सोन चिरैया अभयारण्य 512 वर्ग किमी में फैला है। इसके बड़े हिस्से में किसानों की जमीन शामिल है। वहीं, अभयारण्य की सीमा से लगी हुई जमीन पर कुछ स्टोन खदानें हैं। अभयारण्य के नियम-कानून के चलते स्थानीय लोग न तो इस क्षेत्र में जमीन खरीद पा रहे हैं और न ही अपनी जमीन बेंच पा रहे हैं। खदान क्षेत्र होने के बावजूद वे अपनी जमीन का व्यावसायिक उपयोग भी नहीं कर पा रहे हैं।
केंद्र सरकार के अधिकारियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में बताया है कि नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने सोन चिरैया अभयारण्य का एरिया कम करने की मंजूरी दी है।
– यू प्रकाशम
चीफ स्टेट वाइल्ड लाइफ वार्डन, अब दिखाई नहीं देती सोन चिरैया
जानकारों का कहना है कि सोन चिरैया का अभयारण्य से गायब होने में स्थानीय लोगों की बड़ी भूमिका है। उन्हें लगता है कि जब तक सोन चिरैया अभयारण्य में दिखती रहेगी तब तक उनकी जमीनें अभयारण्य से बाहर नहीं हो पाएंगी। यही वजह है कि सालों से अभयारण्य में सोन चिरैया नहीं दिखाई दी। राज्य सरकार पिछले चार साल से इस एरिया को डि-नोटिफाई करने का प्रयास कर रही है, लेकिन केन्द्र की मंजूरी न मिलने से मामला अटका हुआ था।
पिछले वर्ष राज्य वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने अभयारण्य के एक बड़े एरिया को डि-नोटिफाई करने का प्रस्ताव मंजूर कर नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड को भेजा था। इसमें कहा गया था कि सोन चिरैया अभयारण्य की जितनी जमीन कम होगी उससे चार गुना जमीन 404 वर्ग किमी एरिया पालपुर कुनो नेशलन पार्क का बढ़ा दिया है। इस पर केन्द्र ने मंजूरी दे दी ।