पत्रिका टीम ने एक ट्रेवल्स एजेंसी पर गया और कहा कि वो अकेला कार से इंदौर जा रहा है, कोई सवारी मिलेगी क्या? इस पर ट्रेवल्स एजेंट ने उसे कहा कि सवारी तो मिल जाएंगी,लेकिन पचास फीसदी कमीशन लगेगा। राजी होने के बाद एजेंट ने 380 रुपए प्रति सवारी के हिसाब से चार सवारी देने को कहा। बदले में 760 रुपए बतौर कमीशन भी मांग लिया।
इस पूरे खेल में सबसे ज्यादा खतरा कार में बैठी सवारी को होता है। अगर कार रास्ते में दुर्घटना ग्रस्त हो जाती है तो सवारी किसी भी तरह से क्लेम नहीं कर सकती। ऐसी स्थिति में कार चालक सवारी को परिजन या लिफ्ट देना बता कर छूट जाता है।
आरटीेओ नहीं करता जांच
इस खेल के चलने का सबसे बड़ा कारण है आरटीओ अधिकारियों की मिलीभगत। दरअसल आरटीओ का उडऩ दस्ता कभी इसकी पड़ताल या सड़क पर जांच नहीं करता। जानकारों की माने तो अगर जांच हो भी गई तो सभी अधिकारियों की ट्रेवल्स संचालक से मिलीभगत होती है। उडऩदस्ता कार मालिक पर तो कार्रवाई करता है,लेकिन ट्रेवल्स को छोड़ देता है।
परिवहन विभाग के नियमों के अनुसार सवारी लाने ले जाने के लिए कार के पर टैक्सी परमिट होना जरूरी है। बिना टैक्सी परमिट के सवारी ले जाने पर जुर्माना, जब्ती सहित सजा का प्रावधान है, लेकिन अधिकारी इन इन नियमों के तहत कभी जांच ही नहीं करते।
टैक्सी मालिकों को होता है नुकसान
इस पूरे खेल में टैक्सी कोटे में चल रही गाडिय़ों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। दरअसल टैक्सी मालिक सवारी के बदले ट्रेवल्स को 20 फीसदी कमिशन देते हैं जबकि निजी कारों से पचास फीसदी तक कमीशन मिल जाता है। ऐसे में एजेंसी के एजेंट निजी कारों को ज्यादा सवारी देते हैं जिससे टैक्सी संचालाकों को नुकसान होता है।
संजय तिवारी, आरटीओ