बोले विशेषज्ञ-किसानों की मौत पर सरकार के पास नहीं है जवाब
एमएन बुच मेमोरियल सेमिनार में बोले विशेषज्ञ-किसानों की मौत पर सरकार के पास नहीं है जवाब सरकार के पास आबादी और समस्याओं के आंकड़ों की कमी, प्लानिंग में भी ब्यूरोक्रेसी हावी

भोपाल. भारत में गांवों की संख्या बढ़ रही है, आज देश में ६.५ लाख गांव हैं जबकि सरकार का पूरा फोकस ६ हजार शहरों की अर्बन प्लानिंग पर है। सरकारें गांवों को किसानों के भरोसे छोड़कर शहरों में डेवलपमेंट और औद्योगिकीकरण को अपनी सफलता मनवाना चाहती है।
शहरों के लिए भी विकास का खाका बनाने के लिए सरकारों के पास गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मूलभूत विषयों के पर्याप्त आंकड़े मौजूद नही हैं। आम आदमी के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं में ब्यूरोक्रेसी हावी है जो अधूरी जानकारियों के आधार पर फैसले लेती है। यही वजह है कि भारत आज भी अंतर्राष्ट्रीय फोरम की ओर से तय इन्क्लूसिव और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के १७ सूत्रीय फार्मूले पर प्रतिस्पर्धा भी नहीं कर पा रहा है।
पूर्व आईएएस एमएन बुच की याद में आयोजित तीसरे वार्षिक व्याख्यान में ये बातें एरोमर रेवी, संचालक, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ह्युमन सेटलमेंट बैंगलोर ने कहीं। एक सवाल के जवाब में रेवी ने कहा कि देश में किसानों की मौत पर सरकार के पास जवाब नहीं है इसलिए वो इसका रास्ता अब औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देकर निकालना चाहती है।
उन्होंने कहा ये चाइना का मॉडल है वहां किसानों को ट्रेड सेक्टर में भेजकर कुशल उत्पादक बनाया जा रहा है। चाइना की नकल हमारे यहां कितनी सफल होगी इस पर संदेह है। इस अवसर पर पूर्व आईएएस निर्मला बुच, रामलिंगम परशुराम, अंटोनी जेसी डिसा और नगरीय प्रशासन आयुक्त गुलशन बामरा मौजूद रहे।
देश के बाकी हिस्सों से पिछड़ापन
आजादी के बाद भारत का विकास तेज हुआ लेकिन कुछ सालों बाद इसकी रफ्तार कम होने लगी। जापान परमाणु बम का हमला झेलने के बाद जमीन में मिल गया था लेकिन आज हमसें बहुत आगे है। चाइना ने भी अर्तंराष्ट्रीय ट्रेड सेक्टर में कीर्तीमान बनाया है, भारत भी आज चाइना जैसा बनने की बात करता है। केंद्र और राज्य की सरकारों को इन दावों को पूरा करने के लिए देश के गांवों की जरूरतों को समझना होगा।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट सुनहरा सपना
देश के ९९ शहरों को स्मार्ट सिटी बनाना इतना आसानी नहीं है। किसी शहर को बसने में २० से ३० साल लगते हैं। सरकार जिन शहरों को स्मार्ट बनाना चाहती है वहां रहने वाली आबादी को आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा जैसी मुलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मान चुके हैं कि भोपाल और इंदौर में संचालित बीआरटीएस फेल हो चुका है। मेट्रो प्रोजेक्ट सरकार को सफेद हाथी नजर आता है।
बस्तियां समस्या नहीं समाधान
शहरों में बस्ती कल्चर को खत्म करना ठीक नहीं है। भारतीय परिवेश में बस्तियों की आबादी शहरी लोगों के निजी कामों में हाथ बंटाकर रोजगार हासिल करती है। यदि इन्हें शहरों से गायब कर देंगे तो लोग भी परेशान होंगे और बेरोजगार, भूखे लोगों की नई फौज शहर के बाहर वाले स्लम एरिया में नजर आएगी। बस्ती परंपरा जातिवाद को समाप्त करने में भी मददगार है यहां कर आय वर्ग के लोग जाति को भूलकर रहते हैं।
अब पाइए अपने शहर ( Bhopal News in Hindi) सबसे पहले पत्रिका वेबसाइट पर | Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें Patrika Hindi News App, Hindi Samachar की ताज़ा खबरें हिदी में अपडेट पाने के लिए लाइक करें Patrika फेसबुक पेज