेवा प्रबंधन विभाग शामिल है। साथ ही मध्यप्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कार्पोरेशन में लागू किया गया है, लेकिन यहां लोगों को ऑनलाइन सुविधा नहीं मिल पा रही है।