हालांकि निगम अधिकारी एनजीटी के इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि निगम निर्माण करा देगा लेकिन उसे संचालित कौन करेगा। एनजीटी ने सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणी की कि पिछले चार साल से इस मामले में कई आदेश-निर्देश जारी किए गए। लेकिन शासन और नगर निगम इसके प्रति गंभीर नहीं है। इनके पालन का सिर्फ दिखावा किया गया।
एनजीटी सेंट्रल जोनल बेंच में बुधवार को विनोद कुमार कोरी की याचिका पर सुनवाई हुई। दिल्ली की प्रिंसिपल बेंच में बैठे जुडीशियल मेंबर जस्टिस रघुवेन्द्र एस राठौर और एक्सपर्ट मेंबर सत्यवान सिंह गर्बयाल ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा मामले की सुनवाई की। सबसे पहले ट्रिब्यूनल ने नगर निगम कमिश्नर से पूछा कि अभी तक मामले में क्या प्रगति हुई है। इस पर निगम कमिश्नर ने बताया कि नगर निगम स्लॉटर हाउस के लिए तीन बार टेंडर जारी कर चुका है लेकिन किसी भी कंपनी ने इसमें रूचि नहीं दिखाई।
इसलिए निगम ने अब खुद ही स्लॉटर हाउस का निर्माण कराने का फैसला लिया है। नगरीय प्रशासन में उपसचिव मनीष सिंह ने भी जल्द निर्माण करने की बात कही। इस पर एनजीटी ने पूछा कि निर्माण तो आप करा देंगे लेकिन उसे रन कौन करेगा। इसका जवाब कमिश्नर नहीं दे पाए। एनजीटी ने साफ कहा कि जब तक स्लॉटर हाउस को ऑपरेट करने वाला नहीं मिलेगा उसके निर्माण की अनुमति निगम को नहीं दी जा सकती है। इसके बाद निगम की ओर से एक सप्ताह का समय देने की मांग की गई इसमें ऑपरेटर तय कर बताने की बात कही गई। लेकिन एनजीटी ने पहले इसे भी अमान्य कर दिया।
अगली सुनवाई में नगरीय प्रशासन के अधिकारी के साथ कलेक्टर, ननि कमिश्नर तलब
नगर निगम की तरफ से काफी निवेदन के बाद एनजीटी ने एक आखिरी मौका देते हुए निगम से पूरा शिड्यूल देने के लिए कहा है कि स्लॉटर हाउस कब तक शिफ्ट हो जाएगा। निगम की ओर से बताया गया कि एक हफ्ते में ऑपरेटर तय कर लिया जाएगा और एक हफ्ते में पूरा शिड्यूल तय किया जाएगा। एनजीटी ने इसमें यह भी जोड़ा कि अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी। उस समय नगरीय प्रशासन के उपसचिव, भोपाल कलेक्टर और ननि कमिश्नर खुद आकर जवाब दें। उस दिन स्लॉटर हाउस के वर्क ऑर्डर के साथ आएं।
निगम ने की सिर्फ खानापूर्ति
एनजीटी ने सुनवाई के दौरान साफ कहा कि ट्रिब्यूनल ने वर्ष 2016 में जिंसी में संचालित स्लॉटर हाउस को बंद करने का आदेश दिया था। बाद में निगम शिफ्टिंग नहीं कर पाया तो इसे 31 मार्च 2018 तक बढा दिया गया। इसके पहले 1 करोड़ की पेनाल्टी भी लगाई गई। अप्रैल 2018 के बाद प्रतिदिन 10 हजार रूपए पेनाल्टी लग रही है। इसके बावजूद नगर निगम ने शिफ्टिंग के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए। ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश का पालन करने में निगम फेल रहा। वह केवल जवाब देने के लिए खानापूर्ति और दिखावा करता रहा।