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सात लाख की जॉब छोड़ बने सरपंच, बनाया आदर्श गांव

locationभोपालPublished: Jul 26, 2018 10:13:28 am

Submitted by:

KRISHNAKANT SHUKLA

जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान में स्व-कराधान और डिजिटल ट्रांजेक्शन विषय कार्यशाला
 

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सात लाख की जॉब छोड़ बने सरपंच, बनाया आदर्श गांव

भोपाल। गांव में एक दिन पंजाब विश्विद्यालय के प्रोफेसर विजिट के लिए आए। चारों और गंदगी पसरी हुई थी। जिसे देख वे काफी नाराज हुए और बोले गांव वाले यहां कैसे रहते होंगे। कोई यहां आना भी पसंद नहीं करेगा। ये बात वहां के एक युवा को चूभ गई।

उन्होंने 22 साल की उम्र गुडगांव में एक मल्टीनेशनल कंपनी की एमबीई की 6.80 लाख पैकेज की जॉब छोड़कर सरपंच का चुनाव लडऩे का फैसला किया, जबकि इससे पहले उनके परिवार से कोई राजनीति में भी नहीं था। उन्होंने ग्रामीण को समझाया कि सभी को मिलकर गांव की छवि बदलनी होगी।

वे चुनाव जीत गए। इसके बाद उन्होंने युवाओं की एक टीम बनाई। गर्वमेंट स्कीम से सभी को जोड़ा। आज गांव में कहीं भी गदंगी नजर नहीं आती। स्ट्रीट लाइट से लेकर ऐसी कोई सुविधा नहीं, जो गांव में मौजूद न हो। ये कहानी है पंजाब के गुरुदासपुर शीना गांव के रहने वाले पंथदीप की।

महज 26 साल के पंथदीप ने प्लानिंग के बलबूते गांव की तस्वीर बदलकर रख दी। पंथदीप पंजाब विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट भी रह चुके हैं। वे मंगलवार से जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान में स्व-कराधान और डिजिटल ट्रांजेक्शन विषय पर आयोजित दो दिवसीय पंचायत प्रतिनिधियों की कार्यशाला में शामिल होने आए थे। उन्होंने वहां आए सरपंचों को अपने गांव की सक्सेस स्टोरी भी सुनाई।

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जापान ने सीखा अपशिष्ठ प्रबंधन का तरीका

मंदसौर के बालौदा चौपाटी गांव के विपिन जैन ने 2013 में सरपंच बने। गांव में अच्छी सड़कें थीं, न ही साफ पानी की व्यस्था। गांव से निकलने वाले अपशिष्ठ पदार्थों को निपटाना भी एक बड़ी समस्या थी। ऐसे में 36 साल के स्कूल संचालक विपिन ने सरपंच का चुनाव लड़ा। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती गांव के विकास की थी, लेकिन पंचायत का कर महज पांच लाख रुपए था।

ग्रामीण कर जमा नहीं करते थे, अन्य मदों से भी कर नहीं मिल पा रहा था। उन्होंने सड़क, बिजली की व्यवस्था की। ग्रामीणों ने कर जमा करना शुरू कर दिया। उन्होंने गांव में करीब दस करोड़ के विकास कार्य कराए। आज हालात यह है कि गांव में कई जगह पानी के लिए आरो एटीएम लगे हैं। जिसके जरिए सभी को शुद्ध पानी मिल रहा है। पंचायत का कर बढ़कर 55 लाख रुपए हो चुका है। पूरे देश में अपशिष्ठ पदार्थों के प्रबंधन में गांव रोल मॉडल बन चुका है। जापान सहित 57 जिलों के अधिकारी यहां का दौर कर चुके हैं।

सेनेटरी पेड्स की लगाई यूनिट
2015 में महू की पंचायत कोदरिया की सरपंच बनी अनुराधा जोशी ने गांव में वाटर एटीएम शुरू किया। एटीएम मशीन गांव में जगह-जगह जाकर लोगों को पांच रुपए दस लीटर पानी उपलब्ध कराती है। उन्होंने महिलाओं की समस्या को दूर करने के लिए स्वसहायता समूह भी बनाए। इस साल फरवरी में सेेनेटरी पेड्स बनाने की यूनिट भी लगाई।

इस यूनिट से करीब 30 महिलाएं जुड़ी हैं। वे खुद इसकी ब्रांडिंग का काम देखती है। आज इन महिलाओं को पांच से छह हजार रुपए प्रति माह की इनकम भी हो रही है। गांव में हुए स्वच्छता कार्यों को देखते हुए राष्ट्रपति भवन ने कानपुर में राष्ट्रपति के एक कार्यक्रम में संबोधित करने के लिए भी बुलाया था। वे उस कार्यक्रम में एक अकेली महिला वक्ता थीं।

 

मप्र में सभी ग्राम पंचायतें हुईं डिजिटल

इस मौके पर पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा है कि डिजिटिलाइजेशन के बाद देश में नगद मुद्रा का चलन कम हुआ है, जो समय की मांग है। मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है, जहां ग्राम पंचायतें शत-प्रतिशत डिजिटल ट्रांजेक्शन कर रही हैं। ग्राम पंचायत जितनी राशि कराधान द्वारा वसूल करेगी, राज्य सरकार अपने खाते से उसकी दोगुनी राशि ग्राम पंचायत के विकास के लिए देगी।

उन्होंने देश के अन्य राज्यों पंजाब, गुजरात, छत्तीसगढ़ से आए सरपंचों के अनुभव भी सुने और उनसे अन्य लोगों को शिक्षा लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ग्राम स्वराज की अवधारणा तभी साकार होगी, जब पंचायतें आर्थिक स्वाबलम्बन प्राप्त करेंगी। इसके लिए पंचायत प्रतिनिधि अपने अधिकारों के साथ कत्र्तव्यों के प्रति भी सचेत रहकर कार्य करें।

उन्होंने कहा कि पंचायत राज अधिनियम के माध्यम से पंचायतों को असीमित अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिनका उपयोग वह पंचायत के समग्र विकास के लिये करें। कार्यशाला में दूसरे दिन बुधवार को पंचायत प्रतिनिधियों को डिजिटल ट्रांजेक्शन प्रक्रिया और उसके लाभ सहित अन्य विषयों पर विषय विशेषज्ञ जानकारी देंगे।

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