patrika.com मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के 62वें जन्म दिवस के मौके पर आपको बता रहा है उनसे जुड़े दिलचस्प किस्से…।
नारा भी चर्चित हुआ था
जब शिवराज 11-13 साल के थे, तब नर्मदा के घाट पर एक दिन बूढ़े बाबा के चबूतरे पर ग्रामीण मजदूरों को एकजुट किया था और उनसे बोला- दो गुना मजदूरी मिलने तक काम बंद कर दो। मजदूरों का जुलूस लेकर शिवराज नारेबाजी करते हुए पूरे गांव में घूमने लगे। यह जैत गांव था, जो शिवराज का पैतृक गांव है, इसमें 20-25 मजदूरों के साथ एक बच्चा नारे लगाते घूम रहा था, मजदूरों का शोषण बंद करो, ढाई पाई नहीं-पांच पाई दो। इस बच्चे की हरकतों से सभी हैरान थे। गांव वाले कहते हैं कि जब वे 9 साल के थे तभी से उनमें राजनीति के गुण नजर आने लगे थे।
याद है चाचा की पिटाई
शिवराज जब घर लौटे तो चाचा गुस्से में थे, वे आग-बबूला हो रहे थे, क्योंकि शिवराज के प्रोत्साहन करने से परिवार के मजदूरों ने भी हड़ताल कर दी थी। इस पर चाचा ने शिवराज की जमकर पिटाई कर दी थी। पिटाई करते हुए चाचा उन्हें पशुओं के बाड़े में ले गए और डांटते हुए बोले- अब तुम इन पशुओं का गोबर उठाओ, इन्हें चारा डालो और जंगल में चराने ले जाओ। शिवराज ने उनकी बात मान ली और यह पूरा काम पूरी लगन के साथ करने लगे। इसके साथ ही उन्होंने मजदूरों को तब तक काम पर नहीं आने दिया, जब तक पूरे गांव ने मजदूरी दोगुनी नहीं कर दी।
जैत से शुरू हुआ भोपाल का सफर
शिवराज भी अपने इस काम से काफी उत्साहित हो गए और उन्होंने युवा वर्ग को भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जोड़ने का प्लान किया। उस समय युवा शक्ति को जोड़ने का अभियान चल रहा था। शिवराज भी विद्यार्थी परिषद के सदस्य बन गए। फिर उन्हें भोपाल के मॉडल हायर सेकंडरी स्कूल के छात्र संघ के चुनाव में लड़ने का मौका मिल गया। 1975 में 16 वर्ष के इस किशोर को छात्र संघ का अध्यक्ष चुन लिया गया। युवा वर्ग में वे एक प्रखर छात्र नेता के रूप में उभरने लगे थे। धारा प्रवाह और धारदार भाषण देने की शैली बचपन से ही उनमें आ गई और वे लोकप्रिय होने लगे। शिवराज राष्ट्रीय मुददों पर भी छात्र-छात्राओं के बीच ओजस्वी वाक् कला के लिए चर्चित होने लगे।
एक नोट और एक वोट से बने स्टार प्रचार
1990 में शिवराज को भाजपा संगठन ने बुदनी से चुनाव लड़ने को कहा गया। इससे पहले शिवराज 13 सालों तक पार्टी के लिए लोकसभा, विधानसभा के अलावा स्थानीय चुनावों में धुआंधार प्रचार कर चुके थे। प्रचार के दौरान शिवराज ग्रामीणों से मिले भोजन पर ही निर्भर रहते थे। शिवराज सिंह ने मतदाताओं से एक वोट और एक नोट मांगा। इस नारे ने उन्हें स्टार बना दिया।
ऐसे बने प्रदेश के मुख्यमंत्री
शिवराज सिंह चौहान 2005 में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बने थे। चौहान को 29 नवंबर 2005 को पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री हैं।
पांच बार विदिशा के सांसद भी रहे
सुंदरलाल पटवा थे शिवराज के गुरु
पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा शिवराज के राजनीतिक गुरू थे। पटवा कहते थे शिवराज का व्यक्तित्व दक्ष प्रशासक का है। इसे विरासत में बीमारू मध्यप्रदेश मिला। अनुभवहीन प्रशासक की आशंका थी। लेकिन, शिवराज ने दिन के 20 से 22 घंटे लगातार काम करके योग्य प्रशासकों की टीम खड़ी कर ली। प्रदेश में विकास की उपलब्धियों का नया इतिहास रच डाला।
दर्शनशास्त्र में गोल्डमेडलिस्ट भी
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर में स्वर्ण पदक के साथ शिक्षा प्राप्त की। 1975 में मॉडल हायर सेकंडरी स्कूल में पढ़ाई की और छात्रसंघ अध्यक्ष बनकर राजनीति में कदम रखा।