scriptदिवाली पर हर साल वन्यजीवों की आफत | sound of crackers frighten wild animals in capitals nearby forest | Patrika News

दिवाली पर हर साल वन्यजीवों की आफत

locationभोपालPublished: Nov 01, 2019 03:27:12 pm

– धूम-धड़ाम की तेज आवाजों से दहल जाएगा शहर के पास का जंगल- तेज आवाज वाले पटाखों और पार्टियों के हंगामे से प्रभावित होते वन्यजीव- आवाज से बहुत संवेदनशील होते वन्यजीव, मनुष्य से कई गुना अधिक सुनते

दिवाली पर हर साल वन्यजीवों की आफत

दिवाली पर हर साल वन्यजीवों की आफत

भोपाल. छिप जा बेटा, छिप जा… आज न जाने क्या हो गया है? आफत सी बरस रही है चारों ओर…। बरसात नहीं, फिर से ये बिजलियां सी कहां गिर रही हैं..? आज की रात जान बची तो कहीं और उड़ चलेंगे। … शहर के सटे जंगलों में सहमी चिडिय़ा दिवाली की रात अपने बच्चे को पंखों में छिपाए इस तरह खैर मनाती है। चिडिय़ा ही नहीं, समरधा रेंज के कलियासोत-केरवा और रातापानी के जंगलों में कई वन्यजीवों का यही हाल हो जाता है। हर साल दिवाली की रात पटाखों और आतिशबाजी की तेज आवाज और रोशनी से परेशान वन्यजीव परेशान होकर छिपने की जगह तलाशते हैं। वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट बताते हैं कि वन्यजीव आवाज और रोशनी के प्रति मनुष्य से कई गुना अधिक संवेदनशील होते हैं। कई चिडिय़ां तो आवाज के प्रति इतनी संवेदनशील होती हैं, कि धमाके से उनकी जान चली जाती है।

वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट डॉ. सुदेश बाघमारे का कहना है कि सभी वन्यजीव तेज आवाज और रोशनी के प्रति संवेदनशील होते हैं। चिडिय़ां तो सभी आवाज के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं। तेज आवाज और बारूद के धुएं से उनकी नेसिटंग, अंडे आदि प्रजनन प्रभावित होता है और स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है। कई चिडिय़ां तो इतनी संवेदनशील होती हैं कि धमाके से मर भी जाती हैं। गाय आदि पालतू जानवरों की दूध देने की क्षमता भी प्रभावित होती है। ध्वनि प्रदूषण से जानवर चिड़चिड़े, उग्र और हिंसक हो जाते हैं।
भोपाल वनमंडल के डीसीएफ एसएस भदौरिया का कहना है कि तेज आवाज और रोशनी से कम या अधिक सभी वन्यप्राणी प्रभावित होते हैं। आवाज से उनका प्राकृतिक आवास, भोजन, आचरण आदि में परिवर्तन आता है। वन्य क्षेत्र के आसपास धूम-धड़ाका आदि गतिविधियां रोकने के लिए वन अमले को सचेत किया गया है।

इतना अधिक सुनते हैं जानवर
डॉ. सुदेश बाघमारे का कहना है कि टाइगर, लेपर्ड आदि कैट फैमिली के वन्यजीव मनुष्य से 5-6 गुना अधिक सुनते हैं। ये दो-तीन कलर ही पहचानते हैं। इसलिए ऑब्जेक्ट को पहचानने में कान का अधिक इस्तेमाल करते हैं। कई जानवर बार-बार कान हिलाते हैं, जिससे वे सही अनुमान कर सकें। इसी तरह हिरण, चीतल, सांभर, बाहरसिंगा आदि मनुष्य से 20 गुना अधिक सुनते हैं। जंगली या पालतू कुत्ते सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं और मनुष्य से 22 गुना अधिक सुनते हैं। अधिक सुनने वाले जानवर पत्ते गिरने की आवाज पर भी सचेत हो जाते हैं। पटाखों की आवाज से पालतू कुत्ते दिवाली की रात पलंग, सोफा या कोने में दुबक जाते हैं। भालू कम सुनता है फिर भी मनुष्य से सुनने की क्षमता 4-5 गुना अधिक होती है। लंगूर और बंदर भी चार गुणा अधिक सुनते हैं। सांप पेट की संवेदनशील सेल्फ के जरिए पृथ्वी के कंपन से सुनता है। घडिय़ाल, मगरमच्छ आदि जलीय जीव पानी के अंदर होते हैं, इसलिए अधिक प्रभावित नहीं होते। पानी ध्वनि को सतह पर ही अब्जॉर्ब कर लेता है।

वन्यप्राणी तेज आवाज और तेज रोशनी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वन वृत्त में वन्यप्राणियों को परेशानी न हो, इसके लिए अमले को निर्देशित कर दिया गया है। नागरिकों को भी वन्यजीवों के साथ पालतू जीवों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे उन्हें परेशानी नहीं हो।
– रवीन्द्र सक्सेना, सीसीएफ भोपाल वन वृत्त

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