शरदोत्सव के मौके पर आधी रात को दूधिया रोशनी ऐसी प्रतीत हो रही थी मानों चंद्रमा खुद धरती पर उतर आए हों। मान्यता अनुसार इस दिन सभी सोलाह कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा करते हैं। इसलिए श्रद्धालु इस दिन रात्रि में खुले आसमान के नीचे लोग दूध को उबालते हैं, ताकि चंद्रमा की सीधी किरणे उस दूध पर पड़े। यह औषधियुक्त खीर माना जाती है, जो वर्ष पर्यंत कई तरह की बीमारियों से भी राहत प्रदान करती है।
दूधिया रोशनी में राधा-कृष्ण ने किया नौका विहार
इधर भक्तों ने राधा कृष्ण के साथ मां भवानी और वटेश्वर को नौका विहार कराया। नौका विहार से पहले घोड़ा नक्कास राधा कृष्ण मंदिर से आकर्षक चल समारोह निकाला गया। शीतलदास की बगिया पर फूलों से सजी नाव पर भगवान को नौका विहार कराया गया। इसी प्रकार बड़वाले महादेव मंदिर समिति ने भगवान वटेश्वर और मां भवानी को नौका विहार कराया।
बांके बिहारी ने गर्भगृह के बाहर आकर चखा खीर का भोग
शरदोत्सव पर तलैया स्थित बांके बिहारी मार्कंडेय मंदिर में भी आयोजन किया गया। भगवान ने गर्भगृह से बाहर आकर खीर भोग चखा। मंदिर के पं. रामनाारायण आचार्य ने बताया कि साल में एक बार शरद पूर्णिमा पर भगवान बांके बिहारी गर्भगृह से बाहर निकलते हैं। इस मौके पर 51 किलो दूध से खीर बनाकर भगवान को भोग लगाया गया।
शहर के गुफा मंदिर, बिड़ला मंदिर, साईबाबा मंदिर शास्त्री नगर, माता मंदिर, भवानी शिव मंदिर हबीबगंज, बांके बिहारी मंदिर मारवाड़ी रोड, श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर, परशुराम मंदिर, साई मंदिर 1100 क्वार्टर सहित अन्य स्थानों पर शरद पूर्णिमा पर विशेष कार्यक्रम किया गया ।