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संतों की वाणी भारतीय संस्कृति के प्राण है, हमारे संत ही हमारी संस्कृति

locationभोपालPublished: Jun 26, 2022 10:45:47 pm

Submitted by:

hitesh sharma

भारत भवन में संत रविदास समारोह का आयोजन

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पद्मश्री भारती बंधु ने किया संत रविदास के भक्ति पदों का गायन

भोपाल। नरहरि चंचल है मति मेरी, कैसे भक्ति करूं मैं तेरी…, जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात… राम नाम की महत्ता दर्शाते संत रविदास के पदों से सजी संगीत संध्या का आयोजन शुक्रवार को भारत भवन सभागार में किया गया। तीन दिवसीय संत रविदास समारोह के पहले दिन कपिल शर्मा एवं साथी कलाकारों ने संत रविदास के पदों का संगीतमय पाठ किया। इसके बाद वैशाली गुप्ता के निर्देशन में ‘वाणी मंगल’ की प्रस्तुति दी गई। साथ ही कार्यक्रम की अंमित प्रस्तुति भारती बंधु ने रैदास के पदों की दी।

देखे, सुनै, बोलै, दौंरेयो फिरतु है….
कपिल शर्मा व साथी कलाकारों ने ‘जब राम राम कहि गावैगा, तब भेद अभेद सुनावैगा…’ से प्रस्तुति की शुरूआत की। इसी क्रम मे्रं ‘तू मोहि देखे हौं तोहि देखू, प्रीत परस्पर होई तू मोहि देखे तो ही न देखूं यह मति सब बुधि खोई…’ पद को सुनाया तो उपस्थित श्रोताओं ने तालियों के साथ स्वागत किया। अगली कड़ी में ‘सब घट अंतर रमसी निरंतर, मैं देखन नहीं जाना, गुन सब तोर मोर सब औगुन कृत उपकार न माना…’ की प्रस्तुति दी। इस दौरान दस कलाकारों ने 11 पदों और 10 दोहे को प्रस्तुत किया। इसके बाद वाणी मंगल की प्रस्तुति दी, जिसमें संकलन एवं निर्देशन वैशाली गुप्ता का रहा। बैठक पद्धति में प्रस्तुति दी गई। जिसमें ‘बेगम पुरा सहर को नाउ, दूखु अंदोहु नहीं तिहि ठाउ…’, ‘भरि भरि देवै सुरति कलाली, दरिया पीना रे, पीवतु पीवतु आपा जग भूला….’, ‘देखे, सुनै, बोलै, दौंरेयो फिरतु है….’ समाज को सीख देते संत रविदास के इन पदों के गायन ने श्रोताओं को रसास्वादन किया।

 

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स्कूल और कॉलेजों में बेसिक जानकारी के लिए संतों की वाणी को पढ़ाना चाहिए

मैं कबीर का गायन करता हूं और यह मेरे 52 सालों के लगातार मेहनत व प्रयास का प्रतिफल है, जिसमें मैंने करीब 7500 से ज्यादा शो किए हैं, उन्होंने कहा कि इसमें क्लासिकल भी है, सूफी भी है, इसमें मैंने म्यूजिक के साथ गायकी व शायरी को जोड़ा है, लेकिन मुख्य रूप से इसमें कबीर के दोहे ही शमिल है। मेरा बेटा इस परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। मैं पांचवीं और मेरे बच्चे छठवीं पीढ़ी है, जो कबीर के पदों का गायन कर रहे है। यह कहना है कि पद्मश्री डॉ. भारती बंधु का। जो कि शुक्रवार को भारत भवन में आयोजित संत रविदास समारोह में अपनी प्रस्तुति देने आए हुए थे। डॉ. भारती कहते हैं कि संतों की वाणी भारतीय संस्कृति का प्राण है और हमारे संत ही हमारी संस्कृति हैं। संतों की वाणी का गायन करने के लिए संत बनना जरूरी है। हमारा रहन-सहन, आचरण, चरित्र और वाणी संतों जैसी ही होनी चाहिए। तभी हम संतों का संदेश आमजन तक प्रभावी तरीके से पहुंचा सकते हैं। संत संगीत के प्रति समर्पण जरूरी है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को संतों की वाणी की शिक्षा दी जानी चाहिए। नई शिक्षा नीति में संत संगीत को शामिल भी किया गया है। अब सरकार को चाहिए कि हम जैसे भक्ति संगीत गुरुओं का लाभ ले। हालांकि स्कूल कालेज में इसकी आधारभूत जानकारी ही दी जा सकती है। स्कूल और कॉलेजों में बेसिक जानकारी के लिए ‘संतों की वाणी’ को पढ़ाना चाहिए। हम जैसे बहुत लोेग हैं, हमारी योग्यता व दक्षता का लाभ लेना चाहिए।

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