धरती पर प्लास्टिक कचरे के बढ़ते बोझ के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र ने इस बार की थीम ‘प्लास्टिक प्रदूषण खत्म करो’ रखी है। एक अनुमान के मुताबिक अकेले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल सहित भारतीय शहरों में ही रोजाना 15 हजार टन से अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। 2050 तक समुद्र में प्लास्टिक कचरे की मात्रा मछलियों से ज्यादा होने की आशंका है।
यानि इस बार अर्थ डे पूरी दुनिया में ‘एंड प्लास्टिक पॉल्यूशन’ थीम पर सेलिब्रेट किया जा रहा है। लेकिन, पॉलिथीन आज के समय में हमारे लिए हर रोज का एक ऐसा अभिन्न अंग हो गया है, जिससे दूर रहना मुश्किल है।
ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर पॉलिथीन के उपयोग के कारण लगातार बढ़ता जा रहा पॉलिथीन वेस्ट हमारे लिए किस तरह की प्रॉब्लम खड़ी कर रहा है। वहीं जानकार मानते हैं कि पॉलिथीन पॉल्यूशन को खत्म करना है, तो हम अपनी लाइफस्टाइल से पॉलिथीन को रिप्लेस करें और वेस्ट प्लास्टिक को री-यूज़ कर कुछ ऐसे उपयोग की ओर जाएं, ताकि यह धरती और पर्यावरण काे नुकसान न पहुंचा सके।
नुकसान के प्रति होना होगा जागरूक
जानकारों का कहना है कि पॉलिथीन लंबे समय तक धरती में रहती है, जो खत्म नहीं होती। यह नुकसान तो हम सबको पता है, लेकिन अभी भी हमारे शहर भोपाल के तक कई लोग इसको लेकर अवेयर नहीं है। विदेशों में प्लास्टिक बॉटल स्क्रैप मशीनों का अच्छा इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन भोपाल अभी इस मामले में काफी पीछे है।
जानकारों का कहना है कि पॉलिथीन लंबे समय तक धरती में रहती है, जो खत्म नहीं होती। यह नुकसान तो हम सबको पता है, लेकिन अभी भी हमारे शहर भोपाल के तक कई लोग इसको लेकर अवेयर नहीं है। विदेशों में प्लास्टिक बॉटल स्क्रैप मशीनों का अच्छा इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन भोपाल अभी इस मामले में काफी पीछे है।
पॉलिथीन वेस्ट का ये है सबसे खास ट्रीटमेंट
इस संबंध में रिसर्चर विजेश वर्मा ने पॉलिथीन वेस्ट के ट्रीटमेंट का एक ऐसा तरीका ढूंढा है, जिससे पॉलिथीन वेस्ट कम होगा, और डीजल का बेहतर सब्सटीट्यूट भी मिल पाएगा।
इस संबंध में रिसर्चर विजेश वर्मा ने पॉलिथीन वेस्ट के ट्रीटमेंट का एक ऐसा तरीका ढूंढा है, जिससे पॉलिथीन वेस्ट कम होगा, और डीजल का बेहतर सब्सटीट्यूट भी मिल पाएगा।
उन्होंने कैमिकल रिएक्शन से एक पॉलिफ्यूल तैयार किया है, जिसे डीजल इंजन व जनरेटर में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह डीजल की तुलना में 40 से 45% कम पॉल्यूशन करता है। जिसकी कीमत भी डीजल की तुलना में 40% कम है।
प्लास्टिक वेस्ट का ऐसा इस्तेमाल…
क्या आप कभी सोच सकते हैं कि प्लास्टिक वेस्ट का इस्तेमाल फर्नीचर वुड के तौर पर किया जा सकता है। नहीं न पर ऐसा कर दिखाया है मैनिट में केमिस्ट्री की प्रो. डॉ. सविता दीक्षित ने… उन्होंने हाल ही में प्लास्टिक वेस्ट से ऐसा प्लाई मटेरियल तैयार किया है।
क्या आप कभी सोच सकते हैं कि प्लास्टिक वेस्ट का इस्तेमाल फर्नीचर वुड के तौर पर किया जा सकता है। नहीं न पर ऐसा कर दिखाया है मैनिट में केमिस्ट्री की प्रो. डॉ. सविता दीक्षित ने… उन्होंने हाल ही में प्लास्टिक वेस्ट से ऐसा प्लाई मटेरियल तैयार किया है।
यह प्लास्टिक सब्सटीट्यूट न सिर्फ वुड की तुलना में ज्यादा मजबूत है, बल्कि सोसायटी से प्लास्टिक वेस्ट को रिड्यूस करने का भी एक बेहतर हल है। इससे फर्नीचर के लिए काटे जा रहे पौधों को भी रोका जा सकता है।
ये होती हैं समस्याएं…
– छोटे जड़ वाले पौधे जमीन में पॉलिथीन या प्लास्टिक होने के कारण बढ़ नहीं पाते, उन्हें मिट्टी के न्यूट्रिएंट्स नहीं मिलते।
– पॉलिथीन के कारण बारिश का पानी धरती के भीतर नहीं जा पाता, जिससे ग्राउंड वाटर रीचार्ज नहीं होता।
– पन्नियां नालियों और स्वेज चैनल्स को ब्लॉक कर देती हैं। स्वेज ट्रीटमेंट प्लांट भी सही से काम नहीं कर पाते।
– धरती की सतह सूर्य की किरणों को रिफलेक्ट नहीं कर पाती, इससे गर्मी सर्फेस लेवल पर बढ़ जाती है।
– प्लास्टिक कंटेनर्स सभी फूड ग्रेड क्वालिटी के नहीं होते, जिससे फूड आइटम्स में टॉक्सिंस बढ़ जाते हैं।