सूत्रों की माने तो भेल में चल रही आर्थिक तंगी का असर इस प्रोजेक्ट पर भी भारी पड़ रहा है। साथ ही कई अन्य प्रस्तावित योजनाएं हैं, जो वर्षों से लंबित हैं। इन योजनाओं में टाउनशिप के डवलपमेंट के साथ ही सारंगपाणी झील का कायाकल्प भी करना शामिल है।
गौरतलब है कि भेल प्रबंधन ने करीब एक साल पहले टाउनशिप में पांच मेगावॉट का सोलर प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिल्ली कार्पोरेट कार्यालय भेजा था। सोलर प्लांट लगने से युवाओं को रोजगार मिलने के साथ ही भेल कारखाने के लिए इससे बिजली का उत्पादन भी होता, जिससे बिजली पर हो रहे करोड़ों रुपए के खर्च में कमी आती।
नई टाउनशिप पर नहीं हो सका अमल
भेल टाउनशिप की दुर्दशा छिपी नहीं है। अधिकारियों और कर्मचारियों को रहने के लिए बनाए गए आवासों का बुरा हाल है। दशकों पुरानी डाली गई सीवेज लाइन खराब हो चुकी है। इनके मेंटेनेंस के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए का खर्च प्रबंधन करता है, लेकिन कुछ समय बाद फिर से वही स्थिति बन जाती है।
भेल की खाली पड़ी जमीन पर नई टाउनशिप प्रोजेक्ट के तहत कवर्ड कैम्पस बनाने की योजना थी, लेकिन इस प्रस्ताव पर भी अमल नहीं हो सका।
मेट्रो कोच ब्लॉक पर असमंजस
मेट्रो व बुलेट ट्रेन कोच बनाने के लिए भेल कारखाना में ही अलग से ब्लॉक बनाने की योजना थी, जो फिलहाल अधर में है। इसके लिए जमीन भी तय कर ली गई थी। इससे पहले भेल और जापानी कंपनी कावासाकी के बीच टेक्निकल सहयोग के लिए करार तक हो गया, कोच बनाने के ऑर्डर भेल को नहीं मिला और मामला ठप हो गया।