इसके बाद अपनी यथाशक्ति के अनुसार गणपति को डेढ़ दिन से लेकर पांच, सात या फिर नौ दिन तक घर में रखने के बाद उनका विसर्जन करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान गणेश की प्रतिमा का जल में ही विसर्जन क्यों किया जाता है? वहीं गणेश चतुर्थी से शुरू होने वाला गणेश उत्सव अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त हो जाता है।
गणेश चतुर्दशी का महत्व…
सनातन धर्मावलंबियों में गणेश चतुर्दशी का विशेष महत्व है। गणेश चतुर्दशी की महत्ता का शास्त्रों में भी विस्तार से वर्णन मिलता है। अनंत का अर्थ होता है- जिसका न आदि का पता है और न ही अंत का। यानी कि श्री हरि। ऐसे में अनंत चतुर्दशी पर व्रत रखने का विधान है।
इस दिन स्नानादि करने के बाद अक्षत, दूर्वा, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुई चौदह गांठ को अनंत को अर्पित किया जाता है। इसके बाद हवन भी कराया जाता है। इस हवन का लोग बड़ी ही श्रद्धा के साथ हिस्सा बनते हैं। ज्ञात हो कि इस साल अनंत चतुर्दशी 23 सितंबर, दिन रविवार को है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक अनंत चतुर्दशी प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है।
गणेश प्रतिमा विसर्जन की कथा…
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार धार्मिक ग्रन्थों के मुताबिक श्रीवेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्रीगणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी। जिसे श्रीगणेश जी ने अक्षरश: लिखा था, 10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत बढ़ गया है।
ऐसे में वेद व्यास जी ने तुरंत गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर ठंडे पानी से स्नान कराया था। इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है।
माटी के लेप का रहस्य…
पंडित शर्मा के अनुसार इसी कथा में यह भी वर्णित है कि श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े, इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया। यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई। माटी झरने भी लगी, तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा।
इस बीच वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है और 10 दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है।
अन्य मान्यता के अनुसार…
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। गणेश स्थापना के बाद से 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है।