राज्यपाल ने कहा कि प्रदेश में दूध की नदियाँ बहेंगी। इस सपने को साकार किया जा सकता है। आवश्यकता है कि गौ-पालन को मूल्य संवर्धित कर लाभकारी बनाया जाए। गोवंश की उपयोगिता को बढ़ाकर इस दिशा में प्रभावी पहल की जा सकती है। उन्होंने कहा कि यह कार्य एकाकी दृष्टिकोण के साथ नहीं हो सकता। इसके लिए गौ-पालन के प्रत्येक पहलू, संसाधन के उपयोग और समस्या के समाधान की जमीनी कार्य योजना पर कार्य करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि घुमंतु और अनुपयोगी देशी नस्ल के गोवंश का उपयोग नस्ल सुधार कार्य में किया जाना समस्या को संसाधन में बदलने की पहल है। सरोगेटेड मदर के रूप में इनका उपयोग कर देशी नस्ल की गायों में उन्नत नस्लों के भ्रूण प्रत्यारोपण कर देशी नस्ल से दुधारू उन्नत गायें तैयार की जा सकती हैं। इसी तरह सह गौ-उत्पादों के विपणन की उचित और बाजार की माँग अनुसार आपूर्ति कर गौ-पालन से अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है।
पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति एसआर तिवारी ने बताया कि 4 वर्षों में गौ-शालाओं को आत्म निर्भर बनाने की कार्य योजना विश्वविद्यालय ने तैयार की है। इसके तहत सेरोगेटेड मदर के रूप में उपयोगी गायों का चयन गौ-शालाओं की अनुपयोगी एवं घुमंतु गायों में से किया जाएगा।
इस मौके पर राज्यपाल ने कहा कि गोवंश संरक्षण और संवर्धन के लिए नई दिशा और नई दृष्टि के साथ कार्य करना होगा। देशी गोवंश नस्ल सुधार, दुग्ध उत्पादन और अन्य गौ-उत्पादों की वाणिज्यिक उपयोगिता आदि विभिन्न तथ्यों को शामिल कर एकीकृत कार्य योजना बनाकर गौशालाओं को आत्म-निर्भर बनाया जा सकता है।