mp.patrika.com महाशिवरात्रि के मौके पर आपको बताने जा रहा है पचमढ़ी के नागद्वारी यात्रा के बारे में जो देश में अनोखी है, यहां पल-पल मौत और जिंदगी का खेल चलता रहता है। यह स्थान नागद्वारी पिलग्रिम ट्रैक के नाम से जाना जाता है। यदि सुबह 6 बजे पचमढ़ी शहर से अपनी यात्रा शुरू की जाती है तो रास्ते में सड़क किनारे बड़ी संख्या में श्रद्धालु कतारबद्ध भोलेनाथ के जयकारे लगाते हुए मिलते हैं। यहां मध्यप्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ से भी श्रद्धालु आते हैं। पहले तो सड़क मार्ग से ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां सड़क अब खत्म हो चुकी थी।
पचमढ़ी शहर से जहां तक सड़क जाती है वहां तक एक घंटे में पहंुचते है। अब सुबह सात बजे पैदल यात्रा शुरू होती है। शुरुआत में ही ऊंची-ऊंची पहाड़ी और खड़ी चट्टानें श्रद्धालुओं का रास्ता रोकने के लिए खड़ी रहती हैं, लेकिन बारिश और ठंड का अहसास कराती हवाएं और शिव के जयकारे यात्रा पर आगे बढ़ने के लिए शक्ति देती है।
हजारों सांप है नागलोक में
घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसे नागद्वारी में हजारों सांप रहते हैं। अक्सर रास्ते के किनारे यात्रियों को नजर आते रहते हैं। लेकिन, लोग जरूर खौफ में रहते हैं, लेकिन सांप यात्रियों को कुछ नहीं करते। इसी प्रकार बिच्छू भी बड़ी तादाद में नजर आते रहते हैं। लेकिन, भगवान शंकर का नाम लेकर यात्री आगे बढ़ते जाते हैं।
घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसे नागद्वारी में हजारों सांप रहते हैं। अक्सर रास्ते के किनारे यात्रियों को नजर आते रहते हैं। लेकिन, लोग जरूर खौफ में रहते हैं, लेकिन सांप यात्रियों को कुछ नहीं करते। इसी प्रकार बिच्छू भी बड़ी तादाद में नजर आते रहते हैं। लेकिन, भगवान शंकर का नाम लेकर यात्री आगे बढ़ते जाते हैं।
यह है नागलोक की प्रचलित कहानियां
1. नागद्वारी यात्रा का मुख्य केन्द्र सतपुड़ा अंचल की पहाडिय़ों में बसा काजरी गांव है। कहा जाता है कि गांव की काजरी नामक एक महिला ने संतान प्राप्ति के लिए नागदेव को काजल लगाने की मन्नत मानी थी। संतान होने के बाद जब वह काजल लगाने पहुंची, तो नागदेव का विकराल रूप देखकर उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी, इसके बाद उस गांव का नाम काजरी पड़ गया। यह यात्रा इसी गांव से शुरू होती है।
1. नागद्वारी यात्रा का मुख्य केन्द्र सतपुड़ा अंचल की पहाडिय़ों में बसा काजरी गांव है। कहा जाता है कि गांव की काजरी नामक एक महिला ने संतान प्राप्ति के लिए नागदेव को काजल लगाने की मन्नत मानी थी। संतान होने के बाद जब वह काजल लगाने पहुंची, तो नागदेव का विकराल रूप देखकर उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी, इसके बाद उस गांव का नाम काजरी पड़ गया। यह यात्रा इसी गांव से शुरू होती है।
दूर हो जाता है कालसर्प दोष
2. दूसरी मान्यता है कि नागद्वारी यात्रा से कालसर्प दोष दूर हो जाता है। नागद्वारी की पूरी यात्रा सर्पिलाकार पहाडिय़ों से गुजरती है। पूरे रास्ते ऐसे लगता है कि जैसे यहां की चट्टाने एक-दूसरे पर रखी हुई है। मान्यता है कि एक बार यह यात्रा कर लेने वाले का कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
2. दूसरी मान्यता है कि नागद्वारी यात्रा से कालसर्प दोष दूर हो जाता है। नागद्वारी की पूरी यात्रा सर्पिलाकार पहाडिय़ों से गुजरती है। पूरे रास्ते ऐसे लगता है कि जैसे यहां की चट्टाने एक-दूसरे पर रखी हुई है। मान्यता है कि एक बार यह यात्रा कर लेने वाले का कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
नागलोक से जुड़ी भीम की कथा
3. एक अन्य कथा में उल्लेख है कि भीम के पास हजारों हाथियों का बल था। यह बल उन्हें नागलोक से ही मिला था, महाभारत के अनुसार भीम के इस अद्भुत बल से दुर्योधन खुश नहीं था, इसलिए उसने भीम को मारने के लिए युधिष्ठिर के सामने गंगा तट पर स्नान, भोजन और खेल का प्रस्ताव रखते हुए कई प्रकार के व्यंजन तैयार करवाए। भोजन में दुर्योधन ने भीम को विषयुक्त भोजन दे दिया था, उनके बेहोश होते ही दुर्योधन ने भीम को गंगा में डुबो दिया था, मूर्छित भीम नागलोक पहुंच गए थे जहां उनको विषधर नागडंसने लगे इससे भीम के शरीर में विष का प्रभाव नष्ट होते ही वह चेतना में आ गए थे, और वह नागों में मारने लगे इसके बाद कुछ नाग भागकर आपने राजा वासुकि के पास पहुंचे, वासुकि ने पहुंचकर भीम से परिचय लिया। वासुकि नाग ने भीम को अपना अतिथि बना लिया। नागलोक में आठ ऐसे कुंड थे, जिनका जल पीने से शरीर में हजारों हाथियों का बल आ जाता था। नागराज वासुकि ने भीम को उपहार में उन आठों कुंडों का जल पिला दिया। इससे भीम गहरी नींद में चले गए। आठवें दिन जब उनकी निद्रा टूटी तो उनके शरीर में हजारों हाथियों का बल आ चुका था। भीम के विदा मांगने पर नागराज वासुकी ने उन्हें उनकी वाटिका में पहुंचा दिया।
3. एक अन्य कथा में उल्लेख है कि भीम के पास हजारों हाथियों का बल था। यह बल उन्हें नागलोक से ही मिला था, महाभारत के अनुसार भीम के इस अद्भुत बल से दुर्योधन खुश नहीं था, इसलिए उसने भीम को मारने के लिए युधिष्ठिर के सामने गंगा तट पर स्नान, भोजन और खेल का प्रस्ताव रखते हुए कई प्रकार के व्यंजन तैयार करवाए। भोजन में दुर्योधन ने भीम को विषयुक्त भोजन दे दिया था, उनके बेहोश होते ही दुर्योधन ने भीम को गंगा में डुबो दिया था, मूर्छित भीम नागलोक पहुंच गए थे जहां उनको विषधर नागडंसने लगे इससे भीम के शरीर में विष का प्रभाव नष्ट होते ही वह चेतना में आ गए थे, और वह नागों में मारने लगे इसके बाद कुछ नाग भागकर आपने राजा वासुकि के पास पहुंचे, वासुकि ने पहुंचकर भीम से परिचय लिया। वासुकि नाग ने भीम को अपना अतिथि बना लिया। नागलोक में आठ ऐसे कुंड थे, जिनका जल पीने से शरीर में हजारों हाथियों का बल आ जाता था। नागराज वासुकि ने भीम को उपहार में उन आठों कुंडों का जल पिला दिया। इससे भीम गहरी नींद में चले गए। आठवें दिन जब उनकी निद्रा टूटी तो उनके शरीर में हजारों हाथियों का बल आ चुका था। भीम के विदा मांगने पर नागराज वासुकी ने उन्हें उनकी वाटिका में पहुंचा दिया।
घने जंगलों के बीच है ‘नागलोक’
पचमढ़ी में हर साल 10 दिनों के लिए लगाने वाले नागद्वारी यात्रा मेला का आयोजन किया जाता है। ये मेला घने जंगलों के बीच लगाता है, जिसे नागद्वारी मेला कहा जाता है। इस मेले के बारे में मप्र से सहित महाराष्ट्र और उसके आसपास के लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस मेले की खास बात ये है नागदेव के दर्शन के लिए सतपुड़ा रिजर्व इस मेले को केवल 10 दिन के लिए मेला लगाने की अनुमति देता है, जिसमें दस दिनों में ही करीब 10 से 12 लाख श्रद्धालु दर्शन करने पहुंच जाते हैं।
पचमढ़ी में हर साल 10 दिनों के लिए लगाने वाले नागद्वारी यात्रा मेला का आयोजन किया जाता है। ये मेला घने जंगलों के बीच लगाता है, जिसे नागद्वारी मेला कहा जाता है। इस मेले के बारे में मप्र से सहित महाराष्ट्र और उसके आसपास के लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस मेले की खास बात ये है नागदेव के दर्शन के लिए सतपुड़ा रिजर्व इस मेले को केवल 10 दिन के लिए मेला लगाने की अनुमति देता है, जिसमें दस दिनों में ही करीब 10 से 12 लाख श्रद्धालु दर्शन करने पहुंच जाते हैं।
सुरक्षा व्यवस्था होती है खास
नागद्वारी यात्रा के लिए पचमढ़ी जलगली से लेकर कालजाद, चिनमन, स्वर्ग द्वार, नागफनी, नागपुर, कैजरी तक जिले के सभी विभागों के करीब एक हजार अधिकारी कर्मचारी मेला व्यवस्था संचालन करते हैं। ग्राम रक्षा समिति सदस्य, कोटवार, स्काउट गाइड की सेवाभावी सदस्य भी इसमें शामिल होते हैं। इसके अलावा पुलिस विभाग के जिले भर से 700 कर्मचारी मेला सुरक्षा पर तैनात रहते हैं।
कई मंडल करते हैं श्रद्धालुओं की सेवा
नागद्वारी यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को दुर्गम पर्वत, नाले, झरने आदि पार करना होता है। कई स्थानों पर पहाड़ पर चढ़ाई अस्थाई लोहे की खड़ी सीढ़ी लगाई, जिस पर पार भक्त नागद्वार, कैजरी गांव तक पहुंचते हैं। जंगल में भूखे-प्यासे इन भक्तों की सेवा महाराष्ट्र से आए 51 सेवामंडल करते हैं। श्रद्धालुओं की मदद के लिए जगह-जगह भोजन, नाश्ता, चाय की सेवा में कई सेवा मंडल पहुंच जाते हैं।
दो लोगों की हुई थी मौत
बताया जाता है कि पिछले नागद्वारी की दुर्गम यात्रा इतनी खतरनाक है कि पिछले साल कालजाड़ चिंतन के पास सांस फूलने से 71 वर्षीय नागोराव पिता नेढ़ोवा बगनेवासी निवासी चिचौली जिला नागपुर की मौत हो गई थी। भजियागिरी के पास 62 वर्षीय हेमराज पिता कोटैजी ईश्वरकर निवासी ग्राम सावरी जिला भण्डारा महाराष्ट्र की हार्ट अटैक से मौत हो गई।
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