इसी तरह आदिवासी, मछुआरे सहित छोटे काम-धंधे करने वाले तक प्रभावित हुए हैं, लेकिन इनकी समस्याओं का हल निकालने की बजाय सरकार राशन और चारा शिविर बंद करके हाथ खींचने पर अड़ी है। यह मुद्दे एनवीडीए मुख्यालय नर्मदा भवन के बाहर लगातार चौथे दिन धरने पर बैठे विस्थापितों ने उठाए। धरना स्थल पर आयोजित प्रेस कांफ्रेस में 17 नवंबर को हुई जन सुनवाई के पैनल की एक रिपोर्ट पेश करते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेशाध्यक्ष सरोज बादल एवं नर्मदा युवा सेना के प्रमुख प्रवेश अग्रवाल ने विस्थापितों की समस्याओं को बिंदुवार उठाया। बादल ने कहा कि कमलनाथ सरकार को आंदोलन द्वारा उठाए गए मुद्दों पर न ही सिर्फ चर्चा करनी चाहिए, बल्कि उस पर जल्द ठोस निर्णय लेने चाहिए। आरबीसी के प्रमुख सचिव और आयुक्त के साथ आंदोलनकारियों की बैठक में फसल नुकसान की भरपाई के संबंध में चर्चा हुई।
जिन फसलों का बीमा होता है, जो प्राकृतिक आपदा के कारण फ़सल नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई पर चर्चा हुई। जलाशय का पानी भरने के कारण जो फ़सल बरबाद हुई है, जैसे बिजली ट्रासंफार्मर जलमग्न होने के कारण फसलों को पानी नहीं देने से भी फ़सलें सूखी हैं, कई खेत टापू बनने के कारण और कृषि भूमि पुनर्वास स्थलों से पुल-पुलियां नहीं बनने के कारण जो दूरी बढ़ी है जैसे करोंदिया, भवरियाँ, एकलरा आदि अन्य गांव में खेत दूर होने से भी फ़सल नुकसान हुआ है। जहाँ एक एकड़ से तीन एकड़ के छोटे आदिवासी किसान 12 से 15 किलोमीटर की दूरी तय करके 1200 -1400 रूपए का वाहन भाड़ा देकर अपने खेतों से उपज लाते हैं तब खेती क्या फायदे का धंधा बन सकती है? जबकि बिना अर्जन की गई कृषि भी डूब गई व अर्जित होते हुए भी सम्पूर्ण पुर्नवास लाभ दिए बिना कृषि डुबाई गई उनकी फ़सल नुकसान की भरपाई करने की बात की गई,15 दिवस के अंदर सर्वे कराकर हर खेत का करवाकर फ़सल नुकसानी की भरपाई की बात की गई है।