फिटनेस खराब होने की वजह से इन बसों के पुर्जें कभी भी काम करना बंद कर देते हैं जिसके चलते जानलेवा दुर्घटनाएं सामने आती हैं। परिवहन विभाग के नए सर्कुलर के मुताबिक पहले 20 साल पुराने वाहनों को भी स्कूल बस बनाया जा सकता था, लेकिन इसे घटाकर अब अधिकतम 15 साल कर दिया गया है। विभाग ने बगैर परमिट चलने वाली स्कूल बसों को बंद करने और जब्त करने पिछले महीने प्राइवेट स्कूल प्रबंधन और यातायात पुलिस को पत्र लिखा था। इस पत्र पर प्राइवेट स्कूल प्रबंधनों के अलावा पुलिस विभाग ने भी कोई कार्रवाई नहीं की जिसके चलते खटारा बसें अभी भी सड़कों पर दौड़ रही हैं।
मैजिक एवं आपे में 12 सीट जरूरी
परिवहन विभाग के नियमों के मुताबिक मैजिक एवं आपे में पीला रंग लगाकर स्कूल बस बनाने के मामलों में साफ किया गया है कि इनमें 12 बच्चों के बैठने की जगह होनी चाहिए। निर्माता कंपनी की ओर से तैयार डिजाइन के अलावा यदि कोई मॉडीफिकेशन कराया जाता है तो इसे मान्य नहीं किया जा सकेगा। ट्रैवलर एवं बड़ी बसों में 12 से 32 सीटों का होना अनिवार्य है।
ये हैं फिटनेस के पैरामीटर
ब्रेक लाइट और टर्न लाइट चालू हालत में हो।
प्रेशर हार्न मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार हो।
मेक और मॉडल में बदलाव नहीं होना चाहिए।
अगले टायर में ग्रिप होनी चाहिए। रिमोल्डिंग नहीं होना चाहिए।
टूल किट, फस्र्ट बॉक्स व अग्निशामक यंत्र मौजूद हो।
बच्चे खिड़की से बाहर सिर न निकालें, इसके लिए लोहे की राड या जाली लगी होनी चाहिए।
गाड़ी के कांच में ही फिटनेस की तारीख, रूट की जानकारी अंकित होनी चाहिए।
बस जिस स्कूल में चलती हो उसका नाम, फोन नंबर अंकित हो।
शैक्षणिक संस्थान की बस में सुप्रीमकोर्ट द्वारा तय गाइड लाइन का पालन करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
लापरवाही के चलते ये हादसे हुए
मुरैना में प्राइवेट स्कूल से अटैच अवैध ऑटो का एक्सीडेंट हुआ था, जिसमें चालक सहित स्कूली बच्चों की मौत हो गई थी।
राजधानी भोपाल में भी दो साल पहले बोर्ड ऑफिस चौराहे पर स्कूल बस हादसे में प्राइवेट स्कूल की छात्रा की मौत हो गई थी।
इंदौर डीपीएस स्कूल की बस एक्सीडेंट में कई बच्चों की मौत हो गई थी।
सूचना और निशानदेही पर अवैध स्कूल वाहन चलाने वालों की धरपकड़ की जा रही है। बच्चों की सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है। कई बार अभिभावक ही विरोध करने लगते हैं। प्राइवेट स्कूल प्रबंधनों से भी सहयोग नहीं मिलता।
अलीम खान, परिवहन निरीक्षक, जांच दल