राज्य सरकार लम्बे समय से प्रयास कर रही थी कि कुलपति नियुक्ति में सरकार का दखल होना चाहिए, लेकिन इसके लिए विश्वविद्यालय अधिनियम आड़े रहा था। इस अधिनियम के तहत कुलपति चयन समिति में राज्यपाल, विश्वविद्यालय कार्यपरिषद और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा मनोनीत सदस्य होते हैं। राज्य सरकार का प्रतिनिधि शामिल किए जाने के लिए हाल ही में समाप्त हुए विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक पारित किया गया।
इस संशोधन विधेयक में कार्यपरिषद सदस्य के स्थान पर राज्य सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य को शामिल किए जाने का प्रावधान किया गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि विश्वविद्यालयों के कार्यकालापों के मामलों में राज्य सरकार सीधे तौर पर जबावदार होती है। सदन में सरकार को ही जवाब देना होता है, लेकिन कुलपति चयन में राज्य सरकार का दखल नहीं होता। इसलिए चयन समिति में सरकार का प्रतिनिधि भी होना चाहिए।
राज्यपाल का निर्णय ही मान्य – अब नई व्यवस्था के तहत कुलपति चयन समिति में भले ही राज्य सरकार द्वारा मनोनीत प्रतिनिधि सदस्य होगा लेकिन कुलपति चयन में राज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कुलपति चयन समिति चयनित नामों का पैनल राज्यपाल को देगी। इसमें से राज्यपाल किसी एक व्यक्ति को कुलपति नियुक्त करेंगे। विश्वविद्यालय अधिनियम में यह प्रावधान भी है यदि राज्यपाल को लगता है कि चयन समिति में कोई भी योग्य नहीं है तो किसी अन्य को भी कुलपति नियुक्त कर सकता है।