यहां के रसोईघर में ऐसे ही गैस स्टेंड पर बैठकर बच्चों की रोजाना लगती है क्लास। हालांकि 10 बाय 10 फीट के इस रसोईघर में अब बच्चों की क्लास के कारण खाना नहीं बनता।
गोविन्द सक्सेना @ विदिशा। तस्वीर में जो दिख रहा है वही सही है। मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बने ज्यादातर सरकारी स्कूलों में यही हालत है। खबर में जिस सरकारी स्कूल की बात की जा रही है असल में वो MP के उद्यानिकी राज्य मंत्री सूर्यप्रकाश मीणा के विधानसभा क्षेत्र शमशाबाद के टांडाखोहा गांव का है। विदिशा जिले के इस स्कूल में एक कमरा है।इसी कमरे में मिड डे मील बनाने के लिए किचिन प्लेटफार्म बना हुआ है। यहां के रसोईघर में ऐसे ही गैस स्टेंड पर बैठकर बच्चों की रोजाना लगती है क्लास। हालांकि 10 बाय 10 फीट के इस रसोईघर में अब बच्चों की क्लास के कारण खाना नहीं बनता। हां, गैस स्टेंड का उपयोग जरूर बच्चों को बैठने में हो रहा है। इस छोटे से किचिन में बंजारों के 45 बच्चों को बैठाकर पढ़ाना यहां के शिक्षकों की मजबूरी भी है और शिक्षा व्यवस्थाओं के गाल पर तमाचा भी।
शासकीय प्राथमिक शाला टांडाखोहा में 2012 से पदस्थ यहां के प्रभारी मनोज सिंहल बताते हैं कि पहले जिस भवन में शाला लगती थी, वह बेहद जर्जर थी। कभी भी कोई अनहोनी हो सकती थी। इसलिए 2014 में विभाग को लिखा तो जनपद पंचायत के सब-इंजीनियर और बीआरसी ने आकर भवन देखा तथा आदेशित किया कि यह बिल्डिंग बहुत खराब है। इसकी छत 80 फीसदी क्षतिग्रस्त है। इसलिए गांव की किसी दहलान में स्कूल लगाने की व्यवस्था करें, लेकिन जब हमें गांव में कोई ऐसी जगह नहीं मिली तो इस किचिन शेड में कक्षाएं लगाने की व्यवस्था कीं। अब 10 बाय 10 फीट के इस छोटे से किचिन में ही पांच कक्षाओं के 45 बच्चे पढ़ते हैं। जगह न होने के कारण गैस स्टेंड के लिए रखी गई फर्सियों के ऊपर और उसके नीचे भी बच्चों को बिठाना मजबूरी है। यहां अतिरिक्त कक्ष तक स्वीकृत नहीं है।
क्या यहां कभी कलेक्टर, डीईओ या जिला शिक्षा केन्द्र के डीपीसी आए? इस सवाल पर सिंहल कहते हैं कि मैं यहां 2012 से पदस्थ हूं, पर एसडीएम, तहसीलदार, बीआरसी और संकुल प्राचार्य के अलावा और कोई बड़ा अधिकारी यहां नहीं आया। डीईओ, डीपीसी भी यहां नहीं आ पाए।