बता दें कि कभी केपी यादव सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे, लेकिन इस बार चुनाव में भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए गुना के सियासी मैदान में गुरु के सामने चेले को उतार दिया। भाजपा का यह दांव काम आया और केपी यादव ने अपने गुरु और चुनावी रण में उनके प्रतिद्वंदी ज्योतिरादित्य सिंधिया सिंधिया को गुना में ही हरा दिया।
सिंधिया राजघराने का 1957 से कब्जा गौरतलब है कि गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर सिंधिया राजघराने का कब्जा रहा है। लेकिन इस बार सिंधिया यहां से केपी यादव से हार गए। दरअसल, 1957 में यहां हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सिंधिया राजघराने की महारानी विजिया राजे ने पहला चुनाव लड़ा। उसके बाद 1971 में विजयाराजे के बेटे माधवराव सिंधिया ने भी पहला चुनाव यहीं से जनसंघ के टिकट पर लड़ा था और जीता भी था। माधवराव सिंधिया के निधन होने के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2002 में हुए उपचुनाव में यहीं से की। पिछले 4 चुनावों से इस सीट पर कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही जीत मिली। लेकिन इस बार यह सीट सिंधिया राजघराने के हाथ से निकल गई।