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पितृपक्ष 2018: तृप्त पितरों की आत्माओं को सूर्यदेव देते हैं मुक्ति का मार्ग, जानिये कब है कौन सा श्राद्ध?

locationभोपालPublished: Sep 22, 2018 01:53:06 pm

पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के मध्य की अवधि…

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पितृपक्ष 2018: तृप्त पितरों की आत्माओं को सूर्यदेव देते हैं मुक्ति का मार्ग, जानिये कब है कौन सा श्राद्ध?

भोपाल। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत है।इस दौरान जहां सूर्य दक्षिणायन होता है। वहीं शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है।

पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध किया जाता है। कहा जाता है कि श्राद्ध कर्म और दान तर्पण से पितृों को तृप्ति मिलती है। इस साल श्राद्ध 25 सितंबर से शुरू हो रहे हैं।

पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है पितृपक्ष। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पितृों को तृप्ति मिलती है। वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं।

कहा जाता है कि इसीलिए पितर अपने दिवंगत होने की तिथि के दिन, पुत्र-पौत्रों से उम्मीद रखते हैं कि कोई श्रद्धापूर्वक उनके उद्धार के लिए पिंडदान तर्पण और श्राद्ध करे लेकिन ऐसा करते हुए बहुत सी बातों का ख्याल रखना भी जरूरी है।

जैसे श्राद्ध का समय तब होता है जब सूर्य की छाया पैरों पर पडऩे लगे, यानी दोपहर के बाद ही श्राद्ध करना चाहिए। सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। पितृपक्ष में किया गया श्राद्ध अनन्य कोटि यज्ञ के बराबर फल देने वाला होता है। इस साल पितृपक्ष 25 सितंबर से शुरू हो रहे हैं…

माता-पितामही चैव तथैव प्रपितामही।
पिता-पितामहश्चैव तथैव प्रतितामह:।।
माता महस्तत्पिता च प्रमातामहकादय:।
ऐते भवन्तु सुप्रीता: प्रयच्छतु च मंगलम।।

पितृ हमारे वंश को बढ़ाते है, पितृ पूजन करने से परिवार में सुख-शांति, धन-धान्य, यश, वैभव, लक्ष्मी हमेशा बनी रहती है। संतान का सुख भी पितृ ही प्रदान करते हैं। शास्त्रों में पितृ को पितृदेव कहा जाता है।

पितृ पूजन प्रत्येक घर के शुभ कार्य में प्रथम किया जाता है। जो कि नांदी श्राद्ध के रूप में किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन (क्वांर) की अमावस्या तक के समय को शास्त्रों में पितृपक्ष बताया है। श्राद्ध पक्ष मुख्य रूप से 16 दिन चलता है। वहीं इस बार त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध एक ही दिन पड़ने से इस बार श्राद्ध केवल 15 दिन ही चलेंगे।

इन 16 दिनों में जो पुत्र अपने पिता, माता अथवा अपने वंश के पितरों का पूजन (तर्पण, पितृयज्ञ, धूप, श्राद्ध) करता है। वह अवश्य ही उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है। माना जाता है कि इन 16 दिनों में जिनको पितृदोष है, वह अवश्य त्रि-पिंडी श्राद्ध अथवा नारायण बली का पूजन किसी तीर्थस्थल पर कराएं। काक भोजन कराएं, तो उनके पितृ सद्गति को प्राप्त हो, बैकुंठ में स्थान पाते हैं।

अपने पिता-पितामह, माता, मातामही, पितामही, माता के पिता, मातृ पक्ष, पत्नी के पिता, अपने भाई, बहन, सखा, गुरु, गुरुमाता का श्राद्ध मंत्रों का उच्चारण कर विधिवत संपन्न करें। ब्राह्मण का जोड़ा यानी पति-पत्नी को भोजन कराएं। पितृ अवश्य आपको आशीर्वाद प्रदान करेंगे।

पितृ पक्ष में मन चित्त से पितरों का पूजन करें।
पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम:।
पितामहैभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधा: नम:।
प्रपितामहेभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधा: नम:।
अक्षन्पितरो मीम-दन्त पितेरोतीतृपन्त
पितर: पितर: शुध्वम्।
ये चेह पितरों ये च नेह याश्च विधयाश्च न प्रव्रिध।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेद:
स्वधाभिर्यज्ञ: सुकृत जुषस्व।
(इन यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण कर पितरों की प्रार्थना करें वे अवश्य मनोरथ पूर्ण करेंगे।)

पितृ पक्ष का महत्व:
देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है। देवकार्य से भी ज्यादा पितृकार्य का महत्व होता है। वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण, विष्णु पुराण आदि पुराणों तथा अन्य शास्त्रों जैसे मनुस्मृति में भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में बताया गया है।
पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के मध्य की अवधि अर्थात पूरे 16 दिनों तक पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए कार्य किये जाते हैं। पूरे 16 दिन नियमपूर्वक कार्य करने से पितृ-ऋण से मुक्ति मिलती है। इस दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा दी जाती है।
श्राद्ध से पितृ दोष शांति:
श्राद्ध कर्म द्वारा पूर्वजों की मृत्यु तिथि अनुसार पिण्डदान, तर्पण आदि करने से पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो वह लोग अमावस्या तिथि के दिन अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं और पितृदोष की शांति करा सकते हैं।

पिंडदान की विशेष जगहें:
शास्त्रों में पिंडदान के लिए 3 जगहों को सबसे विशेष माना गया है।
– पहला है बद्रीनाथ जहां ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है।
– दूसरा है हरिद्वार जहां नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिंडदान करते हैं।
– और तीसरा है गया जहां साल में एक बार 16 दिन के लिए पितृ-पक्ष मेला लगता है। कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।

श्राद्द करने के अपने नियम होते हैं। जिस तिथि में परिजन की मृत्य़ु होती है उसी तिथि में उनका श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा से श्राद्ध शुरू किया जाता है।

पितृ पक्ष के दौरान क्या करें और क्या न करें-
1. तैत्रीय संहिता के अनुसार पूर्वजों की पूजा हमेशा, दाएं कंधे में जनेऊ डालकर और दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही करनी चाहिए। माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में दिशाएं देवताओं, मनुष्यों और रुद्रों में बंट गई थीं, इसमें दक्षिण दिशा पितरों के हिस्से में आई थी।

2. श्राद्ध में सात पदार्थ- गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल महत्वपूर्ण हैं। तुलसी से पितृ प्रलयकाल तक प्रसन्न और संतुष्ट रहते हैं। मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं। श्राद्ध सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र से या पत्तल के प्रयोग से करना चाहिए।
3. आसन में लोहे के आसन का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। साथ ही केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन कराना भी निषेध है।
4. श्राद्ध पक्ष में मांगलिक कार्य यानी सगाई और शादी से लेकर गृह प्रवेश निषेध है, लेकिन श्राद्ध में खरीदारी अशुभ नहीं शुभ है। इससे पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।

ये है मान्यता…
जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी न हो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। वहीं अकाल मृत्य़ु होने पर भी अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जाता है।

जिसने आत्महत्या की हो, या जिनकी हत्या हुई हो ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि के किया जाता है।

पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, तो नवमी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।

वहीं एकादशी में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिन लोगों ने संन्यास लिया हो।

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इस वर्ष 2018 श्राद्ध तिथियां dates of shradh h …
24 सितंबर 2018 को पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 तृतिया श्राद्ध
28 सितंबर 2018 चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या

इन अवसरों पर कर सकते हैं श्राद्ध:
शास्त्रों के अनुसार, अपने पितृगणों का श्राद्ध कर्म करने के लिए एक साल में 96 अवसर मिलते हैं। इनमें साल के बारह महीनों की 12 अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जा सकता है। साल की 14 मन्वादि तिथियां, 12 व्यतिपात योग, 12 संक्रांति, 12 वैधृति योग और 15 महालय शामिल हैं। इनमें पितृपक्ष का श्राद्ध कर्म उत्तम माना गया है।

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