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सांसारिक सुख सुविधाएं छोड़ कर रहे तप, त्याग और संयम की साधना

locationभोपालPublished: Jan 21, 2020 01:23:49 am

Submitted by:

Bharat pandey

सिद्धचक्र महामंडल विधान: इन्द्र-इन्द्राणियों ने संगीतमय स्वर लहरियों के साथ किया भक्ति नृत्य

सांसारिक सुख सुविधाएं छोड़ कर रहे तप, त्याग और संयम की साधना

सांसारिक सुख सुविधाएं छोड़ कर रहे तप, त्याग और संयम की साधना

भोपाल। श्यामला हिल्स स्थित टैगोर हॉस्टल प्रांगण में सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं। मुनि प्रमाण सागर महाराज, मुनि प्रसाद सागर महाराज, मुनि शैल सागर, महाराज, मुनि अरह सागर महाराज, मुनि निकलंक सागर महाराज के सान्निध्य में चल रहे इस विधान में अनेक श्रद्धालु भौतिक सुख सुविधाओं से दूर रहकर आराधना कर रहे हैं।

 

 

विधान के दौरान अनेक श्रावकों ने संसारिक भौतिक सुख सुविधाओं का त्यागकर संयममय जीवन जीने के व्रत लिए, जिसमें प्रतिदिन चटाई पर सोना, मोबाइल और टी.वी. का त्याग के साथ व्रत उपवास आदि शामिल हैं। ब्रह्मचर्य व्रत लेने वाली डॉ शिल्पी दीदी ने बताया कि विधान के दौरान उन्होंने एक समय भोजन का नियम लिया है। वे एक अस्पताल में डॉक्टर पद पर पदस्थ थी, लेकिन ब्रह्मचर्य व्रत के बाद उस पद का त्याग कर दिया और अब अस्पताल में मैनेजमेंट का कार्य देखती है। लालघाटी जैन नगर निवासी दिव्य जैन ने बताया कि उन्होंने और उनकी पत्नी सौम्या जैन ने विधान के दौरान रात्रि 8 बजे के बाद अन्न जल त्याग का नियम लिया है, इसके साथ ही टीवी का त्याग किया है, साथ ही बाजार की खाद्य वस्तुओं का त्याग भी किया है। इसी तरह कई अन्य श्रद्धालुओं ने भी नियम लिए है। विधान में इंद्र इंद्राणियां भगवान सिद्ध की आराधना कर रहे हैं। सोमवार को सभी इंद्रों ने स्वर्ण कलशों से भगवान जिनेंद्र की जिन प्रतिमाओं का कलशाभिषेक किया। इन्द्र-इन्दाणियों ने संगीतमय स्वर लहरियों के साथ भक्ति नृत्य किए । परिसर में अलग-अलग 84 मण्डल के साथ दो प्रमुख मण्डल की स्थापना की गई है। साथ ही सिद्धचक्र विधान का माणना सजाया गया है।

 

जैसा नजरिया, वैसा दृष्टिकोण और वैसा ही जीवन
इस मौके पर मुनि प्रमाण सागर महाराज ने कहा कि हमारा सारा जीवन नजरिये पर निर्भर करता है, जैसा नजरिया होता है वैसा दृष्टिकोण होता है और वैसा सारा जीवन बन जाता है,। हमारा नजरिया ही जीवन को निर्मल बनाता है या बिगाड़ देता है। बाहर की शुद्धि बहुत सरल है अंत:करण की पवित्रता बहुत कठिन जब तक कोई भी क्रिया आत्मस्पर्शी नहीं बनती कल्याणकारी नहीं हो सकती । आत्म स्पर्शी क्रिया ही कल्याणकारिणी बनती है। हम भीतर से बाहर आने की कोशिश करते हैं और संत बाहर से भीतर की ओर आने की बात करते हैं, जीवन को सुखी बनाकर रखना चाहते हो तो सोच का स्तर बदलिए।

 

जिला जज पहुंचे
भोपाल के जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरके वर्मा एवं मजिस्ट्रेट पुष्पक पाठक सोमवार सुबह समारोह स्थल पर पहुंचे। दोनों ने श्रीफ ल भेंट कर मुनि प्रमाण सागर महाराज का आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर जिला जज ने अपने लंबे कार्यकाल के अनुभव साझा किए। शाम को मुनि के सान्निध्य में शंका समाधान का आयोजन किया गया।

 

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