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पितृपक्ष का आखिरी दिन: भूलकर भी न करें ये गलती वरना…

locationभोपालPublished: Oct 06, 2018 01:11:58 am

श्राद्ध में तिथि विशेष, पितृदोषों से मुक्ति…

last day of pitru paksha

पितृपक्ष का आखिरी दिन: भूलकर भी न करें ये गलती वरना…

भोपाल। सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या यानि आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या अर्थात श्राद्ध पक्ष का आखिरी दिन होता हैं। यह दिन पितृपक्ष का आखिरी दिन होने के कारण इस दिन किया गया श्राद्ध पितृदोषों से मुक्ति दिलाता है।
दरअसल मान्यता के अनुसार यदि कोई श्राद्ध में तिथि विशेष को किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर श्राद्ध की तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है। इस बार यह 9 अक्टूबर, मंगलवार को है। पितृ पक्ष का यह आखिरी दिन होता है ऐसे में इस दिन कुछ विशेष बातों का ध्यान रखने पर पितृपक्ष का पूरा लाभ मिलता है और तमाम तरह के दोषों से मुक्ति भी मिलती है। कुल मिलाकर अगर किसी को अपने परिजन की मृत्यु की तिथि सही-सही मालूम ना हो तो इसका श्राद्ध अमावस्या तिथि को किया जाना चाहिए।
जानिये पितृ पक्ष को:
पंडित अजय शुक्ला का कहना है कि पितृ हमारे वंश को बढ़ाते है, पितृ पूजन करने से परिवार में सुख-शांति, धन-धान्य, यश, वैभव, लक्ष्मी हमेशा बनी रहती है। संतान का सुख भी पितृ ही प्रदान करते हैं। शास्त्रों में पितृ को पितृदेव कहा जाता है।
पितृ पूजन प्रत्येक घर के शुभ कार्य में प्रथम किया जाता है। जो कि नांदी श्राद्ध के रूप में किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन (क्वांर) की अमावस्या तक के समय को शास्त्रों में पितृपक्ष बताया है। श्राद्ध पक्ष मुख्य रूप से 16 दिन चलता है। वहीं इस बार त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध एक ही दिन पड़ने से इस बार श्राद्ध केवल 15 दिन ही चलेंगे।
इन 16 दिनों में जो पुत्र अपने पिता, माता अथवा अपने वंश के पितरों का पूजन (तर्पण, पितृयज्ञ, धूप, श्राद्ध) करता है। वह अवश्य ही उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।

माना जाता है कि इन 16 दिनों में जिनको पितृदोष है, वह अवश्य त्रि-पिंडी श्राद्ध अथवा नारायण बली का पूजन किसी तीर्थस्थल पर कराएं। काक भोजन कराएं, तो उनके पितृ सद्गति को प्राप्त हो, बैकुंठ में स्थान पाते हैं।
पितृ पक्ष में मन चित्त से पितरों का पूजन करें।
पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम:।
पितामहैभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधा: नम:।
प्रपितामहेभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधा: नम:।
अक्षन्पितरो मीम-दन्त पितेरोतीतृपन्त
पितर: पितर: शुध्वम्।
ये चेह पितरों ये च नेह याश्च विधयाश्च न प्रव्रिध।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेद:
स्वधाभिर्यज्ञ: सुकृत जुषस्व।
(इन यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण कर पितरों की प्रार्थना करें वे अवश्य मनोरथ पूर्ण करेंगे।)
श्राद्ध पक्ष के आखिरी दिन क्या न करें:
– श्राद्ध पक्ष के आखिरी दिन पूरे 16 दिनों तक श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को न तो पान खाना चाहिए और ना ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए।
– श्राद्ध पक्ष के दौरान और खासतौर पर अंतिम दिन दूसरे शहर की यात्रा नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा न तो गुस्सा करना चाहिए।

– बिना संकल्प के कभी भी श्राद्ध पूरा नहीं माना जाता इसलिए श्राद्ध के अंतिम दिन हाथ में अक्षत, चंदन,फूल और तिल लेकर पितरों का तर्पण करें।
– श्राद्ध में चना, मसूर, उड़द, सत्तू, मूली, काला जीरा, खीरा, काला नमक, काला उड़द, बासी या अपवित्र फल या अन्न उपयोग नहीं किया जाता।

– पितरों की कृपा पाने के लिए श्राद्ध के अंतिम दिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराने का खास नियम है। इसके अलावा पितृदोषों से मुक्ति के लिए दान जरूर करना चाहिए।
– श्राद्ध कर्म में तिल और कुशा का होना जरूरी है। साथ ही भोजन बनाने में किसी प्रकार के लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

– श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों को तर्पण करते हुए हमेशा आपका मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।
– श्राद्ध में किसी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए और न ही नशे का सेवन करना चाहिए।

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