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लहर न आंधी… पर ये सीटें कमिटमेंट कर लेने के बाद किसी की नहीं सुनतीं

locationभोपालPublished: Apr 16, 2019 08:49:24 am

कुछ सीटों ने नहीं बदला अपना मिजाज: बीते 7-8 लोकसभा चुनाव से कई सीटें बनी हुई हैं एक ही दल के खाते में…

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लहर न आंधी… पर ये सीटें कमिटमेंट कर लेने के बाद किसी की नहीं सुनतीं

भोपाल। राजनीति हर पल बदलती रहती है। जीत हार के इस खेल में सत्ता में बैठे दलों को भी विपक्ष में भी बैठना पड़ता है। कुछ ऐसा ही हाल लोकसभा की सीटों का भी है।

एक ओर जहां यहां कुछ सीटें चुनाव-दर-चुनाव अपना मिजाज बदलती रहती हैं, तो वहीं कुछ ऐसी भी हैं जो एक ही दल का गढ़ बनकर रह गई हैं।
ये सीटें पिछले 7-8 चुनाव से एक ही दल के कब्जे में बनी हुई हैं।

इनमें मध्यप्रदेश की विदिशा, भोपाल,इंदौर के अलावा भिंड पिछले 7-8 बार से भाजपा का कमल खिलता आ रहा है। वहीं मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा और गुना सीट पर कांग्रेस परचम फहराती आ रही है।

ये हैं वे सीटें और उनका इतिहास…


1. गुना सीट-
मध्यप्रदेश की गुना सीट कांग्रेस का अभेद्य किला है। ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट से चार बार जीते। जबकि इससे पहले उनके पिता दिवंगत माधवराव सिंधिया यहां से कांग्रेस के सांसद रहे।

वैसे तो ये सीट सिंधिया राजपरिवार का गढ़ रही है, लेकिन पिछले कई चुनावों से यहां सिंधिया परिवार ने कांग्रेस के लिए जीत दर्ज कराई है। यहां तक की 2014 की मोदी लहर में भी ये सीट जस की तस कांग्रेस की झोली में ही गिरी।

1999 के चुनाव में कांग्रेस के साथ-साथ माधवराव सिंधिया की इस सीट पर वापसी हुई। 2001 में हुई एक हवाई दुर्घटना में माधवराव सिंधिया का असामायिक निधन हो जाने के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2004 के चुनावों से सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया और गुना को ही संसदीय क्षेत्र चुना, जिसके जवाब में गुना की जनता ने अपने युवराज को सर-आंखों पर बिठाया और तब से लेकर अब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ही इस सीट से सांसद हैं और भाजपा यहां जीत के लिए तरस रही है।

2. छिंदवाड़ा सीट-
मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस का अभेद्य किला है। मुख्यमंत्री कमलनाथ इस सीट से नौ बार जीते। इस बार कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ और भाजपा के नाथन शाह के बीच मुकाबला है।

यह क्षेत्र कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ का गढ़ रहा है। कमलनाथ साल 1980 से इस सीट से लोकसभा का चुनाव जीतते आ रहे हैं। छिंदवाड़ा की जनता ने कमलनाथ को सिर्फ एक बार निराश किया है, जब 1997 में उन्हें यहां से हार मिली।

3. विदिशा सीट-
मध्यप्रदेश की विदिशा सीट पर 1989 से भाजपा का कब्जा है। इस सीट से अटल बिहारी वाजपेयी, शिवराज सिंह चौहान और सुषमा स्वराज जीते। वहीं इस बार कांग्रेस के शैलेंद्र पटेल प्रत्याशी हैं, लेकिन भाजपा का अब तक प्रत्याशी तय नहीं है।

साल 1991 के चुनाव में यहां से देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने जीत दर्ज की थी, अटल बिहारी ने उस साल विदिशा के साथ-साथ लखनऊ से भी चुनाव लड़ा था और वो दोनों जगह से विजयी हुए थे।

लेकिन बाद में उन्होंने लखनऊ को चुना और विदिशा को छोड़ दिया था। इसी के चलते बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को विदिशा से उपचुनाव लड़ाया और शिवराज सिंह चौहान 1991 से लेकर 2005 तक विदिशा के सांसद रहे, लेकिन मध्य प्रदेश के सीएम बनने के बाद शिवराज सिंह को लोकसभा सीट से इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद यहां उपचुनाव हुए भाजपा के रामपाल सिंह यहां से सांसद बने। साल 2009 के बाद 2014 का चुनाव भी यहां से सुषमा स्वराज ने जीता।

4. भोपाल सीट-
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 8 चुनाव से भाजपा जीती। दो बार पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, एक बार उमा भारती जीतीं। इस बार कांग्रेस के दिग्विजय सिंह मैदान में हैं। जबकि भाजपा का प्रत्याशी अब तक तय नहीं है।

साल 1989 में कांग्रेस की इस सीट को सबसे पहले पूर्व मुख्य सचिव रहे सुशीलचंद्र वर्मा ने भाजपा के कब्जे की। इसके बाद वे लगातार चार बार 1998 तक इस सीट से सांसद रहे।

इसके बाद 1999 में भाजपा नेत्री उमा भारती और 2004 और 2009 में कैलाश जोशी ने यहां जीत दर्ज की और साल 2014 के चुनाव में यहां से आलोक संजर सांसद बने।

5. इंदौर सीट-
मध्यप्रदेश की इंदौर सीट पिछले 8 चुनाव से कांग्रेस जीत नहीं पाई है। लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन यहां लगातार 8 बार से जीत दर्ज कराती आ रही हैं। पिछले चुनाव में महाजन ने कांग्रेस प्रत्याशी सत्यनारायण पटेल को चार लाख 66 हजार मतों से शिकस्त दी थी। महाजन इस बार चुनाव लडऩा नहीं चाहती। भाजपा उनके विकल्प के रूप में मजबूत प्रत्याशी तलाश करने में व्यस्त है।

1989 से यह सीट भाजपा की सुरक्षित सीटों में गिना जाता है। कहने को तो ये मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी है, लेकिन राजनीतिक नजरिए से भी यह शहर बेहद खास है।

सुमित्रा महाजन ने 1989 के चुनाव में कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी को हराया। ज्ञात हो कि सुमित्रा महाजन इससे पहले इंदौर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से वो लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी थीं। सुमित्रा महाजन लगातार 1989 के चुनाव से यहां पर जीतती आ रही हैं।

कांग्रेस ने उनको हराने की हर कोशिश की, लेकिन उसकी सारी कोशिश नाकाम ही साबित हुई। ताई के नाम से मशहूर सुमित्रा महाजन 8 बार से इंदौर की सांसद हैं। सुमित्रा इससे पहले 1982-85 में इंदौर महापालिका में पार्षद रह चुकीं हैं।

6. भिंड सीट-
मध्यप्रदेश की भिंड लोकसभा सीट बीजेपी के मजबूत किले में से एक है। इस सीट पर पिछले 8 चुनाव से बीजेपी का ही कब्जा है। इस सीट पर कभी विजयाराजे सिंधिया चुनाव जीत चुकी हैं, तो वहीं उनकी बेटी और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी इस सीट पर किस्मत आजमा चुकी हैं। कांग्रेस को इस सीट पर अब तक सिर्फ 3 बार जीत नसीब हुई है।

2009 में परिसीमन के बाद यह सीट एक बार फिर अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित हो गई। हालांकि इसका असर बीजेपी पर नहीं पड़ा।

1996 से जीत का जो सिलसिला बना हुआ था वह 2009 के चुनाव में भी जारी रहा। 2009 के चुनाव में भी बीजेपी के अशोक अर्गल ने जीत हासिल की। उन्होंने तब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े डॉ. भागीरथ प्रसाद को हराया था।

2014 के चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ चुके डॉ. भागीरथ प्रसाद को उतारा। 2009 में हारने के बाद डॉ. भागीरथ प्रसाद इस बार यहां भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत मिली।

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