भोपाल

मध्यप्रदेश में अनोखी मंडी, यहां मिलते हैं सिर्फ जैविक उत्पाद, हेल्दी फूड का जायका भी

साल भर पहले दो युवतियों ने की थी शुरुआत, क्षेत्रभर के किसान आते हैं सब्जी बेचने

भोपालMar 15, 2020 / 06:11 pm

रविकांत दीक्षित

राजधानी भोपाल में स्थित अनंत मंडी। यहां जैविक सब्जियां मिलती हैं।

भोपाल. लोग ऑर्गेनिक फूड खाना तो चाहते हैं लेकिन बाजार में उनकी उपलब्धता नहीं होने के कारण वे पेस्टीसाइड युक्त सब्जियां या अन्य खाद्य पदार्थ खाने को मजबूर होते हैं। हालांकि शहरों में कुछ ऐसे स्थान भी हैं, जहां ऑर्गेनिक फूड उपलब्ध हैं, लेकिन उसके दाम इतने अधिक होते हैं कि वो आम आदमी की पहुंच से दूर होता है। इसे देखते हुए भोपाल की दो युवतियों ने एक अनोखी पहल करते हुए ‘अनंत मंडी’ की शुरुआत की है। इसके तहत वह जैविक खेती करने वाले किसानों को एक मंच उपलब्ध कराते हैं जहां वह महीने के हर दूसरे व आखिरी रविवार को अपना सामान बिना किसी बिचौलिए के आम उपभोक्ता को बेचते हैं। यह मंडी भोपाल स्थित गांधी भवन परिसर में लगती है। अनंत मंडी की फाउंडर पियूली घोष (24) और सौम्या जैन (28) बताती हैं कि इस मंडी को पिछले साल 31 मार्च को शुरू किया था। यहां करीब 20 से अधिक जैविक खेती करने वाले किसान आते हैं। इस मंडी में पूर्णत: जैविक उत्पाद ही होते हैं। यहां किसानों से किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।

आरजे, डेटिंस्ट व आईटी प्रोफेशनल्स समूह में
पियूली बताती हैं कि बेंगलूरु से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद मेरे जेहन में अंनत मंडी का विचार आया। मैं और सौम्या एक कार्यक्रम के दौरान मिले और दोनों ने साथ मिलकर इसमें काम करने का निर्णय लिया। सौम्या ने नौकरी छोड़ दी। टीम की सदस्य अनुप्रिया सोनी पेशे से डेंटिस्ट, सान्या आचार्य रेडियो जॉकी, आरती रायगर आईटी प्रोफेशनल और श्रेया पटेल कॉमर्स ग्रेजुएट है।

यहां कोई भी बेच सकता है हेल्दी खाना
अनंत मंडी में हमने दो और प्रयोग भी किए हैं। इसमें पहला प्रयोग सबकी रसोई है, यहां कोई भी खाना बनाने का शौकीन व्यक्ति हेल्दी फूड बनाकर ला सकता है और उसे यहां बेच सकता है। इसके अलावा हमने यहां स्वैप सेल (अदला-बदली) की भी शुरुआत की है, जहां आप कोई भी गैर जरूरी सामान छोड़ उसकी एवज में अपनी जरूरत का सामान ले जा सकते हैं।

कोई भी कॉमर्शियल मॉडल नहीं
पियूली बताती हैं कि अभी अनंत मंडी सिर्फ जैविक खेती करने वाले किसानों और उपभोक्ताओं के बीच ब्रिज का कार्य करती है। इसमें किसी भी तरह का कॉमर्शियल मॉडल नहीं है, लेकिन हर बार मंडी लगाने जो 1500 से 2000 रुपए का खर्च होता है, उसे निकालने के लिए हम किसानों से अपनी क्षमता के अनुसार योगदान करने को कहते हैं।

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